अरुणाचल पर ड्रेगन की कुदृष्टि (भाग -1)

अरुणाचल पर ड्रेगन की कुदृष्टि (भाग -1)

कौशल अरोड़ा

अरुणाचल पर ड्रेगन की कुदृष्टि (भाग -1)अरुणाचल पर ड्रेगन की कुदृष्टि (भाग -1)

अरुणाचल प्रदेश का तवांग शहर जो जिला मुख्यालय है। तवांग छुपे हुए स्वर्ग के नाम से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां पत्थर और बांस से बने हुए घर आसानी से देखने को मिल जाते हैं। जनसंख्या का घनत्व भी बहुत कम है। अपनी सुन्दरता को बिखेरती तवांग की सीमाएं तिब्बत, भूटान और चीन से मिलती हैं। यह मिली जुली भौगोलिक संस्कृति वाला भारतीय प्रदेश है। यहां अनेकों बौद्ध मठ हैं, जिनमें से एशिया का सबसे बड़ा मठ, ‘तवांग’ मठ है। इस कारण से भी यहां अनेकों बाहरी यात्रियों का आना-जाना बना रहता है। यहां की जनसंख्या में जनजातीय लोगों की बहुलता है। यहां की मोनपा जनजाति कृषि, शिल्पकला और धर्म को संरक्षित रखने में पारंगत है। सामाजिक भाव से शांत, सरल और बंधुत्व भाव यहां की प्रमुख जीवन शैली है। यहां का प्रमुख त्यौहार लोसर है जो परंपरागत कृषि में लगने वाली मौसमी बीमारियों से फसलों के बचाव के लिय मनाया जाता है। पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार, यह त्यौहार दुष्ट आत्माओं को खदेड़ने के लिए भी मनाया जाता है। यहां की मूल जनजातियां, प्राकृतिक आपदाओं से अपने तवांग की रक्षा के लिए इस त्यौहार को पूरे मनोयोग और जुझारू भाव से मनाती हैं। यही जुझारूपन इन्हें अपनी सीमाओं की रक्षा करने की लिए प्रेरित और संगठित रखता है। बर्फ की चादर ओढ़े पर्वत शृंखलाएं, जल स्रोत और सर्पीली नदियों से बंटी तवांग की भारतीय सीमा यानि LAC (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल: वास्तविक नियंत्रण रेखा) अत्यन्त उतार चढ़ाव लिए अपने गौरवशाली इतिहास के साथ सीना ताने अपनी नैसर्गिक सुन्दरता के साथ खड़ी है।

अरुणाचल पर ड्रेगन की कुदृष्टि नई नहीं है। वह यहॉं जब तब बखेड़ा खड़ा करता रहता है। इसके पीछे उसकी विस्तारवादी नीति है। LAC (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल: वास्तविक नियंत्रण रेखा) की पहल भारत और चीन के मध्य वर्ष 1993 में द्विपक्षीय चर्चा में आई। जबकि इसके लिए धरातल पर कोई स्पष्ट सीमांकन नहीं हुआ। इसी कारण दोनों देशों के मध्य यह गतिरोध बना हुआ है, जो वर्तमान में 9 दिसम्बर, 2022 को तवांग संघर्ष के रूप में सामने आया। यह सीमा 4057 किमी लम्बी है व लद्दाख, कश्मीर, उतरांचल, हिमाचल, अरुणाचल से होकर निकलती है। यह तीन भागों में बंटी हुई है:

1) पश्चिम सेक्टर: यह क्षेत्र लद्दाख से कश्मीर तक 1346 किमी में फैला है
2) मध्य सेक्टर: यह क्षेत्र उतरंचल से हिमाचल तक 545 किमी में फैला है
3) पूर्वी सेक्टर: यह क्षेत्र सिक्किम से अरुणाचल तक 1597 किमी में फैला है

चीन, अरुणाचल प्रदेश के 90 हजार वर्ग किमी भू-भाग को अपना बताते हुए उस पर दावा करता है, जबकि लद्दाख का 38 हजार वर्ग किमी का भू-भाग वर्तमान में चीन के जबरन कब्जे में है। इसके साथ ही पाकिस्तान ने 2 मार्च 1963 को पाक अधिकृत कश्मीर का 5180 वर्ग किमी भूभाग भी चीन को दे दिया था, जो भारत का अभिन्न अंग है ।

भारत के चीन से उसकी विस्तारवादी नीतियों के कारण सम्बन्ध अच्छे नहीं रहे हैं। भारत और चीन के मध्य 20 अक्टूबर, 1962 में युद्ध हुआ। इस युद्ध में अरुणाचल के बड़े भूभाग पर चीनी पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) ने अस्थाई रूप से कब्जा किया। युद्ध विराम घोषित होने पर चीनी सेना को मैकमोहन रेखा के पीछे जाना पड़ा। यही चीन का दर्द है। यह युद्ध 14 हजार फुट की ऊंचाई पर लड़ा गया था। जिस कारण भारत के साथ चीन को भी भारी क्षति हुई थी। वर्ष 1962 में ‘हिन्दी चीनी भाई-भाई’ के नारे ने भारत को मजबूर किया था। आज भारत की जनता में देश के प्रति राष्ट्रीयता की भावना कूट-कूट कर भरी है, जो विश्व के सामने भारत की एकता और अखंडता का आईना प्रदर्शित करती है। चीन ने वर्ष 1964 में प्रथमतया परमाणु हथियारों का परीक्षण किया। जबकि वर्ष 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में चीन द्वारा पाकिस्तान का सीधा समर्थन करना भारत के लिए अपनी क्षमताओं को विकसित करने की चुनौती था।

भारत और चीन के मध्य एक समझौता 29 नवम्बर, 1996 को हुआ। जिसमें कहा गया कि दोनों देश एक दूसरे के विरुद्ध न तो किसी तरह की शक्ति, सैन्य क्षमता का प्रयोग करेंगे और न ही इसके लिए धमकी ही देंगे। साथ ही ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे, जिससे भारतीय सीमा से लगते हुए क्षेत्रों में शांति और स्थिरता को खतरा हो। इस समझौते के अनुसार, LAC की दो किलोमीटर की परिधि में कोई भी देश गोलीबारी नहीं करेगा। जैविक हथियार या हानिकारक रसायनों का प्रयोग भी नहीं करेगा। साथ ही न तो बलास्ट करेगा और न ही विस्फोटक सामग्री का ही उपयोग कर सकेगा। इस समझौते में दोनों देशों का वास्तविक नियंत्रण रेखा की पालना करना अनिवार्य था। वर्ष 1993 और 1996 में हुए समझौते को आधार बनाते हुए नवीन समझौता इसका पक्का आधार बना। यह आधार वर्ष 2005, 2012 व 2013 के समझौतों से नवीन समझौता दोनों देशों के मध्य हुआ, जो आधिकारिक रूप से दोनों देशों के लिय विधिक दस्तावेज है। जिन क्षेत्रों के लिए सहमति नहीं बनी, वहां दोनों देश पेट्रोलिंग नहीं करेंगे और सीमा पर दोनों देशों के मध्य सीमा पर जो स्थिति है, वही यथावत रहेगी। इन समझौतों की पालना द्विपक्षीय होने के कारण दोनों इसकी पालना के लिए बाध्य हैं। जबकि चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा। वह बार बार सीमा पर उपद्रव करता रहता है-

1) 9 दिसंबर 2022: अरुणाचल प्रदेश के तवांग घाटी में हिंसक झड़प
2) 15 जून 2020: लद्दाख प्रदेश के गलवान घाटी में हिंसक झड़प। जिसमें 20 भारतीय सैनिक बलिदान हुए ।
3) 18 जून 2017: डोकलाम भूटान में विवाद, लगभग ढाई महीने तक रहा तनाव

इसके साथ ही चीन LAC पर पक्का निर्माण, कॉलोनी बनाने जैसे अनैतिक काम भी कर रहा है, जो समझौतों का स्पष्ट उल्लंघन है। जून 2020 में गलवान घाटी में 45 वर्षों की शांति और छुटपुट होती रहने वाली घटनाओं के बाद गोली चली थी, जिसमें 20 भारतीय सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए थे। जबकि भारत सदैव से ही LAC की अवधारणा के समझौतों का पालन करता आ रहा है। चीन द्वारा सीमा पर तनाव बढ़ने के कई और कारण भी हैं (जिन पर चर्चा लेख के अन्य भाग में होगी)। इस तरह की झड़पें पूर्व के दशकों में भी होती रही हैं। उस समय हमारी सेना की तैयारी उस स्तर की नहीं हुआ करती थी, जैसी की आज है। उन क्षेत्रों में आधारभूत संरचना नहीं थी। इसलिए हालातों पर नियंत्रण और समस्या के सुदृढ़ीकरण में समय लगता था। अब समय बदल गया है, LAC से सड़कें जुड़ी हुई हैं। प्रत्येक मौसम में खुली रहने वाली सुरंगें, खुले रास्ते बन गए हैं। जिससे सेना में गतिशीलता बहुत तेजी से बढ़ी है। इस कारण से ही चीन की घुसपैठ को तुरन्त नाकाम किया जा सका है। वर्तमान संघर्ष में चीन को भारतीय सेना ने तुरन्त खदेड़ दिया। चीनी सैनिकों को उल्टे पांव भागना पड़ा ।

क्रमश:

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2 thoughts on “अरुणाचल पर ड्रेगन की कुदृष्टि (भाग -1)

  1. तवांग के भौतिक स्वरूप और संस्कृति का वर्णन इस लेख को चार चांद लगाता है, धन्यवाद श्रीमान ।

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