भारतीय स्वाधीनता संग्राम और असम के क्रांतिकारी
डॉ. पवन तिवारी
भारतीय स्वाधीनता संग्राम और असम के क्रांतिकारी
श्रीमन्त शंकरदेव की पावन धरा असम भारतीय संस्कृति के प्रसिद्ध उद्घोष “वीरभोग्या वसुन्धरा” को चरितार्थ करती है।पूर्वोत्तर का द्वार कहे जाने वाले असम के क्रान्तिकारियों ने अपने ही द्वार पर ब्रिटिश सरकार से लोहा लिया था। दुर्भाग्य से एकपक्षीय इतिहास लेखन ने उनके नामों को भारतीय आम जनमानस तक नहीं जाने दिया और उन्हें विस्मृत कर दिया गया। किन्तु वर्तमान ऐतिहासिक पुनर्लेखन में उन भूले हुए क्रान्तिकारियों को याद करना अब हम सभी की जिम्मेदारी बन जाती है।
असम की इस धरा पर ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध विरोध का बिगुल बजाने वाली कनकलता बरुआ, भोगेश्वरी फुकनानी, पुष्पलता दास, चन्द्रप्रभा सैकियानी, मणिराम दीवान, कुशल कोंवर, शंभुधन फुंगलो, भोगोई देवी, बोधुरा कोच, हरि डेका, धनदेव सरमा आदि अप्रतिम क्रान्तिकारी हुए हैं।
कनकलता बरुआ
कनकलता बरुआ का जन्म 1924 में असम प्रान्त में हुआ और बालपन से ही वे राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम में सम्मिलित हो गईं। मात्र 7 वर्ष की अल्प आयु में उन्होंने 1931 के वर्ष में ब्रिटिश विरोधी रैलियों में भाग लिया। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में उन्होंने असम की ओर से क्रान्तिकारियों का नेतृत्व किया। ब्रिटिश फौज के समक्ष वे हाथ में तिरंगा लेकर अपने सहयोगियों के आत्मबल में वृद्धि करते हुए आगे आईं और ब्रिटिश गोलीबारी में अपने प्राण भारत माता के चरणों में न्यौछावर कर दिए। आज तिरंगा लिए हुए असम की दीवारों पर उभरे और चित्रांकित दृश्य उनके बलिदान की गाथा गा रहे हैं।
भोगेश्वरी फुकनानी
भोगेश्वरी फुकनानी (1872-1942) एक जिजीविषा वाली क्रान्तिकारी महिला थीं। असम के नौगांव जिले के बहरामपुर कस्बे में उन्होंने 70 वर्ष की आयु में ब्रिटिश विरोधी आन्दोलन का नेतृत्व किया। इन्होंने व्यक्तिगत प्रयास से स्थानीय महिलाओं का एक संगठन बनाकर उन्हें भारतीय स्वाधीनता संग्राम में सहभागिता हेतु प्रेरित किया। भारत छोड़ो आन्दोलन (1942) के दौरान ब्रिटिश कैप्टन फिंस के द्वारा चलाई गई गोली से इन्हें वीरगति प्राप्त हुई।
पुष्पलता दास
पुष्पलता दास (जन्म – 27 मार्च, 1915) का सम्बन्ध असम के उत्तर लखीमपुर से रहा है। वह एक प्रतिष्ठित समाज सेवी और सक्रिय आन्दोलनकारी महिला थीं। मात्र 11 वर्ष की आयु में उन्होंने मुक्ति संघ नामक संगठन बनाकर राष्ट्रवादी गतिविधियों में भाग लिया। उन्होंने भगत सिंह की फांसी का पुरजोर विरोध किया था। वे राष्ट्रीय स्वाधीनता हेतु संघर्षरत राष्ट्रीय योजना समिति (1940-42) की सक्रिय कार्यकर्ता रहीं और भारत छोड़ो आन्दोलन में अपने सफल नेतृत्व का परिचय दिया। स्वातन्त्र्योत्तर भारतीय राज व्यवस्था में इन्होंने सांसद के उत्तरदायित्त्व का निर्वहन भी किया था।
चन्द्रप्रभा सैकियानी
चन्द्रप्रभा सैकियानी (जन्म – 24 दिसम्बर, 1901) का सम्बन्ध असम के कामरूप जिले से है। युवावस्था में वह एक अध्यापिका और बाद में प्रधानाध्यापिका भी बनीं। उन्होंने गांधी जी के स्वदेशी आन्दोलन में भाग लिया और प्रधानाध्यापिका के दायित्व से त्यागपत्र देकर एक महिला मोर्चा बनाया तथा अपना जीवन भारतमाता के चरणों में समर्पित कर दिया। असम में अंग्रेजों के विरोध के बावजूद शिक्षा के लिए प्राथमिक विद्यालय खोला, किशोरों को नशे की लत से मुक्त कराने हेतु ‘अफीम निषेध आन्दोलन’ में भी सहभागिता की। भारतीय परिप्रेक्ष्य में दिए जा रहे नारे ‘स्वदेशी अपनाओ’ का घर–घर जाकर प्रचार किया और अंग्रेजी सामान के बहिष्कार की बात की। भारत छोड़ो आन्दोलन में कामरूप जिले का नेतृत्व किया और अपनी आँखों के सामने भारतीय स्वाधीनता प्राप्त होते हुए भी देखी।
मणिराम दीवान
ऐसे ही क्रान्तिकारी थे – मणिराम दत्ता बरुआ उपाख्य मणिराम दीवान। 24 दिसम्बर, 1806 में जन्मे दीवान ने जोरहाट में अपना पहला स्वदेशी चाय बागान लगाया। वे 1857 की क्रान्ति से प्रभावित थे। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय ब्रिटिश विरोधी आन्दोलन में लगाया। उन्हें 26 फरवरी, 1858 को जोरहाट सेन्ट्रल जेल में फांसी दी गई।
कुशल कोंवर
एक अन्य क्रान्तिकारी कुशल कोंवर (जन्म – 1905) भी हुए, जिनका सम्बन्ध असम प्रदेश के गोलाघाट जिले से रहा है। उन्होंने भारतीय स्वाधीनता हेतु आयोजित असहयोग आन्दोलन, सत्याग्रह आन्दोलन और भारत छोड़ो आन्दोलन – इन तीनों आन्दोलनों में महती भूमिका निभाई। वर्ष 1942 में अंग्रेजों ने उन्हें जेल में डाल दिया और बिना उनका ठीक से पक्ष जाने 15 जून, 1943 की सुबह फांसी लगा दी। ऐसे वीर को आज पूरा असम याद करता है। इनकी गाथा पूरे भारत के जन मानस को ज्ञात होनी चाहिए।
शंभुधन फुंगलो
शंभुधन फुंगलो (1850-1883) ने असम के कछारी क्षेत्र में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का नेतृत्व किया। इन्होंने अंग्रेजों द्वारा विभक्त किए गए कछारी क्षेत्र के युवाओं को सैन्य–प्रशिक्षण देकर सशस्त्र विद्रोह हेतु एक बृहत् सैन्य–क्षमता अर्जित की और अंग्रेजों के विरुद्ध आवाज बुलन्द की।
इनके अतिरिक्त भी असम के ऐसे अनगिनत क्रान्तिकारी हुए हैं, जिन्होंने भारतमाता के श्रीचरणों में हंसते–हंसते अपना जीवन न्यौछावर कर दिया।
आज स्वाधीनता के अमृत महोत्सव में हम सभी का कर्त्तव्य है कि देश की स्वाधीनता हेतु प्राण न्यौछावर करने वाली इन हुतात्माओं को नमन करें।
(लेखक विद्या भारती पूर्वोत्तर क्षेत्र के संगठन मंत्री हैं)
अत्यन्त सारगर्भित लेख।
संघ के पदाधिकारियों में यही वैचारिक श्रेष्ठता होती है, इसलिए मैं उनका विशेष आदर करता हूँ।