झाड़ग्राम के जनजाति समाज के लिए आजीविका का मजबूत साधन है सवाई घास
झाड़ग्राम के जनजाति समाज के लिए आजीविका का मजबूत साधन है सवाई घास
- समाज सेवा भारती के साथ सफलता की कहानी लिख रहे हैं पश्चिम बंगाल के झाड़ग्राम के जनजाति बन्धु
जयपुर। अलग-अलग प्रकार की घास और तिनकों का उपयोग अब सजावटी सामान बनाने में बखूबी होने लगा है। ऐसी ही एक घास पश्चिम बंगाल के झाड़ग्राम जिले के जनजाति समाज के लिए आजीविका का मजबूत साधन बनी हुई है। सवाई नाम की यह घास उनकी आजीविका को सवाया कर रही है। सवाई घास से बने सजावटी व उपयोगी सामान जयपुर के केशव विद्यापीठ जामडोली में सम्पन्न हुए #राष्ट्रीय_सेवा_संगम में भी लोगों को खूब पसंद आए।
पश्चिम बंगाल में समाज सेवा भारती से जुड़े झाड़ग्राम सेवा केन्द्र के संजय बारिक बताते हैं कि कोलकाता से लगभग 170 किलोमीटर दूर झाड़ग्राम जिले के जंगलों में सवाई नाम की घास उगती है। इस क्षेत्र की 90 प्रतिशत जनसंख्या जनजातीय है, जिनमें मुंडा, लोदा, महतो आदि के साथ जंगल के बीचोंबीच रहने वाली सबर जनजाति भी शामिल है। यहॉं के लोगों के लिए यह घास आजीविका का बड़ा स्रोत है।सवाई घास का 10 किलो का पूला 250 रुपये में उपलब्ध हो जाता है। पहले जनजाति समाज के लोग इसे धोकर परिष्कृत करके 750 रुपये में दूसरों को बेच देते थे। अब सेवा केन्द्र से जुड़कर वे लोग इस घास से छोटी टोकरियां, पर्स, सजावटी कलाकृतियां आदि बनाने लगे हैं। सेवा केन्द्र के कार्यकर्ता इन सामानों की बिक्री में उनकी सहायता करते हैं।
उन्होंने बताया कि 250 रुपये की 10 किलो सवाई घास से इतना सामान तैयार हो जाता है कि जब वह पूरा बिक जाए तो लगभग 20 हजार रुपये प्राप्त होते हैं। बनाने में लगने वाली मेहनत के यथोचित मेहनताने, कार्यकर्ताओं के मानदेय आदि सहित बचत भी हो जाती है जो लाभांश के रूप में उनके जीवन स्तर को ऊपर उठाने में सहयोगी बन रही है। बारिक बताते हैं कि यह सामान ऑनलाइन भी बेचा जा रहा है। कई लोग उनसे एक साथ बड़ी मात्रा में सामान खरीदते हैं और शहरों में जाकर बेच देते हैं।
बहुत सुंदर। हाथ की बनी चीजों की कीमत ही अलग होती है।