आज भी प्रेरणा देता है भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम
1857 की क्रांति/ 10 मई पर विशेष
अंग्रेजों ने 1857 की स्वतंत्रता की क्रांति को दबा दिया लेकिन जिस तरह भारतीयों ने अंग्रेजों के विरुद्ध त्याग और बलिदान की भावना का प्रदर्शन किया, वह भारत की स्वतंत्रता के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बन गया। इसलिए वीर सावरकर ने इस क्रांति को भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा।
डॉ. शिव कुमार
भारत के इतिहास में 10 मई यानि आज का दिन अविस्मरणीय है। यह दिन इतिहास में भारत की स्वतंत्रता संग्राम के प्रारंभ का दिन माना जाता है, स्वातंत्र्य वीर सावरकर ने जिसे भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम कहा। नाना साहब, तात्या टोपे, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई जैसे अनगिनत वीर इस संग्राम ने भारत के इतिहास में दर्ज किए और भारत की आत्मा में स्वतंत्रता की नैसर्गिक भावना को जन्म दिया। ऐसा पहला स्वतंत्रता संग्राम हर भारतीय के लिए गौरव का विषय है।
आइए आज के दिन के बहाने हम लौटते हैं आज से 163 साल पहले उस दौर में जब हर भारतीय के हृदय में भारत की स्वतंत्रता हिलोरें मार रही थी। यह 10 मई का दिन था और शाम के पांच बज रहे थे। मेरठ में स्वतंत्रता का सूरज अस्त नहीं अपितु उग रहा था। मेरठ के क्रांतिकारी सैनिकों ने अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का शंखनाद कर दिया था। सबसे पहले उन्होंने जेल में बंद भारतीय सैनिकों को छुड़ाने के लिए जेल पर आक्रमण कर दिया और भारतीय सैनिकों को अंग्रेजों की कैद से छुड़ा लिया। इसके पश्चात इन क्रांतिकारी सैनिकों ने दिल्ली की ओर कूच किया। रात में यमुना नदी पार कर 11 मई को सुबह- सुबह दिल्ली में प्रवेश किया। क्रांतिकारी सैनिकों के साथ मेरठ एवं दिल्ली के आसपास के गांव के कई लोग भी सम्मिलित हो गए।
दिल्ली भारत में सत्ता का केंद्र रहा था। यहां क्रांतिकारियों ने मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को नेतृत्व संभालने के लिए कहा। सैनिकों के दिल्ली पहुंचने पर मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को बड़ा आश्चर्य हुआ और उसने इसकी सूचना आगरा के लेफ्टिनेंट गवर्नर को भेज दी। पहले बहादुर शाह जफर क्रान्तिकारियों का नेतृत्व संभालने को तैयार नहीं हुआ किन्तु बाद में बहादुर शाह को क्रांतिकारियों का नेतृत्व संभालना पड़ा।
17 मई 1857 को क्रांतिकारियों ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया। क्रान्तिकारी सैनिकों ने ब्रिटिश पॉलिटिकल एजेंट साइमन फ्रेजर सहित कई अंग्रेज अधिकारियों को मौत के घाट उतार दिया। दिल्ली एवं मेरठ की क्रांतिकारी घटनाओं की सूचना जैसे ही भारत के विभिन्न भागों में फैली, इन स्थानों पर क्रान्तिकारी गतिविधियां बढ़ने लगीं। बहुत से क्रांतिकारी सैनिक दिल्ली पहुंचने लगे। इंदौर के होल्कर की सेना के सैनिकों ने महू के क्रांतिकारी सैनिकों के साथ मिलकर दिल्ली की ओर कूच किया। नीमच के क्रांतिकारी सैनिकों ने आगरा पर आक्रमण कर आगरा को अंग्रेजों से मुक्त करवा लिया। मेरठ की क्रांति की सूचना राजपूताना में पहुंचने पर यहां सैनिकों ने अंग्रेज अधिकारियों के विरुद्ध क्रांति की शुरुआत कर दी। 28 मई 1857 को राजपूताना के नसीराबाद छावनी में भारतीय सैनिकों ने कई अंग्रेज अधिकारियों को मौत के घाट उतारकर दिल्ली कूच किया। भारत के विभिन्न हिस्सों में अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति की भावना बहुत तीव्र हो गई थी। कोटा में भी राजनैतिक एजेंट को मौत के घाट उतार दिया गया।
उधर कानपुर में नाना साहब ने स्वयं को पेशवा घोषित कर दिया। झांसी में रानी लक्ष्मीबाई ने क्रांतिकारियों का नेतृत्व किया। नाना साहब के सहायक तात्या टोपे की सहायता से लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर पर अधिकार कर लिया। ग्वालियर के बीस हजार सैनिक लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे के साथ हो गए। लक्ष्मीबाई कोटा की सरनी के युद्ध में बड़ी वीरता से अंग्रेजों से लड़ी। मध्य भारत में ग्वालियर के अतिरिक्त इंदौर, भोपाल, देवास, धार आदि स्थानों में फैल गई।
बिहार में क्रांति का नेतृत्व कुंवर सिंह ने किया। इन्होंने कैप्टन डनबर को परास्त कर दिया। उन्होंने बांदा, कालपी, रीवा आदि क्षेत्रों में जाकर क्रांति की ज्वाला को फैलाया। पंजाब, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के विभिन्न क्षेत्रों में क्रांति का विस्तार हुआ।
क्रांतिकारियों में समन्वय का अभाव रहा। उधर अंग्रेजों के पास आधुनिक हथियार और संचार के साधन थे। 20 सितंबर 1857 को अंग्रेजों ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया। बहादुर शाह जफर को हुमायुं के मकबरे में शरण लेनी पड़ी। अंग्रेजों ने बहादुर शाह को निर्वासित कर रंगून भेज दिया जहां 1862 में उसकी मृत्यु हो गई। उधर, तात्या टोपे गुरिल्ला युद्ध के माध्यम से अंग्रेजों से युद्ध करते रहे। राजपूताने के कई जागीरदारों ने तात्या टोपे की सहायता की और उन्होंने झालावाड़ पर अधिकार कर लिया।
अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों का बड़ी क्रूरता और निर्दयता से दमन किया। नाभा, जींद, पटियाला, ग्वालियार के शासक, भोपाल और हैदराबाद के नवाब यदि क्रांतिकारियों के साथ होते तो भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम की तस्वीर अलग ही होती। अंग्रेजों ने 1857 की क्रांति को दबा दिया लेकिन जिस तरह भारतीयों ने अंग्रेजों के विरुद्ध त्याग और बलिदान की भावना का प्रदर्शन किया, वह भारत की स्वतंत्रता के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बना। इसलिए वीर सावरकर ने इस क्रांति को भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा।
(लेखक इतिहास विषय के प्राध्यापक हैं)