इम्यूनिटी बढ़ाने के विविध सोपान
प्रो. केबी शर्मा
कोरोना महामारी का विकराल रूप सबने देखा। तीसरी लहर की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। इससे बचने के दो ही उपाय हैं, टीका लगवाएं और इम्यूनिटी मजबूत करें। इम्यूनिटी अर्थात् रोग प्रतिरोधक क्षमता के बहुविध सोपान हैं। उन सोपानों के पालन से मुनष्य भीतर से मजबूत बनता है।
प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में पहला सोपान है सकारात्मक सोच। परमात्मा ने सकारात्मक व नकारात्मक दोनों श्रेणी के विचार बनाये हैं और कहा भी है सुमति कुमति सबके उर रहे। हमें अपने अन्दर सकारात्मक विचारों का प्रवाह ही प्रवाहित करना है। यह प्रवाह मनुष्य को बहुत दृढ़ बनाता है और भीतर आनन्द की गंगा बहाता है तथा इस बहाव से अद्भुत परिवर्तन की सोच आती है और मानव मन जागृत हो उठता है। सकारात्मक सोच से मनुष्य का समूचा विकास होता है और विकास से मन प्रसन्न रहता है और प्रसन्नता से मनुष्य दृढ़ होकर प्रतिरोधक क्षमता को प्राप्त करता है।
रोग-प्रतिरोधकता में सहायक दूसरा सोपान है व्यायाम। शास्त्रों में कहा गया है व्यायाम से स्वास्थ्य लम्बी आयु, बल और सुख की प्राप्ति होती है, निरोगिता परम भाग्य की बात है। व्यायाम से ऊर्जा की प्राप्ति शरीर में संचारित होती है। पंचतत्वों से बनी इस मानव देह को व्यायाम योग द्वारा नियमित रूप से ढालना, शरीर को परिपुष्ट करता है। जब शरीर परिपुष्ट होगा तो ओजस्वी कान्तिमय बनेगा और कान्तिमयता से युक्त होने पर मन हर्षित रहेगा तथा हर्षित मन सभी ओर से सबल हो रोग प्रतिरोधी रहेगा। योग-व्यायाम रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में बहुत सहायक है। आज योग को सम्पूर्ण विश्व अपना रहा है। इस योग के माध्यम से सभी को शारीरिक व मानसिक दोनों प्रकार के लाभ मिल रहे हैं। इस प्रकार योग-व्यायाम प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का मूल सोपान है।
मनुष्य का जीवन भाग-दौड़ भरा हो गया है। भौतिकता के अन्धानुकरण की प्रतिस्पर्धा में मानव के पास सदैव समय का अभाव रहने लगा। इस समय अभाव का असर मनुष्य के आहार पर भी पड़ा है उचित व भरपूर पौष्टिक आहार ही मनुष्य को मजबूत बनाता है। कहा भी गया है- जैसा खाये अन्न वैसा रहे मन। अन्न का मानव मन पर असर होता है। वर्तमान में मनुष्य के पास समय अभाव हो गया है तो वह अपने भोजन के नियमों में भी लापरवाही करने लगा। बहुत से परिवारों में जंक फूड का प्रयोग बहुतायत रूप से हो रहा है। विदेशों में तो महीने भर तक का भोजन फ्रिज में बनाकर रखा जाता है और उसे माइक्रोवेव में गरम करके खाया जाता है। ऐसा भोजन स्वास्थ्य पर शनैः शनैः अपना बुरा असर दिखाता ही है। ताजा और शुद्ध भोजन शरीर में स्फूर्ति उत्पन्न करता है और स्फूर्तिमय होने पर अपने आप रोग-प्रतिरोधक क्षमता बन जाती है।
श्रीमद्भगवद् गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है-जो खाने, सोने, आमोद-प्रमोद तथा अपनी काम करने की आदतों में नियमित रहता है वह समस्त भौतिक क्लेषों से दूर रहता है। भौतिक क्लेषों से दूर व्यक्ति सदैव सबल व स्वस्थ्य रहता है। अतः आहार रोग प्रतिरोधक क्षमता के वर्धन में मुख्य आधार है।
खेल जीवन में आन्नद देते हैं। समय के चक्र की गति में परम्पराएं बदल गयीं। आज बच्चों को आउटडोर खेल के स्थान पर इनडोर खेल ज्यादा पसंद आने लगे हैं। कम्प्यूटर व विडियो गेम खेलते हुये बच्चे इतने डूब जाते हैं कि खाने-पीने की सुध-बुध ही खो देते हैं क्योंकि उन विद्युत उपकरणों की चकाचौंध में अन्धे होकर उन्हें उन किरणों के दुष्प्रभाव का जरा भी अन्दाजा नहीं होता क्योंकि उन खेलों में शारीरिक गतिविधि तो होती नहीं, पसीना बहता नहीं तो कैसे शरीर स्वस्थ्य रहे। हम पुराने पन्ने पलटें तो पहले खेल सामूहिक रूप से होते थे। खेल ज्ञानवर्धक व शरीर तथा मनोमस्तिष्क को तरोताजा करने वाले होते थे। परिवारों में माँगलिक अवसरों पर भी खेल व क्रीड़ाओं का विधान था। ये सभी विधान मन को आनन्दमय बनाने के लिये होते थे। मन प्रसन्न व आनन्दित तो मानव का शरीर प्रतिरोधी गुणों से आप्लावित हो जाता है।
मधुर संगीत व गीत भी मन को प्रसन्न करने का प्रमुख सोपान है। संगीत का मानव मनोविज्ञान पर पूरा प्रभाव पड़ता है। संगीत से अन्तरात्मा प्रसन्न होती है। मधुर संगीत वातावरण को गुंजायमान करता है। अतः संगीत भी मनुष्य के मन को सबल बनाता है। सभी नकारात्मक चीजों को दूर भगा देता है। सबल व सकारात्मक मन मानव का सर्वांगीण विकास करता है। विकसित मानव शक्ति सम्पन्न होता है। शक्ति सम्पन्न मानव कभी शारीरिक व मानसिक दोनों रूपों से स्वस्थ रहता है।
अतः आज में परिदृश्य इम्यूनिटी की क्षमता को बढ़ाने के लिए इर्द-गिर्द सभी सोपानों को अपना कर अपने शरीर को ऊर्जावान बनाना चाहिये तथा परिवार देश के हित चिंतन हेतु सन्नद्ध रहना चाहिए।