एकात्म मानव दर्शन भारत ही नहीं पूरे विश्व के लिए हितकर

एकात्म मानव दर्शन भारत ही नहीं पूरे विश्व के लिए हितकर

एकात्म मानव दर्शन भारत ही नहीं पूरे विश्व के लिए हितकरएकात्म मानव दर्शन भारत ही नहीं पूरे विश्व के लिए हितकर

पुणे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि “हमारे दैनंदिन व्यवहार की हर बात (काम) सरकार करे, ऐसी सोच भारतीय परंपरा में कभी नहीं थी। कुछ काम ऐसे भी होते हैं, जो सरकार के साथ साथ हमें भी करने चाहिए। हमारे समाज को भी कार्य करना आवश्यक है, यह विचार पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने एकात्म मानव दर्शन के माध्यम से बहुत पहले ही दे दिया था।”

सरकार्यवाह पुणे में आयोजित ‘एकात्म मानव दर्शन संकल्पना कोश’ विमोचन समारोह में संबोधित कर रहे थे। सेंटर फॉर इंटीग्रल स्टडीज़ एंड रिसर्च की (C.I.S.R.) ओर से प्रकाशित ‘एकात्म मानव दर्शन संकल्पना कोश’ ग्रंथ का विमोचन कर्वेनगर स्थित महर्षि कर्वे स्त्री शिक्षण संस्था के सभागृह में किया गया।

कार्यक्रम के अध्यक्ष के रूप में राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी उपस्थित रहे। महर्षि कर्वे स्त्री शिक्षण संस्था के कार्याध्यक्ष रवींद्र देव, प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक जे. नंदकुमार और मुंबई के एकात्म प्रबोध मंडल के रवींद्र महाजन आदि मान्यवर मंच पर उपस्थित थे।

सरकार्यवाह ने कहा कि “दूसरे महायुद्ध और शीत युद्ध के बाद विश्व में एक खालीपन सा था, ज्ञानी लोग कहने लगे, अब इतिहास का अंत हो गया है। किन्तु ऐसा हुआ नहीं, क्योंकि, इतिहास का कभी अंत नहीं होता। हर पीढ़ी अपना इतिहास स्वयं लिखती है। अब समय ऐसा है कि पूरा विश्व सच्चे सुख की खोज में है और महत्वपूर्ण बात यह है कि यह सुख नाम की चीज सिर्फ भारतीय तत्त्वज्ञान में ही छिपी है। स्व. दीनदयाल उपाध्याय जी ने अपने कार्य और विचारधारा द्वारा यह पहले ही सिद्ध कर दिया है। जब देश पाश्चात्य और समाजवादी विचारों पर चलता था, तब एकात्म मानवदर्शन जैसे तत्वों को कहने का साहस उपाध्याय जी ने किया था। जब उन्होंने यह बात कही, तब लोगों ने उनका मजाक उड़ाया, उपहास किया।

लेकिन वर्तमान स्थिति में वही प्रेरक विचार मार्गदर्शक साबित हो रहे हैं। किन्तु, उपाध्याय जी के मौलिक विचारों का जितना अध्ययन होना चाहिए था, उतना अध्ययन व चिंतन नहीं हुआ।”

कार्यक्रम के अध्यक्ष राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने कहा कि “एकात्म मानवदर्शन केवल भारत के लिए सीमित नहीं है, यह तो पूरे विश्व के लिए हितकर है। भारत की यह परंपरा रही है। हमारा चिंतन ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के वैश्विक स्तर की ऊंचाई की कल्पनाओं को छूता है। आज के दौर में पूरी दुनिया जान गयी है कि साम्यवाद व पूंजीवाद सिर्फ दो ही विचारधारा के मार्ग नहीं हैं, तो तीसरा मार्ग भी है और वो है, एकात्म मानवदर्शन।”

एकात्म मानवदर्शन संकल्पना कोश की जानकारी देते हुए रवींद्र महाजन ने कहा कि “इस संकल्पना कोश में राष्ट्र जीवन से संबंधित 131 मूलभूत संकल्पना एकात्म मानवदर्शन के संदर्भ में कही गयी हैं। समाज, धर्म और तत्त्वज्ञान, आर्थिक व अभिशासनिक चार विभाग में तत्वज्ञान को विभाजित किया गया है। इसी में उस संकल्पना का मूल तत्त्व है। भारतीय चिंतन का आज का संदर्भ, ज्ञानी लोगों के विचार, उसमें प्रकट होने वाले भाव व अनुस्यूत भाव के बारे में विवेचन किया गया है। लेकिन होता क्या है कि अपप्रचार से सच्चे अर्थ में संभ्रम निर्माण किया जा सकता है। पूरे संदर्भ में पिछले चार साल से बड़े प्रयासों के साथ कोश की निर्मिति की गयी है।

ग्रंथ विमोचन के उपलक्ष्य में एकात्म मानवदर्शन विषय के विविध पहलुओं का विचार करने के लिए एक कार्यशाला का आयोजन किया गया था। इसमें एकात्म मानवदर्शन और विविध संदर्भ में सत्र आयोजित किए गए थे। जे. नंदकुमार, अर्थशास्त्री वरदराज बापट, पूर्व राज्यसभा सांसद महेश चंद्र शर्मा और प्रा. अनिरुद्ध देशपांडे ने समय-समय पर मार्गदर्शन किया।

सीआईएसआर के कार्यवाह हरिभाऊ मिरासदार ने ग्रंथ लेखन के उद्देश्य की जानकारी दी। ग्रंथ लेखन में योगदान देने वाले लेखकों का सम्मान किया गया। प्रा. प्रशांत साठे ने कार्यक्रम संचालन और आभार प्रकट किया।

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