एफसीआरए में बदलाव के बाद राज्यों को भी मतांतरण के विरुद्ध कानून बनाने चाहिए

एफसीआरए में बदलाव के बाद राज्यों को भी मतांतरण के विरुद्ध कानून बनाने चाहिए

हृदयनारायण दीक्षित

एफसीआरए में बदलाव के बाद राज्यों को भी मतांतरण के विरुद्ध कानून बनाने चाहिए

मतांतरण से राष्ट्रांतरण होता है। प्रत्येक राष्ट्र की एक भूमि और संस्कृति होती है। इतिहास भी होता है। राष्ट्र के निवासियों की अपनी भूमि और संस्कृति के प्रति श्रद्धा होती है। भूमि, संस्कृति और इतिहास के प्रति गौरव बोध से राष्ट्र मजबूत होते हैं। भारत के लोगों के लिए यह भूमि माता है। मतांतरित व्यक्ति की अपनी भूमि और संस्कृति के प्रति श्रद्धा बदल जाती है। नोबेल सम्मानित वीएस नायपॉल ने ‘बियांड बिलीफ’ में लिखा है कि ‘जिनका पंथ परिवर्तन होता है, उनका अपना अतीत नष्ट होता है। अपना इतिहास कुचल जाता है। कहना होता है कि हमारे पूर्वजों की संस्कृति अस्तित्व में नहीं है और न ही कोई मायने रखती है।’ मिशनरी संगठन विदेशी आर्थिक सहायता द्वारा भारत में मतांतरण के काम में संलग्न हैं। भय, प्रलोभन और झूठी सेवा के माध्यम से वे आदिवासियों, वंचितों का मतांतरण कराते हैं। मतांतरित की पुण्य भूमि भारत नहीं रह जाती। वह अपनी संस्कृति से कट जाता है।

 

मतांतरण राष्ट्रीय अस्तित्व के लिए खतरा

मतांतरण राष्ट्रीय अस्तित्व के लिए खतरा है। केंद्र सरकार ने हाल में विदेशी अनुदान विनियमन अधिनियम यानी एफसीआरए में संशोधन किया है। इसके पहले कुछ संगठनों के अनुमति पत्र निरस्त किए गए थे। संशोधित अधिनियम में सभी एनजीओ को 20 प्रतिशत से अधिक प्रशासनिक व्यय न करने के निर्देश हैं। अभी तक एनजीओ विदेशी सहायता का 50 प्रतिशत हिस्सा प्रशासनिक खाते में दिखाते थे। विदेशी अनुदान को किसी अन्य संगठन को हस्तांतरित करने पर रोक भी लगाई गई है।

 

विदेशी अनुदान द्वारा भारत को कमजोर करने की साजिश

अधिनियम में राष्ट्रीय सुरक्षा को क्षति पहुंचाने वाली किसी भी गतिविधि के लिए रोक की व्यवस्था है। अब एफसीआरए के लाइसेंस नवीनीकरण के लिए आधार संख्या देना अनिवार्य कर दिया गया है। लोक सेवक, सरकार या सरकारी नियंत्रण वाले निगमों को विदेशी अनुदान प्राप्त करने के अयोग्य घोषित किया गया है। सो विदेशी अनुदान द्वारा भारत को कमजोर करने की साजिश में जुटे व्यक्ति और समूह बिलबिला गए हैं। संशोधित कानून का विरोध किया जा रहा है। तृणमूल कांग्रेस के नेता सौगत राय ने कहा कि संशोधन अल्पसंख्यकों के लिए ठीक नहीं। कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने इसे विपक्ष की आवाज दबाने का प्रयास बताया।

ईसाई मतांतरण अंग्रेजी राज के समय से ही राष्ट्रीय चिंता का विषय है। मिशनरी संगठन उपचार, शिक्षा आदि सेवाओं के बदले गरीबों का मतांतरण कराते हैं। महात्मा गांधी ने 18 जुलाई, 1936 के हरिजन में लिखा था, ‘आप पुरस्कार के रूप में चाहते हैं कि आपके मरीज ईसाई बन जाएं।’ बीआर आंबेडकर भी इसी मत के थे। उन्होंने लिखा था कि, ‘गांधी के तर्क से वह सहमत हैं, लेकिन उन्हें मिशनरियों से स्पष्ट कह देना चाहिए था कि अपना काम रोक दो।’ एक समय अफ्रीकी आर्चबिशप डेसमंड टुटू ने कहा था, ‘जब मिशनरी अफ्रीका आए तो उनके पास बाइबिल थी और हमारे पास धरती।’ मिशनरी ने कहा, ‘हम सब प्रार्थना करें। हमने प्रार्थना की। आंखें खोलीं तो पाया कि हमारे हाथ में बाइबिल थी और भूमि उनके कब्जे में।’

 

भारत में ईसाई मतांतरण का मुख्य निशाना जनजाति समाज

भारत में ईसाई मतांतरण का मुख्य निशाना जनजाति समाज है। जनजाति समाज बहुल इलाकों के साथ अन्यत्र भी उनकी सक्रियता है। स्वतंत्रता के तीन-चार साल के भीतर ही मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार मतांतरण से परेशान हुई। मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल ने न्यायमूर्ति भवानी शंकर नियोगी की अध्यक्षता में जांच आयोग बनाया। आयोग ने 14 जिलों के 11,360 लोगों के बयान लिए। ईसाई संस्थाओं ने भी अपनी बात कही। आयोग ने मतांतरण के लक्ष्य से भारत आए विदेशी तत्वों को बाहर निकालने की सिफारिश की। उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एमएल रेगे की जांच समिति (1982) ने ईसाई मतांतरण को दंगों का कारण बताया। न्यायमूर्ति वेणुगोपाल आयोग ने मतांतरण रोकने के लिए कानून बनाने की सिफारिश की। ऑस्ट्रेलियाई पादरी ग्राहम स्टेंस और उनके बच्चों की हत्या की जांच करने वाले वाधवा आयोग ने भी ईसाई मतांतरण को चिन्हित किया।

भारत लंबे समय से ईसाई मतांतरण का निशाना है। गोवा पर पुर्तगाली कब्जे के बाद पादरी जेवियर ने हिंदुओं का भयंकर उत्पीड़न किया। गोवा में ईसाई कानून 1561 में लागू हुए। हिंदू प्रतीक धारण करना भी अपराध था। तिलक लगाना और घर में तुलसी का पौधा रोपना भी मृत्युदंड का अपराध बना। ‘फ्रांसिस जेवियर : द मैन एंड हिज मिशन’ के अनुसार एक दिन में छह हजार लोगों के सिर काटने पर जेवियर ने प्रसन्नता व्यक्त की। एआर पिरोलकर ने ‘द गोवा इनक्वीजन’ में लिखा, ‘आरोपी के हाथ-पांव काटना, मोमबत्ती से शरीर जलाना, रीढ़ तोड़ना, गोमांस खिलाने जैसे तमाम अमानवीय अत्याचार किए गए।’

 

संविधान सभा के अधिकांश सदस्य धर्म प्रचार के अधिकार के विरुद्ध थे

संविधान सभा में धर्म प्रचार के अधिकार (अनुच्छेद 25) पर बहस हुई। सभा के अधिकांश सदस्य इसके विरुद्ध थे। संविधान सभा में तजम्मुल हुसैन ने कहा कि, ‘मैं आपसे अपने तरीके से मुक्ति के लिए क्यों कहूं? आप भी मुझसे ऐसा क्यों कहें? धर्म प्रचार की क्या दरकार है?’ प्रो. केटी शाह ने धर्म प्रचार के विरोध में कहा, ‘यह गलत प्रभाव डालता है। यहां कई उदाहरण हैं, जहां अनुचित लाभ उठाकर धर्म परिवर्तन कराया जाता है।’ के. संथानम ने कहा, ‘कोई धन या अन्य अनुचित प्रभाव डालकर लोगों को अपने पंथ में लाता है तो उसमें राष्ट्र राज्य को हस्तक्षेप का अधिकार है।’

लोकनाथ मिश्र ने धर्म प्रचार को गुलामी का प्रस्ताव बताया। उन्होंने भारत विभाजन को मतांतरण का ही परिणाम बताया। सभा में विरोध बढ़ता देख केएम मुंशी ने कहा, ‘भारतीय ईसाई समुदाय ने इस शब्द को रखने पर जोर दिया है। नतीजा कुछ भी हो, हमने जो समझौते किए हैं, उन्हें मानना चाहिए।’ स्पष्ट है कि यह तत्कालीन नेतृत्व के समझौते का परिणाम था। इसी कारण पहली लोकसभा में ही जेठालाल हरिकिशन ने निजी विधेयक लाकर मतांतरण पर कानून बनाने की मांग की।

 

मतांतरण के विरुद्ध अलग से कानून बनाने चाहिए

प्रकाशवीर शास्त्री ने भी 1960 में निजी विधेयक प्रस्तुत किया। जनसंघ नेता अटल बिहारी वाजपेयी और कांग्रेस सांसद डॉ. राम सुभग सिंह, सेठ गोविंद दास ने भी इसका समर्थन किया। 1979 में ओमप्रकाश त्यागी ऐसा ही विधेयक लाए। लंबा समय बीत गया। मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों ने अधिनियम बनाए हैं, लेकिन लालच और धोखाधड़ी द्वारा मतांतरण की गतिविधियां जारी हैं। ऐसे में एफसीआरए में बदलाव के बाद राज्यों को भी मतांतरण के विरुद्ध अलग से कानून बनाने चाहिए।

(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं)
साभार विसंकें भारत

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *