औरंगजेब की प्रपौत्री ने लिखा था कि मंदिर तोड़कर खड़ा किया गया था ढांचा

मुस्लिम इतिहासकारों और लेखकों ने राम जन्मस्थान के बारे में खुलकर लिखा है. उनके द्वारा दर्ज जानकारियां राम मंदिर के पक्ष में अकाट्य प्रमाण बन गए 

 

राम जन्मभूमि पर प्रमाणों की एक लंबी कड़ी मुस्लिम लेखकों द्वारा दर्ज किए गए विवरणों में मिलती है. इन दस्तावेजों में बार-बार स्पष्ट उल्लेख आता है कि अयोध्या प्राचीन काल से हिंदुओं की आस्था का केंद्र रहा है और राम जन्मस्थान पर एक भव्य मंदिर था जिसे तोड़कर बाबर के सेनानायक मीर बाकी ने बाबरी ढाँचा खड़ा किया. यह तथ्य भी दृढ़ता से स्थापित होता है कि राम जन्मस्थान पर अपना अधिकार प्राप्त करने के लिए हिंदू लगातार संघर्ष करते रहे.
अकबर के मंत्री और औरंगजेब की प्रपौत्री द्वारा उल्लेख
अयोध्या का विवरण बताने वाले मुस्लिम लेखकों में पहला नाम अकबर के वजीर अबुल का है, जिसने आईने अकबरी’ में अवध अर्थात अयोध्या का जिक्र किया है. वो लिखता है कि श्रीराम त्रेता युग में हुए जो सर्वोच्च आध्यात्मिक सत्ता और आदर्श लौकिक सत्ता के साकार रूप थे.अबुल फ़ज़ल ने यह भी लिखा है कि अवध को अति प्राचीन क़ालीन पवित्रतम (धार्मिक ) स्थलों में से एक होने का गौरव प्राप्त है और राम के जन्मदिवस पर रामनवमी बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है. फज़ल ने विवादित बाबरी ढांचे का उल्लेख नहीं किया है. संभवतः इसका कारण यह है कि अबुल फज़ल का सारा कार्य मुगलों के प्रशासनिक तंत्र और संस्थागत विषयों पर केन्द्रित रहा और इसीलिए उसने अन्य किसी भी मंदिर अथवा भवन के विषय में कोई विवरण नहीं दिया.
औरंगजेब की बेटे बहादुर शाह के पुत्र आलमगीर की पुत्री द्वारा बड़ी स्पष्टता से लिखा गया वक्तव्य राम जन्मभूमि मंदिर को नष्ट किए जाने का यह सबसे पुराना ज्ञात विवरण है. 17वीं शताब्दी के अंत अथवा 18वीं शताब्दी के प्रारम्भ में रचित ‘सहिफ़ा-ए-चहल नसाइह बहादुरशाही’.‘चहल नसाइह’ का अर्थ होता है चालीस नसीहतें. इसमें लिखा गया है – “…… बादशाह के आदेशों (बा फ़रमाने बादशाही) के आधार पर जो मस्जिदें बनाई गयीं उन्हें नमाज़ अदा किए जाने और (उनमें) खुतबा पढ़े जाने से छूट नहीं दी गयी है. मथुरा, बनारस, अवध आदि स्थानों पर हिंदुओं के देवालयों यथा – कन्हैया के जन्म का स्थान, सीता रसोई स्थान, हनुमान का स्थान, जो हिंदुओं के अनुसार लंका की विजय के पश्चात वहाँ रामचंद्र के समीप बैठे थे – पर हिंदुओं (कुफ़्र) को बहुत श्रद्धा है. इन सभी को इस्लाम की शक्ति (प्रदर्शन) के लिए ध्वस्त करके इन सभी स्थानों पर मस्जिदों का निर्माण कर दिया गया था. इन मस्जिदों को जमा और जमीयत (जुम्मे की नमाज़ ) से छूट नहीं दी गयी है तथापि यह अनिवार्य किया गया है कि वहाँ कोई मूर्ति पूजा नहीं की जाए और मुसलमानों के कानों में शंख की आवाज़ ना पड़े …. ”
“जन्मस्थान का मंदिर राम का मूल जन्म स्थान था” – मिर्जा जान
वाजिद अली शाह के राज्य के दौरान 1855 ई. में हनुमान गढ़ी को हिंदुओं से फिर से छुड़ाने के लिए अमीर अली अमेठवीं के नेतृत्व में किए गए जिहाद में मिर्जा जान ने भाग लिया था. उसकी पुस्तक जिहाद के विफल हो जाने के तुरंत पश्चात तैयार हो गयी थी और आगामी वर्ष (1856 ई.) में लखनऊ में प्रकाशित कर दी गयी थी. अपनी पुस्तक के 9वें अध्याय में, जिसका शीर्षक ‘वाजिद अली शाह और उनका अहद’ है, बाबरी मस्जिद के निर्माण के विषय में उसका अपना कथन दिया गया है. मिर्ज़ा जान, जिसका दावा है कि उसने इसके लिए पुराने स्रोतों का अध्ययन किया है, इस किताब में लिखता है –“पिछले सुलतानों ने इस्लाम के प्रचार और महिमागान को प्रोत्साहित किया तथा अविश्वासियों (कुफ़्र) अर्थात हिंदुओं की शक्तियों को कुचला. इसी प्रकार फ़ैज़ाबाद और अवध को इस नीच प्रथा (कुफ़्र, ) से छुटकारा दिलाया. यह (अवध) एक बड़ा पूजा केंद्र था और राम के पिता के राज्य की राजधानी था. जिस स्थान पर बड़ा मंदिर था वहां एक बड़ी मस्जिद बनाई गई और जहां एक छोटा ‘मंडप’ था वहां एक छोटी कनाती मस्जिद बनाई गई. जन्मस्थान का मंदिर राम का मूल जन्म स्थान (मस्कत) था, जिससे लगी हुई सीता की रसोई है. सीता राम की पत्नी का नाम है, अतः उस स्थान पर बाबर बादशाह ने मूसा आशिकान के मार्गदर्शन में ऊंची (सरबलंद) मस्जिद बनवाई. वह मस्जिद आज तक लोगों में सीता की रसोई के नाम से जानी जाती है.”
“सैकड़ों साल से हिंदू यहां पूजा करते आए हैं” : मुअज्जिन, बाबरी मस्जिद 1858
बाबरी मस्जिद के ख़ातिब और मुअज्जन मुहम्मद असग़र ने ब्रिटिश सरकार को मुकदमा संख्या 884, मुहल्ला कोट रामचंद्र, अयोध्या में एक अभिवेदन दिनांक 30 नवंबर 1858 को दाख़िल किया. जन्मस्थान के बैरागियों के विरुद्ध अपनी शिकायत में उसका अभिकथन था कि हिंदुओं ने मस्जिद पर क़ब्ज़ा कर लिया है, उसमें उन्होंने मिट्टी का टीला बना लिया है, एक लम्बे बांस पर झंडा फहरा दिया है, एक देवमूर्ति की स्थापना कर दी है, पूजा प्रारम्भ कर दी है, दीवारों पर चारों तरफ़ राम का नाम लिख दिया है आदि-आदि। मुअज्जन ने यह भी लिखा कि निर्मित मंदिर मस्जिद के बाहरी स्थान पर (अर्थात मस्जिद की चारदीवारी के भीतर के प्रांगण में) जन्म-स्थान उजाड़ पड़ा था जहां सैकड़ों साल से हिंदू पूजा करते आए हैं. इससे इस तथ्य की पुष्टि होती है कि जन्म-स्थान यद्यपि बाबरी मस्जिद से आच्छादित हो गया था, हिंदू खुले स्थान पर सैकड़ों वर्षों से, मुग़लों और नवाबों के राजकाल में भी, पूजा करते आए थे और यह कि उन्होंने संपूर्ण जन्म-स्थान क्षेत्र पर अपना दावा बनाए रखा था.
“सीता की रसोई से संबद्ध स्थान पर भव्य बाबरी मस्जिद बनवाई गई” : रजब अली
उर्दू उपन्यासकार मिर्जा रजब अली बेग सरूर द्वारा लिखी गई ‘फ़सानाए इबरत’ का सन्दर्भ. डॉ. ज़की ककोखी ने अपनी पुस्तक में सरूर की इस पुस्तक का अंश जोड़ा है. जिसके अनुसार – ” बाबर बादशाह के राज्यकाल की अवधि में अवध में सीता-की-रसोई से संबद्ध स्थान पर एक भव्य मस्जिद बनवाई गई. यही बाबरी मस्जिद थी, क्योंकि इस काल में हिंदू प्रतिरोध करने की हिम्मत नहीं कर सकते थे, मस्जिद का निर्माण सैयद मीर आशिकान के मार्गदर्शन में हुआ, और ‘राम दरबार’ में फिदाई खान, सूबेदार, ने एक मस्जिद का निर्माण करवाया. औरंगजेब द्वारा हनुमानगढ़ी पर एक अन्य मस्जिद के निर्माण की चर्चा करते हुए लेखक कहता है कि “आगे चलकर, बक्सर में नवाब शुजाउद्दौला की पराजय के पश्चात बैरागियों ने गढ़ी पर कब्ज़ा कर लिया. ‘बैरागियों ने हनुमानगढ़ी पर बनी मस्जिद को मिटाकर उसकी जगह पर मंदिर बना दिया. तदुपरांत (‘बैरागियों द्वारा) बाबरी मस्जिद में, जो सीता की रसोई का क्षेत्र है, खुले रूप में पूजा की जाने लगी. (नवाब का ) प्रशासन इस मामले में कुछ भी नहीं कर सका.” सरूर ने ‘ सहीफाए-बहादुरशाही’ जिसकी प्रतिलिपि 1816 में की गई थी, को अपना स्रोत बताया है.
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