मीडिया और नेताओं की दोगली मानसिकता एक बार फिर उजागर हुई

मीडिया और नेताओं की दोगली मानसिकता एक बार फिर उजागर हुई

मीडिया और नेताओं की दोगली मानसिकता एक बार फिर उजागर हुईमीडिया और नेताओं की दोगली मानसिकता एक बार फिर उजागर 

जयपुर। तथाकथित सेकुलर वामपंथी नेता और मीडिया दक्षिणपंथी विचारधारा के लोगों पर हमेशा यह आरोप लगाते हैं कि ये वैमनस्य फैलाते हैं, सामाजिक समरसता को नुकसान पहुंचाते हैं और समाज को तोड़ने का काम करते हैं, लेकिन देश में जब भी उदयपुर हत्याकांड जैसी घटनाएं होती हैं, तब इन नेताओं और मीडिया की दोगली मानसिकता सामने आ जाती है। यह वह मानसिकता है जो हिन्दुओं को तो सार्वजनिक तौर पर लांछित करती है, लेकिन मुस्लिम पक्ष दोषी हो तो उसका नाम तक लेने से बचती है। ऐसा एक बार नहीं हमेशा होता है। इस बार भी कई नेताओं के ट्वीट और समाचार पत्र कुछ ऐसा ही करते दिख रहे हैं। उदयपुर में हिन्दू टेलर कन्हैयालाल की मुस्लिम युवकों द्वारा हत्या की घटना पर कांग्रेस और दूसरे दलों के नेताओं के बयान देख लीजिए या अंग्रेजी और तथाकथित “निष्पक्ष“ मीडिया की हैडलाइंस, आपको महसूस हो जाएगा कि हम किस दोगली मानसिकता के लोगों के बीच हैं और ऐसी स्थिति में जब देश का आम आदमी इन पर प्रश्न उठाता है तो ये उसे ही दोषी ठहरा देते हैं, लेकिन प्रश्न ये हैं कि देश के इस वातावरण के लिए क्या यह मानसिकता दोषी नहीं है, क्या इस पर प्रश्न नहीं उठने चाहिए?

पिछले दिनों राजस्थान में अलवर सहित कई स्थानों पर गोरक्षकों द्वारा जब गोतस्करों पर कार्रवाई की गई और उन्हें रोकने के प्रयास में कुछ हिंसात्मक घटनाएं हुईं तो यही नेता और मीडिया सीधे तौर पर हिन्दुओं को लांछित करते नजर आते थे। मीडिया की हैडलाइंस और समाचारों में “हिन्दू फेनेटिज्म“ जैसे शब्द छाए रहते थे। लेकिन उदयपुर की इस वीभत्स घटना, जिसे “रेयरेस्ट ऑफ रेयर केस” माना जा रहा है- के बाद स्वयं को निष्पक्ष और जिम्मेदार मीडिया बताने वाले समाचार पत्रों की हैडलाइंस आपको बता देंगी कि ये कितने निष्पक्ष और जिम्मेदार हैं। जैसे टाइम्स ऑफ इंडिया की हैडलाइन थी “टू कस्टमर्स बिहेड उदयपुर टेलर फॉर पोस्ट बैकिंग नूपुर शर्मा”। यानी इतना वीभत्स कांड करने वाले सिर्फ कस्टमर हो गए? वहीं द हिन्दू ने इस घटना पर जो सम्पादकीय लिखा है, उसमें भी दक्षिणपंथी विचारधारा को ही कहीं न कहीं दोषी बताने का प्रयास किया गया है। कुछ-कुछ इसी तरह की स्थिति इस तरह के कई अन्य समाचारपत्रों में भी देखी गई। जबकि यह तय मान कर चलिए कि यही घटना किसी हिन्दू या दक्षिणपंथी विचारधारा के व्यक्ति ने कर दी होती तो ये अखबार उस घटना से रंगे मिलते।

बहरहाल मीडिया ही नहीं हमारे तथाकथित बेहद जिम्मेदार नेताओं के बयानों को ही देख लीजिए। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी त्रिपुरा में पिछले वर्ष अक्टूबर में मुसलमानों पर हुए तथाकथित हमले के बाद अपने ट्वीट में लिखते हैं “त्रिपुरा में हमारे मुसलमान भाइयों पर क्रूरता हो रही है। हिन्दू के नाम पर नफरत व हिंसा करने वाले हिन्दू नहीं ढोंगी हैं।” वहीं उदयपुर की घटना के बाद राहुल गांधी के ट्वीट में हमला करने वालों के मजहब का जिक्र तक नहीं है और वो लिखते हैं “उदयपुर में हुई जघन्य हत्या से मैं बेहद स्तब्ध हूं। धर्म के नाम पर बर्बरता बर्दाश्त नहीं की जा सकती। इस हैवानियत से आतंक फैलाने वालों को तुरंत सजा मिले।”

कन्हैयालाल हत्या प्रकरण: मीडिया और नेताओं की दोगली मानसिकता एक बार फिर उजागर हुई

कुछ यही स्थिति दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की है जो अपराधी हिन्दू होने पर अपने ट्वीट में हिन्दुओं को जम कर लांछित करते हैं और यहां तक कहते हैं कि ये हिन्दुओं के वेश में गुंडे हैं, लेकिन उदयपुर की घटना के मामले में अपराधियों के मजहब का जिक्र तक नहीं करते।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी करौली में हुई हिंसा के समय शोभयात्रा में लगाए जा रहे नारों को घटना का कारण बता दिया था। उन्हें वो नारे तो सुनाई दे गए, लेकिन वो पत्थर दिखाई नहीं दिए जो शोभायात्रा में शामिल लोगों और स्वयं उनकी सरकार की पुलिस पर बरसाए गए।

ये सिर्फ उदाहरण मात्र हैं। आपको पूरे देश में इस तरह की दोहरी मानसिकता वाले नेता और लोग मिल जाएंगे। यहां प्रश्न यह उठता है कि भाईचारा निभाने और सामाजिक सौहार्द बनाए रखने की जिम्मेदारी क्या सिर्फ हिन्दुओं की है? …और सबसे अहम सवाल यह है कि क्या अपराधी को सिर्फ अपराधी की दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए? अपराधी हिन्दू है और पीड़ित मुसलमान तो उसे देश ही नहीं विदेश में भी मुद्दा बना दो, हिन्दुत्व को कटघरे में खड़ा करो और यदि उल्टा है तो आंखें बंद कर लो और चुप्पी साध जाओ। ऐसा तो कैसे चलेगा और कब तक चलेगा?

Print Friendly, PDF & Email
Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *