कश्मीरी हिंदुओं को अपना आंगन कब मिलेगा?

कश्मीरी हिंदुओं को अपना आंगन कब मिलेगा?

मीनाक्षी आचार्या

कश्मीरी हिंदुओं को अपना आंगन कब मिलेगा?

कश्मीर पर सत्ताधारी पार्टी की कश्मीर नीति तब ही सफल कही जा सकती है जब देश में अलग अलग हिस्सों में जिंदगी काट रहे कश्मीरी हिंदुओं को उनका आंगन पूरे सम्मान के साथ लौटाया जाएगा। इसके लिए सत्ता, समाज और सेना को जो भी कार्यवाही करनी पड़े, करनी चाहिए।

कश्मीर घाटी के हिंदू पिछले चालीस सालों से अपनी जड़ों से दूर हैं और अपनी जड़ों की ओर लौटने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इस्लामिक जेहाद से अपनी ही मिट्टी से उखाड़ दिए गए कश्मीरी हिंदुओं की प्रतीक्षा का अंत न जाने कब पूरा होगा!क्या उन्हें अपने आंगन में लौटने का अधिकार नहीं है! क्या उन्हें अपने घर सजाने का अधिकार नहीं है। क्यों उन्हें चालीस साल बाद भी उनकी जड़ों से मीलों दूर रहने को मजबूर किया जा रहा है। क्या कुछ भत्ता और धनराशि और दूसरी सहायता देकर उनके प्रति कर्तव्यों से हम मुक्त हो सकते हैं।

अपने घरों से दूर कश्मीरी हिंदुओं के बुजुर्गों के माध्यम से नई पीढ़ी को अपनी जड़ों की बातें सुनने को मिलती हैं। लेकिन कब तक बच्चों को उनसे कश्मीरियत के बारे में सुनने का मौका मिलेगा। कभी ना कभी तो उनका साथ अपने बूढ़े बुजुर्गों से दूर होगा। तो क्या कश्मीर का भावी  हिंदू सिर्फ किताबों में तस्वीरों में ही कश्मीर की वादियों को देख पाएगा। आज भी कई कश्मीरी हिंदू बुजुर्ग अपने घर के आंगन में अपने अंतिम समय का दीदार करना चाहते हैं। अपने प्राण उसी जमीन पर त्यागना चाहते हैं जहां उनका जन्म हुआ था । कितनी दुर्भाग्य की बात है कि कश्मीरी हिंदुओं के जीवन पर सार्थक काम नहीं हो पाया है। बूढ़ा जानवर अपने क्षेत्र अधिकार के लिए संघर्ष करता है। यह प्रकृति का नियम है, जो बलवान है वही उसी क्षेत्र का मालिक भी है। तो क्या आज कश्मीर में हिंदू नौजवानों को अपना बलिदान देकर अपना स्थान हासिल करना पड़ेगा।

क्या हम मान चुके हैं कि कश्मीर में हिंदुओं के लिए कोई स्थान नहीं है। उन्हें अपना स्थान बनाने के लिए अपनी ही जमीन पर अपना खून बहाकर अधिकार लेने पड़ेंगे। ऐसा लगता है कि कश्मीर घाटी में फिर से 1990 के घटनाक्रम को दोहराया जा रहा  है। जिस तरह दिनदहाड़े वहां हिंदु जनप्रतिनिधि की गोली मारकर हत्या की जा रही है, वह तो कुछ ऐसा ही संकेत देता है। यह सही है कि जम्मू कश्मीर से धारा 370 और 35 ए हटा दिया गया है। लेकिन असल काम अब तक उतनी तेजी से शुरू नहीं हुआ है, जिसकी उम्मीद थी। वक्त तेजी से फिसलता जा रहा है। हालांकि कश्मीर का एजेंडा लेकर काम करने वाली सरकार के लिए सात साल बहुत ज्यादा नहीं होते, लेकिन फिर भी सरकार में इतनी ताकत होती हैं कि वह चाहे तो तस्वीर बदल सकती है। घाटी के अलगाववादी तत्वों से सरकार और सेना को निर्मम तरीके से निपटा जाना चाहिए। आतंकियों और उनके संरक्षकों के समूल नाश के लिए विशेष अभियान चलाकर ऐसा माहौल बना देना चाहिए कि घाटी में कोई आतंकी बनने के बारे में सोच भी नहीं सकें।

कश्मीर पर सत्ताधारी पार्टी की कश्मीर नीति तब ही सफल कही जा सकती है जब देश में अलग अलग हिस्सों में जिंदगी काट रहे कश्मीरी हिंदुओं को उनका आंगन पूरे सम्मान के साथ लौटाया जाएगा। इसके लिए सत्ता, समाज और सेना को जो भी कार्यवाही करनी पड़े, करनी चाहिए। इसके लिए चाहे तो वहां देश के मार्शल कौम या फिर भूतपूर्व सैनिकों के संरक्षण में कश्मीरी हिंदुओं को बसाने का काम शुरू किया जा सकता है। या फिर नए सिरे कॉलोनिया बसाकर उनकी रहने, व्यापार की सुरक्षित व्यवस्था की जानी चाहिए।

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