अक्टूबर का काला महीना, जब निर्दोष कश्मीरी हिंदुओं को चुन चुनकर मारा गया

अक्टूबर का काला महीना, जब निर्दोष कश्मीरी हिंदुओं को चुन चुनकर मारा गया
अक्टूबर का काला महीना, जब निर्दोष कश्मीरी हिंदुओं को चुन चुनकर मारा गया
1990 के अक्टूबर का महीना कश्मीर के इतिहास में काले अक्षरों में लिखा जाएगा। इस महीने में इस्लामिक आतंकियों ने एक के बाद एक लगातार निर्दोष हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया था। उद्देश्य था घाटी को हिंदू विहीन करना, उन्हें कन्वर्जन के लिए या फिर भाग जाने के लिए मजबूर करना।

बात 4 नवंबर 1989 की है, इस दिन जेकेएलएफ (JKLF) के इस्लामिक आतंकियों ने श्रीनगर के भीड़भाड़ वाले इलाके करण नगर में पूर्व सेशन जज नीलकंठ गंजू की गोली मारकर हत्या कर हिंदुओं को यह संदेश दिया था कि घाटी में अब वे सुरक्षित नहीं हैं। हुआ भी यही, अगले एक साल में लाखों हिंदुओं को उस मिट्टी को हमेशा के लिए छोड़ना पड़ा जिसमें उनके पूर्वज हज़ारों सालों से रहते आये थे।

अक्टूबर 1990 आते-आते जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) समेत अनेक संगठनों के इस्लामिक आतंकी स्थानीय मुस्लिमों के साथ मिलकर सैकड़ों हिंदुओं की हत्या और बलात्कार की वारदात को अंजाम दे चुके थे। कश्मीर घाटी में बर्फबारी की आहट से पहले अक्टूबर के इस महीने में हत्याएं तेज़ हो गयी थीं। इस्लामिक कट्टरपंथ के शिकार लोगों में कुछ नाम नीचे उल्लेखित हैं।

6 अक्टूबर, 1990, जिंदालाल पंडित-

59 साल के जिंदालाल पंडित को जेकेएलएफ आतंकियों ने हंदवाड़ा के भगतपोरा इलाके से किडनैप किया और स्टील वायर से गला घोंटकर उनकी हत्या कर दी। आतंकियों ने जिंदालाल की लाश को सेब के बागान में फेंक दिया।
6 अक्टूबर, 1990, डीपी खजांची-
कन्याकदल, श्रीनगर में रहने वाले डीपी खजांची का इस दिन 50वां जन्मदिन था। फिजिक्स के प्रोफेसर को आतंकियों ने रास्ते में गोली से छलनी कर दिया।
7 अक्टूबर, 1990, जगर नाथ पंडिता-

47 वर्षीय जगर नाथ पंडिता हंदवाड़ा के भगतपोरा में एक किसान थे, आतंकियों ने जगर नाथ को उनके घर से किडनैप किया और उनके ही सेब के बागान में ले गये, जहॉं रात भर उन्हें टॉर्चर किया औऱ स्टील के तारों से गला घोंटकर हत्या कर दी।

9 अक्टूबर 1990, मोहन लाल और रमेश कुमार

अनंतनाग के काज़ीगुंड इलाके में आतंकियों ने मोहन लाल और रमेश कुमार नाम के दो भाइयों को किडनैप किया और उनकी हत्या कर दी। दोनों की लाश हाईवे के पास मिली, जिनसे साबित हुआ कि आतंकियों ने दोनों भाईयों को बुरी तरह टॉर्चर कर मारा था।

12 अक्टूबर 1990, पुष्कर नाथ राजदान-

पुलवामा के खोनमुहा इलाके में रहने वाले 57 वर्षीय पुष्कर नाथ राजदान अपने घर में थे। जहां साथ में 2 बेटे और एक बेटी समेत पत्नी भी मौजूद थी। तभी कुछ आतंकियों जबरन घर में घुसे और राजदान को खींचकर बाहर ले गये। उनकी पत्नी और बच्चे चीखते-चिल्लाते रहे, लेकिन कोई सहायता को नहीं आया। आतंकियों ने पुष्कर नाथ के हृदय को निशाना बनाते हुए गोली मारी और फरार हो गये। घरवाले पुष्कर नाथ को तुरंत श्रीनगर के बादामी बाग अस्पताल लेकर आये। यहां ऑपरेशन किया गया। लेकिन उनको बचाया नहीं जा सका।

14 अक्टूबर 1990, ऊषा कौल-

श्रीनगर के आहकदल इलाके में आतंकियों का एक ग्रुप एक कश्मीरी हिंदू के घर में घुसा। यहां आतंकियों ने घर में मौजूद 3 सदस्यों को गोली मार दी। इनमें राजेंद्र कौल और उनकी पत्नी ऊषा कौल और अन्य सदस्य डॉ. शिवांजी शामिल थे। ऊषा कौल प्रेग्नेंट थीं। वो आतंकियों के सामने गिड़गिड़ाये लेकिन आतंकियों ने इन मासूमों को नहीं बख्शा और गोली मारकर फरार हो गये। इन्हीं आतंकियों ने बाद में इसी इलाके में 2 और हिंदुओं चुन्नी लाल और कपूर चंद की हत्या कर दी। इन दोनों घटनाओं की जिम्मेदारी अल-उमर मुजाहिदीन ने ली थी।

15 अक्टूबर 1990, महेश्वर नाथ भट-

श्रीनगर में सुबह लगभग 8 बजे इस्लामिक आतंकी महेश्वर नाथ के घर में घुसे और उनके दामाद जो कि फॉरेस्ट ऑफिसर थे, के बारे में पूछताछ करने लगे। घर में उस समय उनकी पत्नी, बेटा, तीन बेटियां और दामाद मौजूद थे। आतंकियों की आहट पाकर दामाद घर में छिप गया। महेश्वर ने आतंकियों को झूठ बोला कि उनका दामाद जम्मू शिफ्ट हो चुका है और वो इस समय घर में नहीं है। इस पर आतंकियों ने महेश्वर को गोली मारी और फरार हो गये।

महेश्वर को बादामी बाग़ के अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन उनको बचाया नहीं जा सका। इस घटना के बाद महेश्वर के पूरे परिवार ने घाटी हमेशा के लिए छोड़ दी।

16 अक्टूबर 1990, पीपी सिंह-

जम्मू कश्मीर पुलिस में तैनात सिख पुलिस ऑफिसर असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर पीपी सिंह की आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी।

18 अक्टूबर 1991, कन्यालाल पेशिन-

54 साल के किसान कन्या लाल पेशिन अपनी पत्नी, 2 बेटों और 1 बेटी के साथ बांदीपोरा के पज़ालपोरा में रहते थे। आतंकियों ने 18 अक्टूबर की रात 9 बजे उनको उनके घर से किडनैप कर लिया। आतंकी कन्या लाल को गांव से 3 किमी दूर ले गये। यहां आतंकियों ने उन्हें बुरी तरह तड़पाया। उनके हाथों में कीलें ठोंक दीं। मुंह में कपड़ा ठूंस दिया, ताकि आवाज़ दूर तक न जाये। कन्या लाल की लाश अगले दिन खेत में पड़ी मिली। बाद में पता चला कि हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकियों ने उन की हत्या की थी। इस हत्या के बाद बांदीपोरा में भी कश्मीरी हिंदुओं ने घाटी छोड़ना तेज़ कर दिया।
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