कश्मीर में हिंदू-नरसंहार और भारतीय फिल्म जगत
रामस्वरूप अग्रवाल
1988-89 से 1990-92 के दौरान, विशेषकर जनवरी, 1990 में इस्लामिक जिहादियों द्वारा कश्मीरी हिंदुओं का नरसंहार किया गया, घोर अत्याचार और क्रूरता हुई। लगभग डेढ़ हजार हिंदू मारे गए। सरकारी आंकड़े कहते हैं कि 1990 से 1992 के मध्य कश्मीर घाटी से 70 हजार हिंदू परिवारों ने पलायन किया। एक परिवार के सदस्यों की औसत संख्या 4 भी मानें तो सरकार के अनुसार ही यह संख्या 2 लाख 80 हजार बनती है। वास्तविक संख्या ज्यादा है। इतने कश्मीरी पंडितों को वहां से भगा दिया गया। मस्जिदों से लाउडस्पीकर पर साफ सुनाई पड़ता था– मुसलमान बन जाओ या भाग जाओ या मारे जाओ, तीन ही विकल्प दिए गए। कहा गया कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा बनेगा, हिंदुओं यहां से चले जाओ परन्तु अपनी औरतों को छोड़कर।
इस नरसंहार और इस्लामी जिहाद की घटना को शेष भारत और विश्व से छुपाया गया। इतना ही बताया गया कि कश्मीरी पंडित अपनी मर्जी से कश्मीर से चले गए। क्या कहीं ऐसा होता है कि लोग अपने घरों को सामान सहित छोड़ कर भाग जाएं? और फिर कहां रहे वे?- जम्मू, दिल्ली व अन्य जगह शरणार्थी शिविरों में। एक छोटे कमरे में 10-10 या 12-15 लोग।
प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि इस नरसंहार एवं जिहाद की घटना पर अब तक किसी ने कोई फिल्म क्यों नहीं बनाई? यह नरसंहार इतिहास का, पाठ्यपुस्तकों का हिस्सा क्यों नहीं बना?
यहूदियों का जर्मनी में नरसंहार हुआ था दूसरे विश्व युद्ध के दौरान। पूरी दुनिया को मालूम है यह बात। यहूदियों के देश इजरायल ने कमीशन/आयोग/जांच समितियों के माध्यम से इस नरसंहार का पूरा विवरण इकट्ठा किया। कई फिल्में बनीं इस पर। जर्मनी के बाद के शासकों ने इस नरसंहार पर अफसोस जताया, दुख जताया। परन्तु ऐसा भारत में क्यों नहीं हुआ?
क्या इस नरसंहार के बाद कश्मीर पर फिल्में नहीं बनीं? बनी हैं। नरसंहार के तुरंत बाद बनी थी 1992 में रोजा। उसके बाद शौर्य, फिजा, यहां, फना, हाकिम, हैदर और शिकारा जैसी 7-8 फिल्में बन चुकी हैं, परन्तु किसी भी फिल्म में इस्लामिक जिहादियों द्वारा हिंदुओं के नरसंहार का जिक्र तक नहीं किया गया। कई थीं प्रेमकहानियां, तो कइयों में आतंकवाद का औचित्य बताने का प्रयास किया गया था कि फौज के कौन से तथाकथित अत्याचार से उसके बेटे ने बंदूक उठा ली थी।
‘बेमिसाल’ नाम की फिल्म में हीरो (अमिताभ बच्चन) कहता है, “इंडिया में जितने भी हिल स्टेशन (पर्वतीय स्थल) हैं वे सब अंग्रेजों ने खोजे थे, एक कश्मीर ही है जिसे मुगलों ने खोजा था।” सोचिए, हजारों लोगों तक क्या जानकारी गई कि मुगलों ने कश्मीर को खोजा! महाभारत काल से लेकर बारहवीं सदी तक कश्मीर पर राज करने वाले हिंदू राजाओं का क्रमबद्ध प्रामाणिक इतिहास तो इतिहासकार व कवि कल्हण अपनी पुस्तक ‘राजतरंगिणी’ में लिख गए हैं। मुगल भारत में आए थे 16वीं शताब्दी में। इससे पूर्व तो केरल से आदि शंकराचार्य 8वीं शताब्दी में कश्मीर पहुँच गए थे। उनके नाम से श्रीनगर में ‘शंकराचार्य मंदिर’ है। उनका वहां समाधि स्थल है। कश्मीर के पाक अधिकृत हिस्से में 5 हजार वर्ष पुराना शारदा मंदिर है, परन्तु बॉलीवुड (मुंबई की फिल्मी दुनिया) हमें बता रही है कि कश्मीर को मुगलों ने खोजा।
बॉलीवुड के कारनामों की सूची बहुत बड़ी है। फिर भी एक घटना बताने से रोक नहीं पा रहा हूँ। अनंतनाग में 1700 वर्ष पुराना सूर्य मंदिर है, जिसे बुतशिकन (मूर्तिभंजक) आक्रमणकारी सिकंदर ने तोड़ दिया था, परन्तु खंडहर बाकी थे और लोग उसे सूर्य मंदिर ही कहते रहे। 2014 में फिल्म हैदर आई। उसके बाद उस खंडित सूर्य मंदिर को “शैतान की गुफा” कहा जाने लगा।
स्वाधीन भारत में ऐसा नरसंहार कैसे संभव हुआ? इंदिरा गांधी ने जगमोहन को 1984 में जम्मू–कश्मीर का राज्यपाल नियुक्त किया था। बताया जाता है कि जुलाई, 1989 में अपना इस्तीफा देने से पूर्व जगमोहन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को चेतावनी दी थी कि घाटी में ‘घने इस्लामिक बादल’ छा रहे हैं। गुप्तचर एजेंसियों से भी समाचार मिल ही रहे थे। केन्द्र और राज्य सरकारों ने समय रहते आवश्यक कार्रवाई क्यों नहीं की?
फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ देखने के लिए भारतीय जनमानस में अभूतपूर्व उत्साह दिखाई दे रहा है। फिल्म देखना तभी सार्थक होगा जब कश्मीरी पंडितों को न्याय दिलाने के लिए जनमत का दबाव पैदा हो। भारत के मुसलमानों को आगे आकर कश्मीर नरसंहार की निंदा करनी होगी तथा मुसलमानों सहित हर भारतीय को यह शपथ भी लेनी होगी कि इस्लामिक जिहादियत को इस देश में सफल नहीं होने देंगे।