काबा पत्थर क्या वास्तव में शिवलिंग है?

काबा पत्थर क्या वास्तव में शिवलिंग है?

प्रागैस्लामी अरब में हिंदू-संस्कृति- (भाग-8)

गुंजन अग्रवाल

काबा पत्थर क्या वास्तव में शिवलिंग है?

हजरे अस्वद या अजर अश्वेत (शिवलिंग)?

काबा की पूर्वी बाहरी दीवार के कोने में सतह से 1.5 मीटर ऊपर 30 सेमी. (12 इंच) व्यासवाला लाल-काले रंग का एक अण्डाकार पत्थर चिना हुआ है, जिसे ‘अल्-हजर-उल्-अस्वद’ (Al-Hajar-ul-Aswad) कहा जाता है। इसे ‘हजर-ए-अस्वद’ (Hajar-e-Aswad), ‘हिजरे अस्वद’ (Hijre Aswad) ‘काला पत्थर’ (Black Stone) और ‘काबा पत्थर’ (Kābā Stone) भी कहा जाता है। इस पत्थर को इस्लाम में पवित्रतम वस्तु माना जाता है। दुनियाभर के मुसलमान इसी पत्थर का दर्शन करने, जितनी बार हो सके, मक्का जाते हैं। इस्लामी-परम्परानुसार यह पत्थर फ़रिश्ते ग़ैब्रियल (Angel Gabriel or Jibril) द्वारा पैग़ंबर अब्राहम को दिया गया था। इस्लामी-मान्यता से यह पत्थर मूलतः सफे़द था, किन्तु सहस्राब्दियों से अशुद्ध लोगों अथवा पापियों द्वारा छूते रहने से काला हो गया था। आमतौर पर यह पत्थर ‘किस्वत’ (काली चादर) से ढंका रहता है।

हज के दौरान किस्वत को हटाकर इसे दिखाया जाता है। दिखाने की विधि भी रोचक है। इस पत्थर को सीधे न दिखाकर योनि के आकार के चाँदी के एक बड़े भारी फ्रे़म में दिखाया जाता है। कभी-कभी इसे स्वर्ण-फ्रे़म में भी दिखाया जाता है। हज-यात्री फ्रे़म के बीचोंबीच बने एक गोलाकार छिद्र में झाँककर इसे देखते हैं और इसे चूमते हैं। काबा की सात प्रदक्षिणा करते समय प्रत्येक बार इसे देखने और चूमने का विधान है। कहने की आवश्यकता नहीं कि यह वही मक्केश्वर शिवलिंग है, जिसे मुसलमानों ने अधिगृहित कर लिया है। योनि के आकार के फ्रे़म में जड़ित पवित्र काला पत्थर शिवलिंग नहीं तो और क्या है? संस्कृत का ‘अजर-अश्वेत’ (अविनाशी/अमर अश्वेत/काला (पत्थर)) ही अरबी में विकसित होकर ‘हजरे अस्वद’ बन गया है— ‘अजर > ‘हजर’। फ़ारसी में इस पत्थर को ‘संगे-अस्वद’ कहा जाता है, जो ‘लिंग-अश्वेत’ का विकसित रूप प्रतीत होता है।

भविष्यमहापुराण में इसी शिवलिंग का उल्लेख आया है, जिसे राजा भोज ने पंचगव्य एवं गंगाजल से स्नान कराया था। इसे हम पूर्व में उद्धृत कर चुके हैं।

सुप्रसिद्ध यूरोपीय-लेखिका फै़नी पार्क्स (Fanny Parkes, née Frances Susannah Archer : 1794-1875) ने लिखा है : ‘हिंदुओं का दावा है कि काबा की दीवार में फँसा पवित्र मक्का के मन्दिर का काला पत्थर महादेव ही है। मुहम्मद ने वहाँ उसकी स्थापना तिरस्कारवश की। तथापि अपने प्राचीन धर्म से बिछुड़कर नये-नये बनाए गए मुसलमान उस देवता के प्रति अपने श्रद्धाभाव को न छोड़ सके और कुछ बुरे शकुन भी दिखलाई देने के कारण नये धर्म के देवताओं को उस श्रद्धाभाव के प्रति आनाकानी करनी पड़ी। (1)

काशीनाथ शास्त्री ने उल्लेख किया है— ‘मुसलमानों के तीर्थ मक्काशरीफ में भी ‘मक्केश्वर’ नामक शिवलिंग का होना शिवलीला ही कहनी पड़ेगी। वहाँ के ज़मज़म नामक कुएँ में भी एक शिवलिंग है, जिसकी पूजा खजूर की पत्तियों से होती है।’ (2) डॉ. ता.रा. उपासनी ने भी उल्लेख किया है कि मक्का में दो शिवलिंग हैं।’

सन् 930 ई. में क़रमैतियनों (Qarmatians) ने अजर-अश्वेत शिवलिंग को चुरा लिया था और पूर्वी अरब स्थित एक नख़लिस्तान में छिपा दिया था। सन् 952 ई. में इसे पुनः प्राप्त किया गया।

अजर-अश्वेत शिवलिंग का एक बड़ा और चौकोर खण्ड हैदराबाद (आंध्रप्रदेश) स्थित ‘मक्का मस्ज़िद’ में भी लगाया गया है। यह भारत की सबसे पुरानी और दूसरी सबसे बड़ी मस्ज़िद है। इस मस्ज़िद का निर्माण हैदराबाद के छठे शासक सुल्तान मुहम्मद कुतुबशाह (1611-1625) ने सन् 1617 ई. में शुरू करवाया था। यह काम अब्दुल्लाह कुतुबशाह (1625-1672) और तानाशाह के समय में भी जारी रहा और सन् 1694 ई. में मुग़ल-सम्राट् औरंगज़ेब (1658-1707) के समय में पूरा हुआ।

 (लेखक महामना मालवीय मिशन, नई दिल्ली में शोध-सहायक हैं तथा हिंदी त्रेमासिक सभ्यता संवादके कार्यकारी सम्पादक हैं)

संदर्भ सामग्रीः

  1. The Hindoos insist, that the Black Stone in the wall of the Kaaba, or sacred temple of Mecca, is no other than a form of Mahadeo; and that it was placed there by Mohammud out of contempt; but the newly-converted pilgrims would not give up the worship of the Black Stone, and sinistrous portents forced the ministers of the new religion to connive at it.’    —Wanderings of a Pilgrim. in search of the Pictureseque, During four and twenty years in the East; with revelations of Life in the Zenana, Vol. I, p. 463, Published by Pelham Richardson, London, 1950
  2. कल्याण (शिवोपासनांक), जनवरी, 1993 ई., पृ. 374, प्रकाशक: गीताप्रेस, गोरखपुर

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