किसान आंदोलन : उतरे कई मुखौटे…

किसान आंदोलन : उतरे कई मुखौटे...

तनया गड़करी

किसान आंदोलन : उतरे कई मुखौटे...

टिकरी बॉर्डर पर व्यक्ति को जिंदा जलाया

कोई आंदोलन जब उसे ही निगलने लग जाए जिसके नाम से वह चल रहा है तो समझिए कि षड्यंत्र बहुत गहरा है। जन आंदोलन मुख्यतः तीन परिस्थितियों में जन्म लेते है- प्रथम, जब कोई राष्ट्र अथवा समाज विदेशी सत्ता से मुक्ति पाने के लिए संघर्ष करे यथा भारतीय स्वाधीनता संग्राम। दूसरा, किसी समाज में दीर्घ काल से शोषण, अन्याय व अज्ञान का अंधकार पसरा हो- फ्रेंच क्रांति को इस श्रेणी में रखा जा सकता है। अथवा तीसरा, कोई ऐसी तात्कालिक घटना जो आम जनमानस को झकझोर कर रख दे। जैसे निर्भया काण्ड के बाद सम्पूर्ण राष्ट्र बेटियों की सुरक्षा के लिए आंदोलित होकर सड़कों पर आ खड़ा हुआ था। परंतु इनमें से एक भी स्थिति आज राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे कथित किसान आंदोलन पर लागू नहीं होती।

ज्ञातव्य है कि भारत सरकार द्वारा किसानों के हित में कृषि सुधार के प्रयास चल रहे थे। किसान नेताओं से बातचीत के दो चक्र पूरे हो चुके थे। तभी अचानक टुकड़े-टुकड़े गैंग सामने आ गया। धरातल पर कार्य करने वाले किसान संगठनों को किनारे कर यकायक ‘किसान आंदोलन’ घोषित कर दिया गया। देश की राजधानी को बंधक बनाने के प्रयास होने लगे। प्रारंभ में शाहीन बाग़ समर्थक तथा अलगाववादी खुलकर इस ‘किसान आंदोलन’ में सक्रिय थे। जब जनता ने प्रश्नचिह्न लगाया तो ये विषैले तत्व पर्दे के पीछे जा छिपे तथा राकेश टिकैत को इस आंदोलन का चेहरा बना दिया। उनके आँसू बहाते ही जातिगत विद्वेष ने भी पैर पसार लिए।

जय जवान-जय किसान- जय विज्ञान का नारा अंगीकार करने वाले भारत में गणतंत्र दिवस पर लाल किले पर हुए राष्ट्रीय ध्वज के अपमान को भुलाया नहीं जा सकता है। इसके बाद भी ‘किसान’ नामक संज्ञा के प्रति सहानुभूति ने देशवासियों को खुलकर इस षड्यंत्र का विरोध करने से रोके रखा। किंतु अब यह कथित आन्दोलन नरभक्षी हो चुका है। यहाँ एक निरपराध व्यक्ति को जीवित भून दिया जाता है ताकि उसे ‘आंदोलन का शहीद’ घोषित कर सहानुभूति बटोरी जा सके।

घटना 16 जून बुधवार रात्रि की है। टिकरी बॉर्डर पर कथित ‘किसान आन्दोलन’ के बीच 43 वर्षीय मुकेश मुदगिल को 4 ‘आंदोलनकारियों’ ने जीवित जला दिया। मुकेश पास ही के कसार गाँव के रहने वाले थे। मृत्यु पूर्व दिए गए बयान में मुकेश ने बताया था कि वह पिछले कुछ दिनों से आंदोलनकारियों के संपर्क में आए थे। घटना वाले दिन आरोपियों ने पहले उन्हें शराब पिलाई, फिर कहा कि आंदोलन के लिए शहीद हो जा। जब उन्होंने घर जाने की बात की तो उन पर ज्वलनशील पदार्थ उड़ेलकर आग लगा दी। मुकेश 90 प्रतिशत से अधिक जल चुके थे। वह स्वयं भी एक किसान ही थे।

आश्चर्य की बात है कि कैमरे के सामने फूट-फूटकर अश्रु बहाने वाले कथित किसान नेताओं के मुख से जीवित जला दिए गए इस युवा किसान के लिए एक शब्द भी नहीं फूटा, उलट संयुक्त किसान मोर्चा व राकेश टिकैत ने इस दुर्दांत हत्या को आत्महत्या बताकर पल्ला झाड लिया। इससे पूर्व फरवरी में एक किसान का शव संदिग्ध अवस्था में फंदे से लटकता मिला था तथा उस शव का उपयोग भी जनता से सहानुभूति बटोरने में किया गया था।

आन्दोलन की आड़ में छिपे विषैले तत्व मानव हत्याओं पर ही नहीं रुके अपितु महिलाओं के शोषण, दुर्व्यवहार व युवतियों से बलात्कार तक पहुँच गए। पहले सरकार द्वारा जमीन छीनने का डर दिखाकर गाँव की भोली-भाली वृद्ध महिलाओं को कड़ी धूप में बैठाया गया। उनसे झूठ बोलकर भारत विरोधी गैंग ने अपना चेहरा चमकाया। फिर क्रांति के नाम पर लड़कियों को फांसा गया। पिछले दिनों पश्चिम बंगाल की एक युवती को ब्लैकमेल कर कई दिनों तक गैंगरेप करने की वीभत्स घटना सामने आई थी। इससे पूर्व 2 अन्य महिलाओं से यौन दुर्व्यवहार की ख़बरों को दबा दिया गया था। कुल मिलाकर भारत विरोधी गैंग का यह कथित आन्दोलन महिलाओं के शोषण का अड्डा बन चुका है।

किसान आंदोलन : उतरे कई मुखौटे...

आंदोलनकारियों के भेष में बदमाशों की भीड़ से आसपास के गाँव वाले आतंकित हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार यहाँ बेटियों का घर से निकलना दूभर हो चुका है। नशे में धुत कथित आंदोलनकारियों के झुंड उनसे अभद्रता व दुर्व्यवहार करने की ताक में रहते हैं। विरोध करने पर ग्रामीणों की पिटाई कर दी जाती है। स्थानीय घरों व खेतों से फसलें व सामान चुराने, किसानों की जमीन पर कब्जा जमाकर बैठ जाने तथा खेतों में गंदगी फैलाने की शिकायतें भी सामने आती रहीं हैं।
यह कैसा किसान आंदोलन हैं जो एक-एक कर किसानों को ही निगलता जा रहा है? यह कैसा किसान आंदोलन है जो ग्रामीणों का जीवन नर्क बना रहा है? यह कैसी क्रांति है जो बेटियों के साथ सामूहिक बलात्कार, ब्लैकमेलिंग तथा दुर्व्यवहार को प्रश्रय दे रही है? देश जब कोरोना की भयानक महामारी से जूझ रहा है तब सेना से लेकर आम नागरिकों तक का रास्ता रोक देने वाले कुछ भी हों, अन्नदाता किसान तो नहीं हैं।

कम से कम अब तो उन लोगों की आँखें खुलनी चाहिए जो किसानों के नाम पर इस गहरे षड्यंत्र का अंध समर्थन कर रहे हैं। जागें! इससे पहले कि इन षड्यंत्रों में फँसकर आपका प्रिय देश यह भारत छिन्न-भिन्न हो जाए।

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