एमएसपी पर रिकॉर्ड खरीद से किसान आंदोलन बेमानी

एमएसपी पर रिकॉर्ड खरीद से किसान आंदोलन बेमानी

कुमार अज्ञात

एमएसपी पर रिकॉर्ड खरीद से किसान आंदोलन बेमानी

एक ओर जब कुछ किसान संगठन कृषि कानूनों की प्रतियां जलाकर विरोध दर्ज करा रहे हैं तो दूसरी ओर देश में गेहूं की रिकॉर्ड सरकारी खरीद हो रही है। अब तक 44.4 लाख किसानों से 76,000 करोड़ रुपये का गेहूं खरीदा जा चुका है। गेहूं खरीद की यह रकम बिना किसी बिचौलिए के सीधे किसानों के खातों में पहुंची है। जहां गेहूं की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर हो रही है, वहीं खुले बाजार में सरसों की कीमतें रिकॉर्ड बना रही हैं। कई मंडियों में सरसों 8,000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिकी है, जबकि सरसों का एमएसपी 4650 रुपये प्रति क्विंटल है। गेहूं और सरसों की खरीद-बिक्री के बनते रिकॉर्ड को देखें तो कुछेक किसान संगठनों द्वारा तीनों कृषि कानूनों का विरोध बेमानी ही लगता है।

किसान आंदोलन राजनीतिक विरोध में बदला:

किसान संगठन अब कृषि कानूनों के विरोध से आगे बढ़कर भाजपा को हराने की मुहिम में जुट गए हैं। इसी सिलसिले में राकेश टिकैत ने बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात कर उनसे समर्थन मांगा। वह खुलेआम कह रहे हैं कि बंगाल को अब पंजाब और उत्तर प्रदेश में दोहराना है। साफ है किसान आंदोलन राजनीतिक विरोध में बदल चुका है। यही कारण है कि आम किसानों ने इस आंदोलन से दूरी बना ली है। आंदोलन करने वाले किसान संगठन उन गलतियों से सबक सीखने को तैयार नहीं हैं, जिनके चलते खेती-किसानी बदहाली का शिकार बनी।

खेती-किसानी घाटे का सौदा बनी:

भारतीय खेती की सबसे बड़ी समस्या यह रही कि सरकारों का पूरा जोर दूरगामी महत्व वाले निवेश पर न होकर सब्सिडी देने पर रहा। यह सब्सिडी भी चुनिंदा क्षेत्रों-फसलों पर केंद्रित रही। इसका परिणाम यह निकला कि विविध फसलों की खेती करने वाला भारतीय किसान चुनिंदा फसलों की खेती में उलझकर रह गया। हरित क्रांति रूपी एकांगी कृषि विकास से शुरू में तो खेती में खुशहाली आई, लेकिन जल्दी ही उसकी सीमाएं प्रकट होने लगीं। विडंबना यह रही कि सरकारों ने हरित क्रांति की इन खामियों को दूर न करके सब्सिडी, मुफ्त बिजली-पानी, कर्जमाफी जैसे चुनावी पासे फेंकना शुरू कर दिए जिससे समस्या और गंभीर हुई। इस प्रकार धीरे-धीरे खेती-किसानी घाटे के सौदे में बदल गई।

खरीद-बिक्री से जुड़े बिचौलियों की ताकतवर लॉबी:

बदहाली के दुष्चक्र में फंसी खेती-किसानी को उबारने के लिए कृषि विशेषज्ञ लंबे समय से सुझाव दे रहे हैं कि विविधीकृत फसल प्रणाली अपनाई जाए, लेकिन गेहूं-धान केंद्रित फसल चक्र को तोड़ना आसान नहीं था। खेती-किसानी की इन्हीं खामियों को दूर करने और कृषि के आधुनिकीकरण के लिए मोदी सरकार ने तीन नए कृषि कानून बनाए। दुर्भाग्यवश गेहूं-धान की एक फसली खेती करने वाले किसानों और इनकी खरीद-बिक्री से जुड़े बिचौलियों की ताकतवर लॉबी को ये सुधार रास नहीं आ रहे हैं। इन कानूनों के जरिये सरकार सूचना प्रौद्योगिकी आधारित ऐसी व्यवस्था बना रही है, जहां किसान अपनी मर्जी से अपनी फसल कहीं भी बेच सकेंगे। किसानों को उपज की उचित कीमत मिलने से न सिर्फ खेती-किसानी लाभ का सौदा बनेगी, बल्कि पढ़े-लिखे लोग भी खेती करेंगे, जिससे गांवों में रोजगार के अवसर निकलेंगे। इससे शहरों की ओर होने वाले पलायन में भी कमी आएगी।

सरकार की एथनॉल नीति को अभूतपूर्व कामयाबी मिली

किसान नेता कुछ भी कहें, सरकार का पूरा जोर कृषि के विविधीकरण पर है। इससे न सिर्फ फसल चक्र का पालन होगा, बल्कि गेहूं-धान की एकफसली खेती से भी मुक्ति मिलेगी। सरकार इससे परिचित है कि केवल खेती से किसानों की आमदनी को दोगुना करने का लक्ष्य हासिल नहीं होगा। इसीलिए वह कृषि एवं ग्रामीण जीवन में आयपरक गतिविधियों को शामिल कर रही है। किसानों को उनकी उपज की लाभकारी कीमत दिलाने के लिए सरकार ने गन्ने के साथ-साथ गेहूं, चावल, मक्का और दूसरे खाद्यान्नों से भी एथनॉल उत्पादन को मंजूरी दे दी है। इससे न सिर्फ अतिरिक्त अनाज की खपत हो जाएगी, बल्कि पेट्रोलियम के आयात पर निर्भरता घटाने में भी मदद मिलेगी। सरकार की एथनॉल नीति को अभूतपूर्व कामयाबी मिली है। 2014 में जहां 38 करोड़ लीटर एथनॉल की खरीद हो रही थी, वहीं अब हर साल 320 करोड़ लीटर एथनॉल खरीदा जा रहा है।

पिछले साल पेट्रोलियम कंपनियों ने 21,000 करोड़ रुपये का एथनॉल खरीदा और इसका अधिकांश हिस्सा किसानों की जेब तक पहुंचा। इसी को देखते हुए मोदी सरकार ने पेट्रोल में 20 प्रतिशत एथनॉल मिलाने के लक्ष्य को पांच साल पहले अर्थात 2030 के बजाय 2025 कर दिया है। दालों के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल करने के बाद अब सरकार तिलहनों के घरेलू उत्पादन बढ़ाने पर फोकस कर रही है। सरकार बांस की खेती को भी बढ़ावा दे रही है। इसी तरह औषधीय पौधों अश्वगंधा, सहजन, शतावरी, मशरूम, स्ट्राबेरी, आंवला की खेती को भी प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इन औषधीय पौधों के कम उत्पादन के कारण किसानों को अच्छी कीमत मिलती है। इनकी खेती से न सिर्फ किसानों को लगातार आमदनी होती रहेगी, बल्कि गांवों में इनके प्रसंस्करण, भंडारण और विपणन का नेटवर्क बन जाएगा, जिससे रोजगार के भरपूर अवसर निकलेंगे।

मधु क्रांति पोर्टल और हनी कार्नर की शुरुआत:

नकदी फसलों की बिक्री के लिए सरकार उत्पाद विशेष के लिए पोर्टल बना रही है। जैसे मधुमक्खी पालकों को शहद का सही दाम दिलाने के लिए मधु क्रांति पोर्टल और हनी कार्नर की शुरुआत की गई है। यह पोर्टल डिजिटल प्लेटफॉर्म का काम करेगा। सरकार ने वन डिस्ट्रिक्ट वन फोकस प्रोडक्ट के लिए देश भर के 728 जिलों में कृषि, बागवानी, पशु, मुर्गीपालन, दुग्ध उत्पादन, मछली पालन और जलीय कृषि हेतु उत्पादों की पहचान की है। इसके अंतर्गत देश के 226 जिलों में फल, 40 जिलों में धान, 107 जिलों में सब्जियां और 105 जिलों में मसालों की खेती को बढ़ावा देकर दुनिया भर में ब्रांडिंग की जाएगी। इससे किसानों की आमदनी बढ़ने के साथ कृषि निर्यात में भी बढ़ोतरी होगी।

Print Friendly, PDF & Email
Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *