कुरान की 26 आयतें : क्यूं हंगामा है बरपा?

कुरान की 26 आयतें : क्यूं हंगामा है बरपा?

कुरान की 26 आयतें : क्यूं हंगामा है बरपा?

शिया मुस्लिम गुरु वसीम रिजवी ने कुरान की कुछ आयतों को विवादास्पद बताते हुए, सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। वसीम रिजवी के अनुसार, ये आयतें इंसानियत के मूल सिद्धांतों की अवहेलना और धर्म के नाम पर नफरत, घृणा, हत्या, खून खराबा फैलाने वाली हैं। रिज़वी ने कहा कि जब पूरे कुरान पाक में भाईचारे, प्रेम, खुलूस, न्याय, समानता, क्षमा, सहिष्णुता की बातें कही गई हैं, तो इन 26 आयतों में कत्ल, नफरत और कट्टरपन बढ़ाने वाली बातें कैसे कही जा सकती हैं। वसीम रिजवी का कहना है कि इन्हीं आयतों का हवाला देकर मुस्लिम नौजवानों का ब्रेनवॉश किया जा रहा है। उनको जेहाद के नाम पर भड़काया, बहकाया और उकसाया जा रहा है। इन्हीं की वजह से देश की एकता, अखंडता पर खतरा है।

आइए जानते हैं आखिर इन आयतों में लिखा क्या है।

1- Verse 9 Surah 5 فَاِذَاانْسَلَخَالۡاَشۡهُرُالۡحُـرُمُفَاقۡتُلُواالۡمُشۡرِكِيۡنَحَيۡثُوَجَدْتُّمُوۡهُمۡوَخُذُوۡهُمۡوَاحۡصُرُوۡهُمۡوَاقۡعُدُوۡالَهُمۡكُلَّمَرۡصَدٍ ۚفَاِنۡتَابُوۡاوَاَقَامُواالصَّلٰوةَوَاٰتَوُاالزَّكٰوةَفَخَلُّوۡاسَبِيۡلَهُمۡ ؕاِنَّاللّٰهَغَفُوۡرٌرَّحِيۡمٌ

अर्थ: ”फिर, जब रमजान के महीने बीत जाएं, तो ‘मुश्रिको’ (मूर्तिपूजक) को जहाँ-कहीं पाओ कत्ल करो, उन्हें पकड़ो और घेरो और हर घातकी जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे ‘तौबा’ कर लें ‘नमाज’ कायम करें और, जकात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो। निःसंदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील और दया करने वाला है।”

2- Verse 9 Surah 28 يٰۤاَيُّهَاالَّذِيۡنَاٰمَنُوۡۤااِنَّمَاالۡمُشۡرِكُوۡنَنَجَسٌفَلَايَقۡرَبُواالۡمَسۡجِدَالۡحَـرَامَبَعۡدَعَامِهِمۡهٰذَا ۚوَاِنۡخِفۡتُمۡعَيۡلَةًفَسَوۡفَيُغۡنِيۡكُمُاللّٰهُمِنۡفَضۡلِهٖۤاِنۡشَآءَ ؕاِنَّاللّٰهَعَلِيۡمٌحَكِيۡمٌ

अर्थ: ऐ ईमान लानेवालो! मुशरिक तो बस अपवित्र ही हैं। अतः इस वर्ष के पश्चात वे मस्जिदे-हराम के पास न आएँ। और यदि तुम्हें निर्धनता का भय हो तो आगे यदि अल्लाह चाहेगा तो तुम्हें अपने अनुग्रह से समृद्ध कर देगा। निश्चय ही अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, अत्यन्त तत्वदर्शी है।

3- Verse 4 Surah 101 وَاِذَاضَرَبۡتُمۡفِىالۡاَرۡضِفَلَيۡسَعَلَيۡكُمۡجُنَاحٌاَنۡتَقۡصُرُوۡامِنَالصَّلٰوةِ ۖاِنۡخِفۡتُمۡاَنۡيَّفۡتِنَكُمُالَّذِيۡنَكَفَرُوۡا ؕاِنَّالۡـكٰفِرِيۡنَكَانُوۡالَـكُمۡعَدُوًّامُّبِيۡنًا‏

अर्थ: और जब तुम धरती में यात्रा करो, तो इसमें तुम पर कोई गुनाह नहीं कि नमाज़ को कुछ संक्षिप्त कर दो; यदि तुम्हें इस बात का भय हो कि विधर्मी लोग तुम्हें सताएंगे और कष्ट पहुंचाएंगे। निश्चय ही विधर्मी लोग तुम्हारे खुले शत्रु हैं।

4- Verse 9 Surah 123 يٰۤـاَيُّهَاالَّذِيۡنَاٰمَنُوۡاقَاتِلُواالَّذِيۡنَيَلُوۡنَكُمۡمِّنَالۡكُفَّارِوَلۡيَجِدُوۡافِيۡكُمۡغِلۡظَةً ؕوَاعۡلَمُوۡاۤاَنَّاللّٰهَمَعَالۡمُتَّقِيۡنَ

अर्थ: ऐ ईमान लानेवालो! उन इनकार करनेवालों से लड़ो जो तुम्हारे निकट हैं और चाहिए कि वे तुममें सख़्ती पाएं, और जान रखो कि अल्लाह डर रखने वालों के साथ है।

5- Verse 4 Surah 56 اِنَّالَّذِيۡنَكَفَرُوۡابِاٰيٰتِنَاسَوۡفَنُصۡلِيۡهِمۡنَارًاؕكُلَّمَانَضِجَتۡجُلُوۡدُهُمۡبَدَّلۡنٰهُمۡجُلُوۡدًاغَيۡرَهَالِيَذُوۡقُواالۡعَذَابَ ؕاِنَّاللّٰهَكَانَعَزِيۡزًاحَكِيۡمًا‏

अर्थ: जिन लोगों ने हमारी आयतों का इनकार किया, उन्हें हम जल्द ही आग में झोंकेंगे। जब भी उनकी खालें पक जाएंगी, तो हम उन्हें दूसरी खालों में बदल दिया करेंगे, ताकि वे यातना का मज़ा चखते ही रहें। निस्संदेह अल्लाह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।

6- Verse 9 Surah 23 يٰۤاَيُّهَاالَّذِيۡنَاٰمَنُوۡالَاتَتَّخِذُوۡۤااٰبَآءَكُمۡوَاِخۡوَانَـكُمۡاَوۡلِيَآءَاِنِاسۡتَحَبُّواالۡـكُفۡرَعَلَىالۡاِيۡمَانِ ؕوَمَنۡيَّتَوَلَّهُمۡمِّنۡكُمۡفَاُولٰۤـئِكَهُمُالظّٰلِمُوۡنَ‏

अर्थ: ऐ ईमान लानेवालो! अपने बाप और अपने भाइयों को अपने मित्र न बनाओ यदि ईमान के मुक़ाबले में कुफ़्र उन्हें प्रिय हो। तुममें से जो कोई उन्हें अपना मित्र बनाएगा, तो ऐसे ही लोग अत्याचारी होंगे।

7- Verse 9 Surah 37 اِنَّمَاالنَّسِىۡٓءُزِيَادَةٌفِىالۡكُفۡرِ يُضَلُّبِهِالَّذِيۡنَكَفَرُوۡايُحِلُّوۡنَهٗعَامًاوَّيُحَرِّمُوۡنَهٗعَامًالِّيُوَاطِـُٔـوۡاعِدَّةَمَاحَرَّمَاللّٰهُفَيُحِلُّوۡامَاحَرَّمَاللّٰهُ ؕزُيِّنَلَهُمۡسُوۡۤءُاَعۡمَالِهِمۡ ؕوَاللّٰهُلَايَهۡدِىالۡقَوۡمَالۡـكٰفِرِيۡنَ

अर्थ: (आदर के महीनों का) हटाना तो बस कुफ़्र में एक वृद्धि है, जिससे इनकार करनेवाले गुमराही में पड़ते हैं। किसी वर्ष वे उसे हलाल (वैध) ठहरा लेते हैं और किसी वर्ष उसको हराम ठहरा लेते हैं, ताकि अल्लाह के आदृत (महीनों) की संख्या पूरी कर लें, और इस प्रकार अल्लाह के हराम किए हुए को वैध ठहरा लें। उनके अपने बुरे कर्म उनके लिए सुहाने हो गए हैं और अल्लाह इनकार करने वाले लोगों को सीधा मार्ग नहीं दिखाता।

8- Verse 5 Surah 57 يٰۤـاَيُّهَاالَّذِيۡنَاٰمَنُوۡالَاتَـتَّخِذُواالَّذِيۡنَاتَّخَذُوۡادِيۡنَكُمۡهُزُوًاوَّلَعِبًامِّنَالَّذِيۡنَاُوۡتُواالۡكِتٰبَمِنۡقَبۡلِكُمۡوَالۡـكُفَّارَاَوۡلِيَآءَ ۚوَاتَّقُوااللّٰهَاِنۡكُنۡتُمۡمُّؤۡمِنِيۡ

अर्थ: ऐ ईमान लानेवालो! तुमसे पहले जिनको किताब दी गई थी, जिन्होंने तुम्हारे धर्म को हंसी-खेल बना लिया है, उन्हें और इनकार करने वालों को अपना मित्र न बनाओ और अल्लाह का डर रखो यदि तुम ईमानवाले हो।

9- Verse 33 Surah 61 مَّلۡـعُوۡنِيۡنَ ۛۚاَيۡنَمَاثُقِفُوۡۤااُخِذُوۡاوَقُتِّلُوۡاتَقۡتِيۡلً

अर्थ: फिटकारे हुए होंगे। जहाँ कहीं पाए गए पकड़े जाएंगे और बुरी तरह जान से मारे जाएंगे।

10- Verse 21 Surah 98 اِنَّكُمۡوَمَاتَعۡبُدُوۡنَمِنۡدُوۡنِاللّٰهِحَصَبُجَهَـنَّمَؕاَنۡـتُمۡلَهَاوَارِدُوۡنَ

अर्थ: निश्चय ही तुम और वह कुछ जिनको तुम अल्लाह को छोड़कर पूजते हो सब जहन्नुम के ईधन हो। तुम उसके घाट उतरोगे।

11- Verse 32 Surah 22 وَمَنۡاَظۡلَمُمِمَّنۡذُكِّرَبِاٰيٰتِرَبِّهٖثُمَّاَعۡرَضَعَنۡهَاؕاِنَّامِنَالۡمُجۡرِمِيۡنَمُنۡتَقِمُوۡنَ

अर्थ: और उस व्यक्ति से बढ़कर अत्याचारी कौन होगा जिसे उसके रब की आयतों के द्वारा याद दिलाया जाए, फिर वह उनसे मुंह फेर ले? निश्चय ही हम अपराधियों से बदला लेकर रहेंगे।

12- Verse 48 Surah 20 وَعَدَكُمُاللّٰهُمَغَانِمَكَثِيۡرَةًتَاۡخُذُوۡنَهَافَعَجَّلَلَكُمۡهٰذِهٖوَكَفَّاَيۡدِىَالنَّاسِعَنۡكُمۡۚوَلِتَكُوۡنَاٰيَةًلِّلۡمُؤۡمِنِيۡنَوَيَهۡدِيَكُمۡصِرَاطًامُّسۡتَقِيۡمًاۙ

अर्थ: अल्लाह ने तुमसे बहुत-सी गनीमतों का वादा किया है, जिन्हें तुम प्राप्त करोगे। यह विजय तो उसने तुम्हें तात्कालिक रूप से निश्चित कर दी और लोगों के हाथ तुमसे रोक दिए (कि वे तुम पर आक्रमण करने का साहस न कर सकें) ताकि ईमानवालों के लिए एक निशानी हो और वह सीधे मार्ग की ओर तुम्हारा मार्गदर्शन करे।

13- Verse 8 Surah 69 فَكُلُوۡامِمَّاغَنِمۡتُمۡحَلٰلاًطَيِّبًاۖوَّاتَّقُوااللّٰهَ ؕاِنَّاللّٰهَغَفُوۡرٌرَّحِيۡمٌ

अर्थ: अतः जो कुछ ग़नीमत का माल तुमने प्राप्त किया है, उसे वैध-पवित्र समझकर खाओ और अल्लाह का डर रखो। निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील और अत्यन्त दयावान है।

14- Verse 66 Surah 9يٰۤاَيُّهَاالنَّبِىُّجَاهِدِالۡكُفَّارَوَالۡمُنٰفِقِيۡنَوَاغۡلُظۡعَلَيۡهِمۡؕوَمَاۡوٰٮهُمۡجَهَنَّمُؕوَبِئۡسَالۡمَصِيۡرُ ‏

अर्थ: ऐ नबी! इनकार करने वालों और कपटाचारियों से जिहाद करो और उनके साथ सख़्ती से पेश आओ। उनका ठिकाना जहन्नुम है और वह अन्ततः पहुंचने की बहुत बुरी जगह है।

15- Verse 41 Surah 27 فَلَـنُذِيۡقَنَّالَّذِيۡنَكَفَرُوۡاعَذَابًاشَدِيۡدًاۙوَّلَنَجۡزِيَنَّهُمۡاَسۡوَاَالَّذِىۡكَانُوۡايَعۡمَلُوۡنَ‏

अर्थ: अतः हम अवश्य ही उन लोगों को, जिन्होंने इनकार किया, कठोर यातना का मज़ा चखाएँगे, और हम अवश्य उन्हें उसका बदला देंगे जो निकृष्टतम कर्म वे करते रहे हैं।

16- Verse 41 Surah 28 ذٰلِكَجَزَآءُاَعۡدَآءِاللّٰهِالنَّارُ ۚلَهُمۡفِيۡهَادَارُالۡخُـلۡدِ ؕجَزَآءًۢبِمَاكَانُوۡابِاٰيٰتِنَايَجۡحَدُوۡنَ‏

अर्थ: अल्लाह के शत्रुओं का बदला है आग। उसी में उनका सदा का घर है, उसके बदले में जो वे हमारी आयतों का इनकार करते रहे।

17- Verse 9 Surah 111 اِنَّاللّٰهَاشۡتَرٰىمِنَالۡمُؤۡمِنِيۡنَاَنۡفُسَهُمۡوَاَمۡوَالَهُمۡبِاَنَّلَهُمُالۡجَـنَّةَ ؕيُقَاتِلُوۡنَفِىۡسَبِيۡلِاللّٰهِفَيَقۡتُلُوۡنَوَيُقۡتَلُوۡنَوَعۡدًاعَلَيۡهِحَقًّافِىالتَّوۡرٰٮةِوَالۡاِنۡجِيۡلِوَالۡقُرۡاٰنِ ؕوَمَنۡاَوۡفٰىبِعَهۡدِهٖمِنَاللّٰهِفَاسۡتَـبۡشِرُوۡابِبَيۡعِكُمُالَّذِىۡبَايَعۡتُمۡبِهٖؕوَذٰلِكَهُوَالۡفَوۡزُالۡعَظِيۡمُ

अर्थ: निस्संदेह अल्लाह ने ईमानवालों से उनके प्राण और उनके माल इसके बदले में ख़रीद लिए हैं कि उनके लिए जन्नत है। वे अल्लाह के मार्ग में लड़ते हैं, तो वे मारते भी हैं और मारे भी जाते हैं। यह उसके ज़िम्मे तौरात, इनजील और क़ुरआन में (किया गया) एक पक्का वादा है और अल्लाह से बढ़कर अपने वादे को पूरा करने वाला हो भी कौन सकता है? अतः अपने उस सौदे पर खु़शियाँ मनाओ, जो सौदा तुमने उससे किया है। यही सबसे बड़ी सफलता है।

18- Verse 9 Surah 58 وَمِنۡهُمۡمَّنۡيَّلۡمِزُكَفِىالصَّدَقٰتِ ۚفَاِنۡاُعۡطُوۡامِنۡهَارَضُوۡاوَاِنۡلَّمۡيُعۡطَوۡامِنۡهَاۤاِذَاهُمۡيَسۡخَطُوۡنَ‏

अर्थ: और उनमें से कुछ लोग सदक़ों के विषय में तुम पर चोटें करते हैं। किन्तु यदि उन्हें उसमें से दे दिया जाए तो प्रसन्न हो जाएँ और यदि उन्हें उसमें से न दिया गया तो क्या देखोगे कि वे क्रोधित होने लगते हैं।

19- Verse 8 Surah 65 يٰۤـاَيُّهَاالنَّبِىُّحَرِّضِالۡمُؤۡمِنِيۡنَعَلَىالۡقِتَالِ ؕاِنۡيَّكُنۡمِّنۡكُمۡعِشۡرُوۡنَصَابِرُوۡنَيَغۡلِبُوۡامِائَتَيۡنِ ۚوَاِنۡيَّكُنۡمِّنۡكُمۡمِّائَةٌيَّغۡلِبُوۡۤااَلۡفًامِّنَالَّذِيۡنَكَفَرُوۡابِاَنَّهُمۡقَوۡمٌلَّايَفۡقَهُوۡنَ

अर्थ: ऐ नबी! मोमिनों को जिहाद पर उभारो। यदि तुम्हारे बीस आदमी जमे होंगे, तो वे दो सौ पर प्रभावी होंगे और यदि तुममें से ऐसे सौ होंगे तो वे इनकार करने वालों में से एक हज़ार पर प्रभावी होंगे, क्योंकि वे नासमझ लोग हैं।

20- Verse 5 Surah 51 يٰۤـاَيُّهَاالَّذِيۡنَاٰمَنُوۡالَاتَتَّخِذُواالۡيَهُوۡدَوَالنَّصٰرٰۤىاَوۡلِيَآءَ ۘبَعۡضُهُمۡاَوۡلِيَآءُبَعۡضٍؕوَمَنۡيَّتَوَلَّهُمۡمِّنۡكُمۡفَاِنَّهٗمِنۡهُمۡؕاِنَّاللّٰهَلَايَهۡدِىالۡقَوۡمَالظّٰلِمِيۡنَ

अर्थ: ऐ ईमान लाने वालो! तुम यहूदियों और ईसाइयों को अपना मित्र (राज़दार) न बनाओ। वे (तुम्हारे विरुद्ध) परस्पर एक-दूसरे के मित्र हैं।  तुममें से जो कोई उनको अपना मित्र बनाएगा, वह उन्हीं लोगों में से होगा। निस्संदेह अल्लाह अत्याचारियों को मार्ग नहीं दिखाता।

21- Verse 9 Surah 29 قَاتِلُواالَّذِيۡنَلَايُؤۡمِنُوۡنَبِاللّٰهِوَلَابِالۡيَوۡمِالۡاٰخِرِوَلَايُحَرِّمُوۡنَمَاحَرَّمَاللّٰهُوَرَسُوۡلُهٗوَلَايَدِيۡنُوۡنَدِيۡنَالۡحَـقِّمِنَالَّذِيۡنَاُوۡتُواالۡـكِتٰبَحَتّٰىيُعۡطُواالۡجِزۡيَةَعَنۡيَّدٍوَّهُمۡصٰغِرُوۡنَ

अर्थ: वे किताब वाले जो न अल्लाह पर ईमान रखते हैं और न अन्तिम दिन पर और न अल्लाह और उसके रसूल के हराम ठहराए हुए को हराम ठहराते हैं और न सत्य धर्म का अनुपालन करते हैं, उनसे लड़ो, यहां तक कि वे सत्ता से विलग होकर और छोटे (अधीनस्थ) बनकर जजिया देने लगें।

22- Verse 5 Surah 14 وَمِنَالَّذِيۡنَقَالُوۡۤااِنَّانَصٰرٰٓىاَخَذۡنَامِيۡثَاقَهُمۡفَنَسُوۡاحَظًّامِّمَّاذُكِّرُوۡابِهٖفَاَغۡرَيۡنَابَيۡنَهُمُالۡعَدَاوَةَوَالۡبَغۡضَآءَاِلٰىيَوۡمِالۡقِيٰمَةِ ؕوَسَوۡفَيُنَبِّئُهُمُاللّٰهُبِمَاكَانُوۡايَصۡنَعُوۡنَ‏

अर्थ: हमने उन लोगों से भी दृढ़ वचन लिया था, जिन्होंने कहा था कि हम नसारा (ईसाई) हैं, किन्तु जो कुछ उन्हें जिसके द्वारा याद कराया गया था उसका एक बड़ा भाग भुला बैठे। फिर हमने उनके बीच क़यामत तक के लिए शत्रुता और द्वेष की आग भड़का दी, और अल्लाह जल्द उन्हें बता देगा, जो कुछ वे बनाते रहे थे।

23- Verse 4 Surah 89 وَدُّوۡالَوۡتَكۡفُرُوۡنَكَمَاكَفَرُوۡافَتَكُوۡنُوۡنَسَوَآءً فَلَاتَتَّخِذُوۡامِنۡهُمۡاَوۡلِيَآءَحَتّٰىيُهَاجِرُوۡافِىۡسَبِيۡلِاللّٰهِ ؕفَاِنۡتَوَلَّوۡافَخُذُوۡهُمۡوَاقۡتُلُوۡهُمۡحَيۡثُوَجَدتُّمُوۡهُمۡوَلَاتَتَّخِذُوۡامِنۡهُمۡوَلِيًّاوَّلَانَصِيۡرًا

अर्थ: वे तो चाहते हैं कि जिस प्रकार वे स्वयं अधर्मी हैं, उसी प्रकार तुम भी अधर्मी बनकर उन जैसे हो जाओ; तो तुम उनमें से अपने मित्र न बनाओ, जब तक कि वे अल्लाह के मार्ग में घर-बार न छोड़ें। फिर यदि वे इससे पीठ फेरें तो उन्हें पकड़ो, और उन्हें क़त्ल करो जहां कहीं भी उन्हें पाओ – तो उनमें से किसी को न अपना मित्र बनाना और न सहायक।

24- Verse 9 Surah 14قَاتِلُوۡهُمۡيُعَذِّبۡهُمُاللّٰهُبِاَيۡدِيۡكُمۡوَيُخۡزِهِمۡوَيَنۡصُرۡكُمۡعَلَيۡهِمۡوَيَشۡفِصُدُوۡرَقَوۡمٍمُّؤۡمِنِيۡنَۙ ‏

अर्थ: उनसे लड़ो। अल्लाह तुम्हारे हाथों से उन्हें यातना देगा और उन्हें अपमानित करेगा और उनके मुक़ाबले में वह तुम्हारी सहायता करेगा और ईमानवाले लोगों के दिलों का दुखमोचन करेगा।

25- Verse 3 Surah 151 سَنُلۡقِىۡفِىۡقُلُوۡبِالَّذِيۡنَكَفَرُواالرُّعۡبَبِمَاۤاَشۡرَكُوۡابِاللّٰهِمَالَمۡيُنَزِّلۡبِهٖسُلۡطٰنًا ۚوَمَاۡوٰٮهُمُالنَّارُؕوَبِئۡسَمَثۡوَىالظّٰلِمِيۡنَ

अर्थ: हम शीघ्र ही इनकार करने वालों के दिलों में धाक बिठा देंगे, इसलिए कि उन्होंने ऐसी चीज़ों को अल्लाह का साक्षी ठहराया है जिनके साथ उसने कोई सनद नहीं उतारी, और उनका ठिकाना आग (जहन्नम) है और अत्याचारियों का क्या ही बुरा ठिकाना है।

26- Verse 2 Surah 191 وَاقۡتُلُوۡهُمۡحَيۡثُثَقِفۡتُمُوۡهُمۡوَاَخۡرِجُوۡهُمۡمِّنۡحَيۡثُاَخۡرَجُوۡكُمۡ وَالۡفِتۡنَةُاَشَدُّمِنَالۡقَتۡلِۚوَلَاتُقٰتِلُوۡهُمۡعِنۡدَالۡمَسۡجِدِالۡحَـرَامِحَتّٰىيُقٰتِلُوۡكُمۡفِيۡهِۚفَاِنۡقٰتَلُوۡكُمۡفَاقۡتُلُوۡهُمۡؕكَذٰلِكَجَزَآءُالۡكٰفِرِيۡنَ

अर्थ: जहां कहीं उन पर क़ाबू पाओ, क़त्ल करो और उन्हें निकालो जहां से उन्होंने तुम्हें निकाला है, इसलिए कि फ़ितना (उपद्रव) क़त्ल से भी बढ़कर गम्भीर है। लेकिन मस्जिदे-हराम (काबा) के निकट तुम उनसे न लड़ो जब तक कि वे स्वयं तुमसे वहां युद्ध न करें। अतः यदि वे तुमसे युद्ध करें तो उन्हें क़त्ल करो – ऐसे इनकारियों का ऐसा ही बदला है।

सामान्य बुद्धि का व्यक्ति भी इन आयतों को पढ़कर इनका संदर्भ निकाल सकता है। आवश्यकता तो इस बात की है कि मुस्लिम समाज के बुद्धिजीवी लोगों को आगे आकर कुरान शरीफ के शुद्धिकरण के लिए कदम बढ़ाने चाहिए।

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