केंद्र सरकार के निर्णयों के चलते शिक्षा क्षेत्र में भारत विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर
प्रहलाद सबनानी
केंद्र सरकार के निर्णयों के चलते शिक्षा क्षेत्र में भारत विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर
वर्ष 1947 में जब भारत ने राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त की, उस समय शिक्षा के क्षेत्र में भारत के नागरिकों की स्थिति बहुत दयनीय थी। वर्ष 1950 में भारत की साक्षरता दर केवल 18 प्रतिशत थी। हालांकि उसी समय से भारत के नागरिकों को शिक्षित बनाने के उद्देश्य से कई कदम उठाए गए, परंतु वर्ष 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद से भारत में शिक्षा के क्षेत्र को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से कई निर्णय लिए गए, विशेष रूप से इंजीनियरिंग कॉलेज एवं मेडिकल कॉलेज की स्थापना के सम्बन्ध में लिए गए निर्णयों से आज इंजीनियर्स के मामले में भारत ने अमेरिका और चीन को भी पीछे छोड़ दिया है। आज दुनिया का हर चौथा इंजीनियर भारतीय है। नेशनल साइंस फाउंडेशन के साइंस और इंजीनियरिंग इंडीकेटर 2018 के अनुसार, दुनिया में साइंस और इंजीनियरिंग की 25 प्रतिशत डिग्री भारतीय छात्रों को दी जा रही है। जबकि, चीन के छात्रों को 22 प्रतिशत डिग्री मिल पा रही है। आज भारत में राष्ट्रीय साक्षरता दर लगभग 80 प्रतिशत को पार कर गई है।
भारत में बढ़ते शिक्षा के स्तर का ही परिणाम है कि आज वैश्विक स्तर पर भारत शिक्षा प्रणाली की दृष्टि से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया है। भारत में आज 3.5 करोड़ से अधिक छात्रों को 50,000 से अधिक शिक्षण संस्थानों में शिक्षा प्रदान की जा रही है। इसमें कई प्रतिष्ठित वैश्विक स्तर के संस्थान भी शामिल हैं, जो भारत को उच्च तकनीक व शिक्षा के क्षेत्र में विश्व में अग्रणी स्थान दिलाने में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। इसी कड़ी में लंदन के प्रतिष्ठित क्वाक्वेरेली साइमंड्स (क्यूएस) वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में भारत के कई विश्वविद्यालयों की स्थिति में बहुत सुधार दृष्टिगोचर हुआ है और इस सूची में भारत के कुल 41 विश्वविद्यालयों ने अपनी जगह बनाई है।
देश के छात्रों को तकनीकी रूप से दक्ष बनाने के उद्देश्य से अभी हाल ही में केंद्र सरकार ने भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) के साथ मिलकर एक अहम योजना बनाई है। जिसके अंर्तगत उच्च शिक्षा और स्नातक कर चुके एक करोड़ से ज्यादा छात्रों को ड्रोन, रोबोट तकनीक सहित उभरती हुई ऐसी सभी तकनीक में प्रशिक्षित किया जाएगा, जिसकी वैश्विक स्तर पर भारी मांग है। इस लक्ष्य को वर्ष 2024 से पहले ही प्राप्त कर लिया जाएगा। एआईसीटीई के अनुसार, योजना का उद्देश्य देश को ग्लोबल डिजिटल टैलेंट हब बनाना है, ताकि छात्रों को पढ़ाई के तुरंत बाद रोजगार मिल सके।
वैसे भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे पुरानी एवं महान संस्कृति मानी जाती है एवं भारत में शिक्षा को अत्यधिक महत्व देकर इसे प्रकाश का स्रोत मानकर मानव जीवन के विभिन क्षेत्रों को आलोकित किया जाता रहा है एवं यहां आध्यात्मिक उत्थान तथा भौतिक एवं विभिन्न उत्तरदायित्वों के विधिवत निर्वहन के लिये शिक्षा की महती आवश्यकता को सदा स्वीकार किया गया है। इस नाते प्राचीन काल से लेकर भारतीय सभ्यता विश्व की सर्वाधिक महत्वपूर्ण सभ्यताओं में से एक मानी जाती रही है।
भारत के विभिन्न वेदों, उपनिषदों एवं पुराणों में यह बताया भी गया है कि ज्ञान मनुष्य का तीसरा नेत्र है जो उसे समस्त तत्वों के मूल को जानने एवं जीवन की समस्त कठिनाइयों तथा बाधाओं को दूर करने में सहायता प्रदान करता है तथा सही कार्यों को करने की विधि बताता है। भारत में ज्ञान को मोक्ष का साधन भी माना गया है। प्राचीन भारतीयों का यह दृढ़ विश्वास था कि शिक्षा द्वारा प्राप्त एवं विकसित की गयी बुद्धि ही मनुष्य की वास्तविक शक्ति होती है।
प्राचीन भारत में तक्षशिला, पाटलीपुत्र, कान्यकुब्ज, मिथिला, धारा, तंजोर, काशी, कर्नाटक, नासिक आदि शिक्षा के प्रमुख वैश्विक केंद्र थे जहां विभिन्न देशों से छात्र शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे। कालांतर में नालन्दा विश्वविद्यालय (450 ई), वल्लभी (700 ई), विक्रमशिला (800 ई), आदि शिक्षण संस्थाएं भी स्थापित हुई थीं। तक्षशिला विश्वविद्यालय (400 ई के पूर्व) विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों में से एक रहा है एवं चाणक्य इस विश्वविद्यालय के आचार्य रहे हैं। इन वैश्विक शिक्षा केंद्रों में विद्यार्थी अध्ययन करके स्वतन्त्र रूप से जीविकोपार्जन करने हेतु धन अर्जन करने योग्य बन जाते थे।
प्राचीन भारत में विदेशों से विद्यार्थी शिक्षा अर्जन के लिए भारत आते थे। क्या भारत में शिक्षा व्यवस्था में सुधार कर पुनः विदेशों को भारत में शिक्षा अर्जन हेतु आकर्षित नहीं किया जाना चाहिए? इसके लिए हमें भारत की शिक्षा प्रणाली में आमूल चूल परिवर्तन करने होंगे और भारतीय संस्कृति की मजबूत जड़ों की ओर पुनः लौटना होगा। विकसित देशों में बसे लोग आज भौतिकवादी नीतियों से बहुत परेशानी अनुभव कर रहे हैं। आज अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों की आधी से ज़्यादा जनसंख्या मानसिक रोग से पीड़ित है और वह इन मानसिक बीमारियों से मुक्ति पाना चाहती है। जिसका हल केवल भारतीय प्राचीन संस्कृति को अपनाकर ही निकाला जा सकता है।
केंद्र सरकार शिक्षा क्षेत्र के सम्बंध में नीतियां बना रही है और इन नीतियों का क्रियान्वयन सफलता पूर्वक हो इसका भी पूरा पूरा ध्यान रखा जा रहा है। परंतु एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते क्या हम आने वाली पीढ़ी को सही मार्गदर्शन दे पा रहे हैं। इस ओर भी गम्भीर विचार करने की आज आवश्यकता है। आज हमारी युवा पीढ़ी के नायकों में फिल्म अभिनेता, अभिनेत्री, खिलाड़ी और राजनीतिज्ञ आदि शामिल हैं। लेकिन बहुत कम संख्या में हमारे युवाओं के नायक आदर्श वैज्ञानिक, शोधार्थी, शिक्षाशास्त्री एवं राष्ट्रीय नायक होंगे। यह स्थिति भारत के लिए ठीक नहीं है। जिस देश में अधिकतर युवा छात्रों के आदर्श अभिनेता, राजनेता और खिलाड़ी रहेंगे, उस देश की उन्नति किस प्रकार हो सकती है और वह देश बौद्धिक, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं रणनीतिक रूप से पिछड़ सकता है। आज आवश्यकता इस बात की है कि देश के युवाओं में देश प्रेम की भावना का विकास किया जाए ताकि उनमें “स्व” की भावना विकसित की जा सके। कई राष्ट्रों (जापान, इजराइल, ब्रिटेन, जर्मनी, आदि) ने अपने नागरिकों में “स्व” के भाव को जगाकर ही आर्थिक विकास किया है और आज ये देश विकसित राष्ट्र की श्रेणी में शामिल हैं। आज आवश्यकता इस बात की भी है कि आज की युवा पीढ़ी में हम इस प्रकार के संस्कार डालें कि वे प्रतिभाशाली, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, समाजसेवी, जुझारू, देशभक्त, राष्ट्रवादी, वीर लोगों को अपना आदर्श बनाएं और वे स्वयं भी इन संस्कारों को ग्रहण करें।