कोरोना के दौर में बढ़ाएं अपनी प्रतिरोधक क्षमता
कहते हैं जान है तो जहान है। आज पूरा विश्व कोविड महामारी से लड़ रहा है। वैज्ञानिक इसके निदान के लिए वैक्सीन और दवाई ढूंढने में लगे हैं। जैसा कि हम जानते हैं कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले शरीर को बैक्टीरिया, वायरस आदि रोग पैदा करने वाले सूक्ष्म जीव जल्दी अपनी गिरफ्त में लेते हैं। ऐसे में स्वस्थ रहने के लिए अच्छी रोग प्रतिरोधक क्षमता का होना बेहद जरूरी है। वर्तमान परिपेक्ष में कोविड महामारी से बचाव के लिए भी व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता ही सबसे बड़ा हथियार है।
आयुर्वेदीय ग्रंथों में आहार, विहार एवं रसायन सेवन का उल्लेख किया गया है। हजारों वर्षों से देश के लोगों द्वारा आचार्यों द्वारा बताए गए आहार, विहार एवं रसायनों का पालन एवं सेवन करके लम्बी आयु एवं स्वस्थ जीवन जीने का प्रचलन प्रत्यक्ष रूप से दृष्टिगोचर होता है।
इसी क्रम में कुछ रसायन द्रव्यों एवं मसालों का यहां उल्लेख किया जा रहा है जिनका नियमित सेवन कर हम अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सकते हैं-
आंवला- आंवला एक उत्तम रसायन है। इसके नियमित सेवन से शरीर को पोषण तो मिलता ही है इससे अद्भुत प्रकार से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। यह देखा गया है कि नियमित आंवले का सेवन करने वाले को कभी जुखाम खांसी की शिकायत नहीं होती है। आंवले का हम विभिन्न रूपों में सेवन कर सकते हैं, यथा- चूर्ण, स्वरस, मुरब्बा, चटनी, कैंडी इत्यादि। च्यवनप्राश आंवले का श्रेष्ठ उत्पाद है। इसके सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
गिलोय- गिलोय को अमृता भी कहते हैं। इसकी पत्तियों में कैल्शियम, प्रोटीन, फास्फोरस, और तने में स्टार्च पाया जाता है। गिलोय शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है साथ ही इसमें एंटीबायोटिक एवं एंटीवायरल तत्व भी होते हैं। गिलोय का हम अनेक प्रकार से सेवन कर सकते हैं, यथा- गिलोय के तने का एक अंगुल मोटा एवं 6 इंच लंबा टुकड़ा लेकर उसे बारीक कूटकर रात्रि में पानी में भिगो दें एवं प्रातः काल छानकर सेवन करें। इसे उबालकर क्वाथ बनाकर भी ले सकते हैं। गिलोय का चूर्ण 3-4 ग्राम की मात्रा में प्रातः सायं ले सकते हैं। गिलोय चूर्ण, गिलोय घन वटी, संशमनी वटी इत्यादि उत्पाद बाजार में उपलब्ध हैं।
तुलसी- तुलसी श्रेष्ठ एंटीवायरल औषधि है। इसकी पत्तियों में एक विशेष प्रकार का तेल होता है जो इसके पौधे के आसपास की हवा में फैल कर सुगंध फैलाता है एवं वातावरण को शुद्ध करता है। इसके एक से लेकर चार पांच पत्तों का नियमित सेवन किया जा सकती है।
इन सबके अतिरिक्त भी अश्वगंधा चूर्ण, सौंठ, काली मिर्च, दालचीनी, तेजपत्ता, जावित्री, जायफल, छोटी इलायची, बड़ी इलायची, हल्दी, अजवाइन, लहसुन, करी पत्ता, इत्यादि परंपरागत रूप से अपनी रसोई में काम में लिए जाने वाले मसालों का यथावश्यक मात्रा में सेवन कर हम अपने शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ा सकते हैं।
श्रीराम तिवाड़ी
आयुर्वेदाचार्य