क्रांतिकारी खुदीराम बोस

क्रांतिकारी खुदीराम बोस

क्रांतिकारी खुदीराम बोसक्रांतिकारी खुदीराम बोस

ब्रिटिश राज के विरुद्ध पर्चे बाँटने के आरोप में 15 वर्ष की आयु में पहली बार गिरफ्तार हुए थे क्रांतिकारी खुदीराम बोस। क्रांतिकारी संगठन ‘अनुशीलन समिति’ का सदस्य बन कम आयु में बम बनाना सीखा। उन दिनों मुजफ्फरपुर (बिहार) के अंग्रेज मजिस्ट्रेट डगलस किंग्सफोर्ड द्वारा छोटी-छोटी बातों पर भारतीयों को कड़ी से कड़ी सजा देने के कारण क्रांतिकारियों ने उससे बदला लेने का निर्णय लिया था। खुदीराम व प्रफुल्ल चाकी को यह अभियान पूरा करने का जिम्मा संगठन से मिला। मुजफ्फरपुर में वे किंग्सफोर्ड की दैनिक गतिविधियों पर दृष्टि रखने लगे। कोर्ट आते समय बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात रहता था। इसलिए वहाँ मारना मुश्किल लगा तो उन्होंने उसे ‘यूरोपियन क्लब’ जहाँ वह हर शाम को जाता था, से निकलते समय मारने की योजना बनाई। देर रात जैसे ही लाल बग्घी क्लब से निकली खुदीराम व प्रफुल्ल तुरंत चलती बग्गी पर चढ़े और बम गिराकर फरार हो गए। संयोग से उस दिन बग्घी में डगलस की जगह उसकी पत्नी और बैरिस्टर कैनेडी की बेटी थी जो अब यमलोक पहुँच चुकी थीं। आग की तरह यह समाचार पूरे शहर में फैल चुका थी। शहर के सभी रास्तों पर नाका-बंदी कर पुलिस बल तैनात कर दिया गया।

प्रफुल्ल किसी तरह कलकत्ता की ट्रेन में बैठ चुके थे। लेकिन जब उन्हें पता चला कि स्टेशन पर पुलिस गिरफ्तार करने के लिए तैयार खड़ी है तो उन्होंने अपने आप को गोली मार कर मृत्यु का वरण किया। दूसरी ओर खुदीराम अत्यधिक थकान के कारण एक स्थान पर पानी पीने के लिए रुके तो वहां पहले से बैठे दो हवलदारों को उनके ऊपर संदेह हो गया और पूछताछ के बहाने गिरफ्तार कर लिया। तभी उन्हें पता चला कि डगलस तो बच गया और उसके स्थान पर दो महिलाएं मारी गईं। खुदीराम को मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत किया गया। जहाँ उन्होंने हँसते हुए उक्त घटना की पूरी जिम्मेदारी अपने ऊपर ली। मुकदमे की सुनवाई का नाटक रचा गया और 11 अगस्त, 1908 को मात्र 18 साल के इस युवक को फाँसी का पुरस्कार मिला।

खुदीराम के बलिदान ने जनमानस के हृदय में इतना व्यापक स्थान बनाया कि स्कूल-कॉलेज के युवा ‘खुदीराम’ लिखी धोती पहनकर स्वतंत्रता की राह पर चल पड़े। ‘मैं खुदीराम बोस हूँ’ (वर्ष 2017) तथा खुदीराम बोस (वर्ष 2022) उनकी क्रांति यात्रा पर बनी सफल प्रेरणादायी फिल्में हैं। मुजफ्फरपुर जेल, जहां उन्हें फांसी दी गई थी, बाद में उसका नाम बदलकर ‘खुदीराम बोस मेमोरियल सेंट्रल जेल’ कर उनकी स्मृति को जीवंत बनाया गया है। खुदीराम कहा करते थे, ‘‘क्या गुलामी से बड़ी और कोई दूसरी बीमारी हो सकती है?’’

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *