खाटू के बाबा श्याम का फाल्गुनी मेला

खाटू के बाबा श्याम का फाल्गुनी मेला

मनोज गर्ग

खाटू के बाबा श्याम का फाल्गुनी मेलाखाटू के बाबा श्याम का फाल्गुनी मेला

लखदातार की जय, तीन बाणधारी की जय, खाटू नरेश की जय जैसे उद्घोष और हाथों में केसरिया व सतरंगी निशान (ध्वज) लेकर फाल्गुन की मस्ती के साथ नाचते-झूमते हुए देश-विदेश के श्रद्धालु बाबा श्याम के फाल्गुनी मेले में बाबा के दरबार में उपस्थित होते हैं। इस वर्ष 22 फरवरी से प्रारंभ हुआ यह मेला 4 मार्च तक चलेगा।

शेखावाटी के सीकर जिले में (रींगस से 18 किमी दूर) स्थित है बाबा श्याम का विशाल मंदिर। जहाँ महाबली भीम व हिडिम्बा के पौत्र एवं घटोत्कच व मोरवी के पुत्र वीर बर्बरीक का शीश विग्रह के रूप में स्थापित है। जबकि उनके धड़ की पूजा हिसार (हरियाणा) के एक गांव स्याहड़वा में होती है।

पौराणिक प्रसंग
खाटूश्याम जी की कथा महाभारत से जुड़ी है। खाटूश्याम जी का मूल नाम बर्बरीक है। अत्यधिक घुंघराले बालों के कारण उनका यह नाम पड़ा। बर्बरीक की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने तीन अजेय बाण दिए थे। जिसके कारण वे ‘तीन बाणधारी’ कहलाए। जिस समय महाभारत का युद्ध प्रारंभ हुआ, बर्बरीक ने माता से युद्ध में जाने की बात कही, तो माता ने कहा कि तुम युद्ध में जो पक्ष कमजोर हो उसकी ओर से लड़ना। श्रीकृष्ण वीर बर्बरीक के प्रण को सुनकर विचलित हो गए। बर्बरीक के प्रण के कारण कौरव-पांडवों के संभावित नाश को श्रीकृष्ण भांप गए थे। बर्बरीक को रोकने के लिए उन्होंने उसकी परीक्षा लेने का निश्चय किया। श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण वेश में प्रकट होकर बर्बरीक से कहा कि जिस पेड़ के नीचे मैं खड़ा हूँ क्या तुम एक ही तीर से उसके सभी पत्ते बींध सकते हो? इसी बीच श्रीकृष्ण ने पीपल का एक पत्ता अपने पैरों के नीचे छिपा लिया। परन्तु जैसे ही बर्बरीक ने बाण छोड़ा, कृष्ण के दबाए हुए पत्तों सहित पेड़ का प्रत्येक पत्ता बिंध गया।

ब्राह्मण वेशधारी कृष्ण ने बर्बरीक से शीश दान की याचना की। बर्बरीक के आग्रह पर श्रीकृष्ण ने अपने विराट स्वरूप के दर्शन दिए। वीर बर्बरीक ने कृष्ण के कहने पर जनकल्याण, परोपकार और धर्म रक्षा के लिए अपने शीश का दान कर दिया। वह दिन फाल्गुन माह की द्वादशी का दिन था और वे तभी से ‘शीश के दानी’ कहलाए। बर्बरीक ने श्रीकृष्ण से प्रार्थना की कि वे महाभारत का पूरा युद्ध देखना चाहते हैं। श्रीकृष्ण ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर युद्ध भूमि के समीप एक पहाड़ी पर उनके शीश को सुशोभित किया, जहाँ से बर्बरीक ने संपूर्ण युद्ध का दृश्य देखा। बर्बरीक की भक्ति से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने वरदान दिया कि कलियुग में तुम मेरे ‘श्याम’ नाम से पूजे जाओगे और तुम्हारे भक्तों का सभी प्रकार का कल्याण होगा।

एक जनश्रुति के अनुसार एक गाय नियमित रूप से एक स्थान पर अपना दूध गिरा जाती थी। तत्कालीन राजा को इस संबंध में स्वप्न आया और उसी प्रेरणा से उस स्थान की खुदाई करवाई गई फलतः बर्बरीक का शिलारूप विग्रह निकला। बाद में एक भव्य मंदिर का निर्माण कर उस विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा की गई। जहाँ शिलारूप विग्रह निकला वहां आज भी श्याम कुण्ड बना है। कृष्ण जन्माष्टमी, जलझूलनी एकादशी, होली, बसंत पंचमी विशेष रूप से मंदिर परिसर में मनाए जाते हैं।

फाल्गुन मेला
फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष में होली से पूर्व लगने वाला मेला सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। मेले के दौरान देश भर से आए भजन गायक खाटू में बाबा श्याम को अपने गीतों से अनवरत रिझाते हैं। भक्तों के बड़े-बड़े दल पदयात्रा करते व श्याम प्रभु के जयकारे लगाते हुए खाटू की ओर उमड़ते हैं। मुंबई, सूरत, कोलकाता, पंजाब, हरियाणा, बड़ौदा, गुजरात आदि स्थानों से भी बड़ी संख्या में भक्तगण बाबा श्याम के दर्शनों के लिए आते हैं।

बाबा श्याम के कुछ प्रसिद्ध नाम
शीश के दानी, हारे का सहारा, तीन बाण धारी, लखदातार, नीला घोड़ा रा असवार, खाटू नरेश जैसे नामों से बाबा श्याम भक्तों के बीच लोकप्रिय हैं। मेले के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु निशान (ध्वज) चढ़ाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि निशान भेंट करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

पवित्र श्याम कुण्ड
यह वह स्थान है जहां बाबा श्याम का विग्रह प्राप्त हुआ था। इसके पवित्र जल को आरोग्यकारक बताया है।

देश-विदेश में पूजे जाते हैं बाबा श्याम
बाबा श्याम के प्रति आस्था का भाव ऐसा है कि श्रद्धालुओं ने ऑस्ट्रेलिया, थाईलैण्ड, म्यांमार, नेपाल में भी बाबा के भव्य मंदिर स्थापित कर रखे हैं। पाकिस्तान में बाबा श्याम के दो प्रसिद्ध मंदिर हैं। एक हैदराबाद और दूसरा कराची में है।इस वर्ष मेले में श्रद्धालुओं के लिए दर्शन हेतु 14 पंक्तियों की व्यवस्था थी, जिससे 3 से 5 मिनट ही दर्शन के लिए इंतजार करना पड़ा। ड्रोन व सीसीटीवी कैमरों से पूरे मेला क्षेत्र पर निगरानी रखी गई। •

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