खैबर पख्तुनख्वा / 3

खैबर पख्तुनख्वा / 3 टुकड़े टुकड़े पाकिस्तान

टुकड़े टुकड़े पाकिस्तान / 8

प्रशांत पोळ

खैबर पख्तुनख्वा / 3 टुकड़े टुकड़े पाकिस्तानखैबर पख्तुनख्वा : टुकड़े टुकड़े पाकिस्तान

‘उमर दौड़ खटक’ ने पाकिस्तानी सेना पर आरोप लगाया है कि ‘वह (पाकिस्तानी सेना), वजीरिस्तान और स्वात क्षेत्र की पश्तूनी महिलाओं को, ‘हवस का गुलाम’ बनाकर रखती है। उसका कहना है कि सैकड़ों की संख्या में पश्तूनी महिलाओं को पाकिस्तानी सेना ने, उनका काम होने के बाद, लाहौर के वेश्यालयों में भेज दिया है।’

उमर दौड़ खटक अनेकों बार भारत आ चुका है। पूरे पश्तुनिस्तान में फैले विद्रोह का, पाकिस्तान के प्रति गुस्से का, वो प्रतीक है…!

इस्लामाबाद में बैठे पाकिस्तानी शासकों के विरुद्ध, खैबर पख्तूनवा के लड़ाकू पठानों ने हमेशा ही आवाज बुलंद की है और इस्लामाबाद की सरकार ने उन्हें हमेशा ही दबाने का प्रयास किया है।

पाकिस्तानी सरकार के विरोध के आंदोलनों की इस शृंखला में 2014 से एक जबरदस्त नाम सामने आ रहा है– ‘पख्तून तहफ्फुज मूवमेंट’ (PTM), अर्थात ‘पख्तून रक्षा आंदोलन’। डेरा इस्माइल खान की ‘गोमल यूनिवर्सिटी’ में पढ़ने वाले आठ लड़कों ने, लगभग आठ – नौ वर्ष पहले यह आंदोलन खड़ा किया था। पहले इसका नाम ‘महसूद तहफ्फुज’ था। महसूद वज़ीरिस्तान की एक जनजाति का नाम है, जिसके अधिकतर छात्र, गोमल यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे।

लेकिन 13 जनवरी, 2018 को इस आंदोलन के एक नेता, नकिबुल्लाह महसूद को पुलिस ने कराची में एक झूठे एनकाउंटर में मार गिराया। इससे छात्रों का गुस्सा भड़का और आंदोलन भी पूरे प्रदेश में फ़ैल गया। आंदोलन के इस फैलाव के बाद, इसके नाम में से महसूद शब्द हटाकर, ‘पख्तून’ कर दिया गया। आज यह आंदोलन खैबर पख्तूनवा के साथ, बलूचिस्तान प्रांत में भी फ़ैल रहा है। इसे पाकिस्तानी, ‘पीटीएम’ (Pashtun Tahafuz Movement) नाम से जानते हैं।

दिनांक 26 मई, 2019 को, नॉर्थ वज़ीरिस्तान जिले के खारकमर मिलिट्री चेक पोस्ट पर, पीटीएम के शासन विरोधी प्रदर्शन चल रहे थे। आंदोलन में लग रहे नारों से बौखलाकर पाकिस्तानी सेना ने इन प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोलियां चलाईं। इसमें पीटीएम के 13 कार्यकर्ता मारे गए और 25 गंभीर रूप से जख्मी हुए। इसकी जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई। पाकिस्तानी सेना के विरोध में प्रदर्शन तीव्र होने लगे। पाकिस्तानी सेना ने पीटीएम के धाकड़ सांसद, आली वझीर और मोहसिन डावर को गिरफ्तार कर लिया। 21 सितंबर तक ये दोनों, सेना की जेल में रहे। लेकिन विरोध का आंदोलन रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। आखिरकार पड़ोसी देश भारत, जब अपना गणतंत्र दिवस मना रहा था, अर्थात 26 जनवरी 2020 को, पाकिस्तानी पुलिस ने, पीटीएम के निर्विवाद नेता, ‘मंजूर पश्तिन’ को पेशावर से उठा लिया।

‘मंजूर पश्तिन’ खैबर पख्तूनख्वा के लोगों की आवाज हैं। वे मानव अधिकार कार्यकर्ता हैं। उन्हें पाकिस्तान तथा पाश्चात्य मीडिया में, ‘नया फ्रंटियर गांधी’ कहा जाता है। मात्र 26 वर्ष की आयु का यह लड़का, पूरे पीटीएम का नेतृत्व करता होगा, ऐसा लगता नहीं। मंजूर पश्तिन, एक उज्बेकी टोपी पहनता है, उसे माझरी हैट कहते हैं। पश्तुनी युवाओं में यह टोपी इतनी ज्यादा लोकप्रिय हो गई है कि लोग उसे अब मंजूर के नाम से ‘पश्तिन टोपी (Pashtin Hat) कहने लगे हैं। मंजूर पश्तिन को मानने वाले लाखों कार्यकर्ता खैबर पख्तूनवा में हैं। इसलिए 26 जनवरी की गिरफ्तारी के तुरंत बाद, पीटीएम के दो सांसद, अली वझीर और मोहसिन डावर ने जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किए।

पाकिस्तान में 3 से 4 करोड़ पश्तुन रहते हैं। आज उनका सर्वमान्य नेता, मंजूर पश्तिन है। पाकिस्तान की सरकार और पाकिस्तानी सेना, इस छब्बीस वर्षीय युवा नेता से इतनी ज्यादा डरी हुई है कि वह उसे जेल के बाहर देखना पसंद नहीं करती। पाकिस्तान सरकार को लगता है कि शायद मंजूर पश्तिन को गिरफ्तार कर के, वे पीटीएम का आंदोलन कुचल देंगे। लेकिन ऐसा संभव नहीं है। आज तक, पाकिस्तान की सेना और पुलिस से लड़ते हुए, पचास हजार से ज्यादा पश्तुन, मारे गए हैं। पाकिस्तान की सेना, पूरी बर्बरता के साथ, इस आंदोलन को कुचलना चाहती है।

अभी कुछ महीने पहले, इमरान खान को गिरफ्तार करने के बाद लोगों का गुस्सा पाकिस्तानी सेना पर फूट पड़ा था। इस घटना को छोड़ दें, तो पाकिस्तान में सेना के विरोध में बोलना बहुत बड़ा साहस का काम माना जाता है। लेकिन मंजूर पश्‍तीन खुल कर सेना के विरोध में बोलते हैं। अभी कुछ दिन पहले एक रैली में उन्होंने कहा था, “हमे बर्बाद करने वाली जगह हमें पहचाननी होगी और वह जगह है – जीएचक्यू (अर्थात पाकिस्तान का सेना मुख्यालय!)”

इस समय ‘पश्तून तहफुज मूवमेंट’ (पीटीएम) के साथ मिलकर मंजूर पश्तून काम कर रहे हैं। कुछ महीने पहले, जब पीटीएम के नेता आली वजीर को दो साल कैद में रखने के बाद रिहा किया गया, तो उनके स्वागत में लाखों लोगों ने रैली की। इस रैली को मंजूर पश्तीन और मंसूर पश्तीन ने संबोधित किया था।

सारा वज़ीरिस्तान इस समय असंतोष की आग में उबल रहा है। पश्तूनों के मानव अधिकारों से प्रारंभ यह आंदोलन अब पुरजोर तरीके से, ‘स्वतंत्र पश्तूनिस्तान’ की मांग कर रहा है। ऐसे समय में मंजूर पश्तिन को गिरफ्तार करना, सन 1971 में बंगाल के ‘अवामी लीग’ के नेता, शेख मुजीबुर रहमान की गिरफ्तारी की याद दिलाता है। इसलिए पाकिस्तान सरकार भी उन्हें गिरफ्तार करने में हिचक रही है। इसके कारण इस पूरे प्रदेश का वातावरण बिगड़ा है। किसी जमाने में बौद्ध धर्म का यह गढ़, आज आतंकवादियों के विभिन्न गुटों की युद्ध भूमि बना हुआ है।

‘पश्तून तहफ़ूज मूवमेंट’ (PTM) के सह संस्थापक मोहसिन डावर पाकिस्तान की नेशनल असेंबली (अपनी भाषा में ‘लोकसभा’) के सदस्य है। स्वतंत्र पश्तूनीस्तान के प्रबल समर्थक, मोहसिन डावर पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में संविधान संशोधन का एक बिल लाए थे, जिसमें ‘खैबर पख्तूनवा’ नाम से ‘खैबर’ शब्द को हटाने की मांग की गई थी। किन्तु अलग से पख्तूनवा या पश्तूनीस्तान की मांग में अफगानिस्तान भी एक मुद्दा है। अफगानिस्तान में लगभग ४५ प्रतिशत पश्तून हैं। इसलिए अफगानिस्तान भी अपना हक पश्तूनीस्तान पर जताता है। तालिबान, पेशावर और पख्तूनवा के क्षेत्र में अपनी घुसपैठ बढ़ा रहा है। इसी कारण से स्वतंत्र पश्तूनीस्तान का मुद्दा थोड़ा जटिल बन गया है।

अभी 30 जुलाई, 2023 को, खैबर पख्तुनख्वा के बाजौर जिले के खार गाव में ‘जमात उलेमा-ए-इस्लाम’ की रैली में एक आत्मघाती (सुसाइड) आतंकवादी ने बम से 56 लोगों को उड़ा दिया था। दो सौ से ज्यादा, गंभीर रूप से घायल हुए।

इसका अर्थ इतना ही है कि पाकिस्तानी सेना को, इस प्रदेश को अपने नियंत्रण में रखना, दिन-ब-दिन कठिन होता जा रहा है और बहुत अधिक दिन तक यह प्रदेश पाकिस्तान के साथ जुड़कर रहेगा, ऐसा लगता नहीं है।
(क्रमशः)

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