गणतंत्र पर षड्यंत्र

गणतंत्र पर षड्यंत्र

देवेन्द्र

गणतंत्र पर षड्यंत्र

निश्चित ही शाहीन बाग की तरह यह बहुत बड़ा षड्यंत्र था। हमारे नेतृत्व की सूझबूझ और सुरक्षाबलों के संयम के कारण सफल नहीं हो पाया अन्यथा कल देशद्रोही तत्वों की दिल्ली में लाशों के ढेर लगवाने की पूरी तैयारी थी ।

गणतंत्र दिवस पर कल जो अविस्मरणीय और गौरवान्वित करने वाली झांकियां राजपथ पर दिखाई पड़ रहीं थीं, दोपहर 12 बजे के बाद गौरवान्वित पलों को तथाकथित किसानों ने एक बदनुमा दाग में बदल दिया। पूरे घटनाक्रम के बाद किसान नेता मगरमच्छ के आंसू बहा रहे हैं। विपक्षी लोग दिखावे को हिंसा को गलत तो बता रहे हैं, किंतु दंगाइयों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करने की मांग कतई नहीं कर रहे, बल्कि सारा ठीकरा सरकार के सिर फोड़ कर एक तरह से उपद्रवियों की पीठ ही थपथपा रहे हैं।

पुलिस प्रशासन के साथ कई दौरों की बातचीत के बाद ट्रैक्टर मार्च के रूट के साथ विभिन्न शर्तें तय हुईं। इसमें कहीं भी यह तय नहीं रहा कि रैली में तलवार लेकर चलना है किंतु ऐसा हुआ, मतलब यह कि इन लोगों की नीयत पहले से ही ठीक नहीं थी। ये नहीं चाहते थे देश की सैन्य सामर्थ्य को दिन भर देश औऱ दुनिया देखे औऱ गर्व करे। इसीलिए शायद ये देशद्रोही 26 जनवरी के दिन ही ट्रैक्टर मार्च निकालने की जिद पर अड़े थे। गणतंत्र दिवस समारोह सम्पन्न होने से पूर्व ही योजना पूर्वक इनकी हरकतों की शर्मनाक तस्वीरें सभी चैनलों पर दिखनी शुरू हो गईं जो अब तक चल रहीं हैं। तलवारों का खुलेआम पुलिस के जवानों पर प्रयोग करते हुए उपद्रवी दिखाई पड़े। लाल किले की सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मियों को जिस तरह खाई में गिराया गया, उससे मुगलों औऱ अंग्रेजों के अत्याचार की याद आ गईं। अंतर ये था उस समय ऐसे अत्याचार शासक करते थे और आज किसानों के वेश में उपद्रवी भेड़िये कर रहे थे।

तलवारों का खुलेआम पुलिस के जवानों पर प्रयोग करते हुए उपद्रवी दिखाई पड़े

कई किसान नेता गोल-गोल बातें कर रहे हैं। किसान यूनियन का अध्यक्ष राकेश टिकैत दोगली बातें करते हुए कह रहा है कि पुलिस के लगाए बैरिकेट्स के कारण किसान रास्ता भटक गए थे। एक बार मान भी लिया जाए किसान रास्ता भटक गए थे तो फिर लाल किले पर चढ़कर राष्ट्रध्वज तिरंगे को फेंक कर एक धर्म विशेष का झंडा किसके इशारे पर लगाया गया? रास्ता भटकने का मतलब यह नहीं था कि देश की संप्रभुता पर आक्रमण किया जाए। ऐसे लोग न तो गुरु गोविन्दसिंह के बंदे औऱ न ही अन्नदाता किसान कहलाने का हक रखते हैं।

ये केवल विदेशी ताक़तों के इशारे पर देश को अपमानित करने वाले भाड़े के टट्टू गद्दार ही हो सकते हैं। इसमें एक ट्रैक्टर चालक मरा भी, उसे भी पुलिस की गोली से मरा बताने का षड्यंत्र रचा गया। किंतु कैमरे की फुटेज से सच्चाई सामने आ गई। वास्तव में ऐसे लोगों की मौत पर कोई अफसोस नहीं होना चाहिए। अब तो राकेश टिकैत का एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें वह किसानों को उकसा रहा है। डंडे और हथियार साथ लाने के लिए कह रहा है। सरकार को तुरंत ही आंदोलन के सभी नेताओं राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव, कक्का आदि को गिरफ्तार कर जेल में डालना चाहिए और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।

ये खालिस्तानियों की साजिश के मोहरे बने हुए हैं। काँग्रेस सांसद रवनीत बिट्टू स्वयं यह चीख चीख कर कह रहे हैं। पुलिस जांच निरंतर जारी है। कुछ एफआईआर दर्ज हुई हैं। निश्चित ही शाहीन बाग की तरह यह बहुत बड़ा षड्यंत्र था। हमारे नेतृत्व की सूझबूझ और सुरक्षाबलों के संयम के कारण सफल नहीं हो पाया। अन्यथा कल देशद्रोही तत्वों की दिल्ली में लाशों के ढेर लगवाने की पूरी तैयारी थी औऱ फिर विश्व पटल पर भारत को बदनाम करने, मोदी को मौत का सौदागर औऱ तानाशाह बताने वाली अर्बन नक्सलियों की फौज अपने काम पर लग जाती। अखबारों में बड़े बड़े लेख औऱ विदेशी चैनलों में गर्मागर्म बहस .. उद्देश्य कैसे भी मोदी का मान मर्दन करें। इस काम पर राहुल गाँधी, शरद पंवार, संजय राउत, सीताराम येचुरी, ममता बनर्जी तो लग भी गये, किंतु दिल्ली पुलिस की जाँच जारी है। कई चेहरों को बेनकाब किया जा चुका है औऱ अभी कई षडयंत्रकारियों के नकाब उतरने बाकी हैं।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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