गाथा शेरगढ़ री

गाथा शेरगढ़ री

तनेंद्र सिंह राठौड़ खिरजा

गाथा शेरगढ़ री

रणबांकों रणधीरों रा जस
रा मीठा गान अठे,
हेताळू मेहमानों रा जद
हरखा- हरखा मान अठे।

अठे चली है पुरवाई
पूतों सूं निपजी शान अठे,
रक्तों सूं रंज गई सार्वभौम जो
रजपूती राजस्थान अठे।

कण कण में गूंजे रजपूती
पग-पग पर थपिया थान अठे,
सिर कटिया अर लड़िया धड़
बा राजस्थानी शान अठे।

वीरों ने धावे श्रद्धालु
और श्रद्धा सूं भरिया भाव अठे,
शेरों री धर शेरगढ़ रा
चोखा मीठा चाव अठे।

खून सिंचियों समर खेत में
पाणों सूं गूंजे बलिदानी,
वीरों री गाथा वीर रस री
वीरों ने पूजे हर ढाणी।

गाथा गौरव गान करूं मैं
गूंजे खिरजा शान अठे,
प्रभु जेड़ा पूत अठे है
और रजपूती स्वाभिमान अठे।

धवल धोरों री धरती पूजे
केसरिया रो ताव अठे,
हल्दीघाटी पर्ण रंगी है
राणा रा पड़िया घाव अठे।

नतमस्तक होकर नमन करूं
धवल धरा अभिमान को,
शीश नवा दूं केसरिया को
रजपूती स्वाभिमान को।

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16 thoughts on “गाथा शेरगढ़ री

  1. अद्भुत काव्य सृजना ??? तनेंद्र जी का आभार

  2. सूरां री धर शेरगढ़ रो राजस्थानी भाषा में मिठो बखान सा धन्यवाद सूर्यवीर सिंह राठौड़ शेरगढ़

  3. तनेंद्र जी की लिखी हुई कविताएं असूरी आंनद प्रदान करती हैं हमारी शुभकामनाएं सदैव साथ हैं
    गोपाल ‘ सिंह ‘ राजपुताना

  4. वाहा हुकम वाहा।
    आप री लेखणी ने नमन

  5. बहुत खूब…… बहुत सुन्दर….. रचना…..तनेन्द्रसिंह जी

  6. बैरी से बदला लेने जो हँस हँस शीश चढ़ाते ।
    शीश कटे धड़ से अलबेले बढ़-बढ़ दाँव लगाते, मरकर जीते जाते।।
    ऐसे अलबेलो की धरा को नमन, वंदन

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