गाय के गोबर से बना रहे हैं चप्पल, गोबर उत्पादों से कमा रहे हैं प्रतिमाह तीन लाख रुपये

गाय के गोबर से बना रहे हैं चप्पल, गोबर उत्पादों से कमा रहे हैं प्रतिमाह तीन लाख रुपये

मनोज गर्ग

गाय के गोबर से बना रहे हैं चप्पल, गोबर उत्पादों से कमा रहे हैं प्रतिमाह तीन लाख रुपयेगाय के गोबर से बना रहे हैं चप्पल

इस वर्ष का बजट प्रस्तुत करने के लिए जब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल विधानसभा पहुंचे तब उनके हाथ में गोबर से बना बैग था। यह बैग रितेश अग्रवाल और उनकी संस्था ’एक पहल’ ने दस दिन की मेहनत के बाद तैयार किया था, जिसकी चर्चा देशभर में हुई।

रायपुर स्थित गोकुल नगर के रहने वाले गोपालक रितेश गाय के गोबर से दर्जनों चीजें जैसे बैग, पर्स, मूर्तियां, दीपक, ईंट, पेंट, अबीर-गुलाल और यहां तक कि चप्पल भी बना रहे हैं, जिनकी अच्छी खासी मांग है। इससे वे प्रतिमाह तीन लाख रुपए तो कमा ही रहे हैं साथ ही कई लोगों को रोजगार देकर आत्मनिर्भर भी बना चुके हैं।

पढ़ाई के बाद रितेश ने कई कंपनियों में नौकरी की लेकिन उनका मन नौकरी में नहीं लग रहा था। वे अक्सर सड़कों पर घूमती गायें देखते जो कचरा खाने के कारण बीमार हो जाती थीं और कई दुर्घटनाओं का शिकार भी हो जाती थीं। नौकरी छोड़ वे एक गौशाला से जुड़े और गो सेवा का काम शुरू किया।

गोशाला में उन्होंने गाय के गोबर से बनने वाले उत्पादों का काम सीखा। इसी दौरान 2018-19 में जब छत्तीसगढ़ सरकार ने गोवंश को संरक्षित करने के लिए गोठान मॉडल शुरू किया तो रितेश भी इस से जुड़े और गोबर से विभिन्न प्रकार की चीज़ें बनाने की ट्रेनिंग के लिए वे जयपुर और हिमाचल प्रदेश गए। ट्रेनिंग से लौटकर उन्होंने 2019 में ‘एक पहल’ नामक संस्था की स्थापना की, जिसके अंतर्गत गाय के गोबर से बने विभिन्न उत्पाद तैयार किए जाने लगे।

गोबर से बनाई चप्पल
कुछ आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों, चूना और गोबर के पाउडर को मिलाकर वे 1 किलो गोबर से 10 चप्पलें (5 जोड़ी) बनाते हैं। चप्पल 3-4 घंटे बारिश में भीग भी जाए तो खराब नहीं होती, धूप में सुखाकर इसे पुनः काम में लिया जा सकता है, जो पैरों को ठंडक पहुँचाने का काम भी करती है। एक जोड़ी की कीमत 400 रुपये है।

गोबर से बनी चप्पल को लेकर उन्होंने एक नवीन प्रयोग भी किया। उन्होंने कुछ दिनों तक यह चप्पल ब्लडप्रेशर और मधुमेह के मरीजों को पहनाई, जिसके सकारात्मक नतीजे देखने को मिल रहे हैं। अब तक उन्हें गोबर से बनी एक हजार जोड़ी चप्पलों के ऑर्डर मिल चुके हैं।

गोबर से अबीर और गुलाल
गोबर को सुखा कर पहले पाउडर में बदला जाता है और उसमें खुशबू के लिए फूलों की सूखी पत्तियों के पाउडर को मिलाया जाता है। इसके बाद उसमें कस्टर्ड पाउडर मिलाया जाता है। पाउडर को अलग-अलग रंग देने के लिए भी प्राकृतिक रंगों का ही उपयोग होता है। पीले रंग के लिए हल्दी, हरे के लिए धनिये की पत्ती काम में ली जाती है। बाजार में यह 300 रुपये किलो तक बिकता है।

सात हजार से अधिक मृतकों का करवाया दाह-संस्कार
कोरोना के दौरान जब लगातार लोगों की मौतें होने लगीं तो दाह संस्कार के लिए लकड़ियों की मांग बढ़ी, उन्होंने गोबर से लकड़ी बनानी शुरू की। अब तक वे 7 हजार से अधिक दाह-संस्कारों के लिए गोबर से बनी लकड़ी उपलब्ध करा चुके हैं।

एक हजार रुपए से की जा सकती है शुरुआत
‘एक पहल’ संस्था-प्रमुख रितेश बताते हैं कि गो उत्पाद ईंट बनाने की शुरुआत मात्र एक हजार रुपए से की जा सकती है। ईंट तैयार करने के लिए एक सांचे की आवश्यकता होती है। गोबर से बनी ईंट की विशेषता यह है कि यह सामान्य ईंट के मुकाबले हल्की होती है। गर्मी के दिनों में इससे बने घरों में ठंडक रहती है।

लोगों को दिया रोजगार
स्वरोजगार और स्वावलंबन को बढ़ावा देते हुए रितेश ने स्थानीय लोगों को भी इस काम से जोड़ा है। काम सीखने के बाद उन्हें नौकरी पर रख लिया जाता है। संस्था के पास गोबर से बने उत्पादों की माँग न सिर्फ़ छत्तीसगढ़ बल्कि आस-पास के राज्यों से भी आ रही है, जिससे वे सालाना 36 लाख रुपए तक कमा रहे हैं। •

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