गुरुपर्व पर विशेष: गुरुनानक ने दीन दुखियों की सेवा को माना था सबसे बड़ा धर्म

गुरु नानकदेव जी ने दीन-‘सरबत दा भला’ की बानी दुखियों की सेवा और भूखे को भोजन देना सबसे बड़ा धर्म माना था। वे जहां भी गए और जिनसे भी मिले उन्हें यही शिक्षा दी कि मानवता को कभी मत भूलो। मानवता के मार्ग पर चलने से ही मुक्ति मिल सकती है। गुरु पर्व पर उनकी वाणी के कुछ अमर संदेश आज भी समाज को राह दिखाते हैं 

मध्यकाल में भारतीय धर्म और दर्शन को नई दृष्टि देने में गुरु नानकदेव जी का महत्वपूर्ण योगदान है। मध्यकाल के पुनर्जागरण की भूमिका का सरलीकरण भी गुरु नानकदेव जी ने ही किया। गुरुनानक वाणी का केन्द्र बिन्दु ‘किरत करना, नाम जपना और वंड छकना’ के व्यावहारिक दर्शन में छुपा हुआ है।
गुरु नानकदेव ने मध्यकाल के समाज को ऐसे रास्ते पर चलाने की कोशिश की जिसका सीधा रिश्ता आदमी की उस खोई हुई पहचान को वापस लाने के साथ था, जिसका पतन अंधविश्वास, गले-सड़े रीति-रिवाजों तथा बुरे आचरण के कारण हो चुका था। नानक वाणी के अमर संदेश ने उन्हें फिर से अपने अस्तित्व की पहचान नई जीवन दृष्टि से करवाई। गुरु नानकदेव अकाल पुरख की सत्ता को आदमी के दु:ख-दर्द के साथ जोड़कर नए आध्यात्मिक चिंतन की इस प्रकार शुरुआत करते हैं कि निर्गुण पद्धति मूल भक्ति का आधार बन जाती है। ‘जपुजी साहिब’ में जिस ऊंचे आचरण का पक्ष गुरु नानकदेव लेते हैं वह पाखण्ड की दीवार को तोड़ता है तथा ईश्वर की रजा में रहकर उन आशीर्वाद को ग्रहण करने की प्रेरणा देता है; जिनके कारण सच्चा इंसान गुरुमुख की पदवी पा लेता है।
भक्ति आंदोलन दक्षिण में पैदा हुआ था। 15वीं शताब्दी में उत्तरी भारत में इस आंदोलन ने क्रांतिकारी परिवर्तन किए। भक्त कवियों का एक ध्येय यह भी था कि वे जाति-पाति का खण्डन करेंगे, रंग और नस्ल के भेद को नहीं मानेंगे तथा भाषा और लिपि की दीवार को फांद कर घर-घर में मानवता के धर्म को फैलाएंगे। संतों का यह सपना उत्तरी भारत में उस समय साकार हुआ जब गुरु नानकदेव जी की वाणी में इन मूल्यों को समर्थन मिला। गुरु नानकदेव देशों की सीमाओं को लांघ ऐसे इनसानी सरोकारों का समर्थन करते हैं जिन्होंने पूरे विश्व की सोच को नई जीवन दृष्टियों से जोड़ा। गुरु नानक वाणी का उद्देश्य सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम के भावों को प्रकट करना था।
ऐसे कार्य गुरु नानकदेव की वाणी (बाबा वाणी) में ही मिलते हैं। ‘बाबर वाणी’ ऐतिहासिक दृष्टि से ऐसा सामाजिक दस्तावेज है, जिसमें बाबर के आक्रमण के कारण भारतीय समाज, विशेषकर स्त्रियों पर हुए जुल्मों का सीधा निषेध है। गुरु नानकदेव बाबा वाणी में भारतवासियों को हिन्दुस्थानी कह कर संबोधित करते हैं। मध्यकाल में काव्य चिंतन में यह पहला संबोधन है, जिसमें भौगोलिक और कौमियत के संकल्प को राष्टÑ के साथ जोड़ा गया है। इस दृष्टि से गुरु नानकदेव पहले राष्ट्रीय चिंतक हैं, जो भारत की अखण्डता के प्रश्न को अतिरिक्त सम्मान के साथ उठाते हैं। ज्ञान और प्रेम की कसौटी गुरु नानक वाणी की मूल संवेदना है। इस कसौटी पर वही आदमी खरा उतर सकता है जिसकी कथनी और करनी में कोई फर्क न हो। वे सीधे शब्दों में कहते हैं कि अकाल पुरख उन्हें ही अपनी बख्शीश का आशीर्वाद देगा जो कड़ी आराधना के संघर्ष में खरे साबित होंगे।
गुरु नानकदेव चाहते थे कि जनसाधारण पलायनवादी प्रवृत्ति का शिकार न हो। उनका मानना था कि मुक्ति जंगलों में भटक कर नहीं, घर-परिवार में रहते हुए जीवन के संघर्षों को झेलते हुए प्राप्त की जा सकती है। त्याग और सेवा को उन्होंने मानव धर्म का सर्वोच्च आदर्श माना। नारी के प्रति उनका दृष्टिकोण प्रगतिशील एवं विवेकशील था। वे नारी को उच्च सम्मान देने के हक में थे। गुरु नानक वाणी का राजनीतिक चिन्तन भी क्रांतिकारी था। उन्होंने संस्थागत काजी, मुल्ला, सुल्तान, पुजारी की खुलकर आलोचना की थी तथा इन्हें जिन्दगी की उस हकीकत से भी परिचित करवाया, जो इनके कर्तव्य-बोध की प्रथम इकाई थी। गुरु नानकदेव जी महान वाणीकार थे। इनकी प्रमुख वाणियों में ‘जपुजी साहिब’, ‘आसा दी वार’, ‘पट्टी’, ‘वारहमाह’, ‘सिध गोसटि’ इत्यादि हैं। साहित्यिक दृष्टि से भी गुरु नानक वाणी का पंजाब के साहित्य पर गहरा प्रभाव पड़ा। गुरु नानकदेव जी की वाणी श्री गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित है। सभी गुरु कवियों ने अपनी वाणी का सृजन करते समय नानकछाप का ही प्रयोग किया है, क्योंकि वे उनकी विचारधारा का प्रचार-प्रसार करने में गौरव का अनुभव करते हैं। श्री गुरु ग्रंथ साहिब की विचारधारा का केंद्र नानक वाणी की वह धुरी है, जिसकी परिधि में गुरु नानक देव द्वारा रचित मूलमंत्र का गरिमा संसार है।
गुरु नानकदेव संगीतज्ञ भी थे। वे जब उदासियों पर निकलते थे, भाई मरदाना उनके साथ रहते थे। वह रबाब बजाया करते थे और गुरु नानकदेव जी इलाही वाणी का गुंजन किया करते थे। गुरु नानक देव जी मध्यकालीन भारत के उच्चतम आदि गुरु हैं। भाई गुरुदास कहते हैं, ‘‘गुरु नानकदेव जी के प्रगट होने पर संसार में व्याप्त धुंध विलुप्त हो गई और सृष्टि, ज्ञान की रोशनी से आलोकित हो उठी। कला, संस्कृति, धर्म एवं तात्कालिक समाज को नई दिशा मिली।’’ भटके हुए लोगों को गुरु नानक वाणी ने नई राह दिखाई। गुरु नानकदेव जी का प्रभाव सम्पूर्ण भारतीय समाज, संस्कृति एवं आध्यात्मिक चिंतन पर है। गुरु नानक जी की विचारधारा से एक ऐसी जीवन-दृष्टि का निर्माण हुआ जिससे भारतीय समाज में काफी परिवर्तन हुए।
गुरु नानकदेव जी जिन्दगी के व्यावहारिक पक्ष को तरजीह देते थे। वे चाहते थे कि जिन्दगी के हर अंधेरे को सच्चाई का सूरज अपनी ऊर्जा से आलोकित कर दे। दु:ख और सुख तभी तक आम आदमी को प्रभावित कर सकते हैं, जब तक वह नाम की महिमा से वंचित है। गुरु नानकदेव जी ने कुदरत को वह शक्ति माना जिसकी गरिमा सृष्टि के कण-कण में व्याप्त है। नानक वाणी के आध्यात्मिक बोध में भी तर्कशीलता है। नानक वाणी का आकाश उन सार्थक सचाइयों में रोशन है जिसमें न भय है, न वैर है, न विरोध है और न ही असत्य है। मध्यकाल के नए जीवन बोध की यही रसधारा है।
वैश्वीकरण के जिस दौर से आज हम गुजर रहे हैं, उसमें नानक वाणी प्रगामी सत्ता दिखा सकती है। उन रास्तों पर गुरु नानक वाणी के वे सच्चे दीपक जलाए जा सकते हैं, जिनकी रोशनी में भटके हुए राही सही मंजिल की ओर अग्रसर हो सकते हैं। वाणी से पराजित मानसिकता को ‘सरबत दे भले’ (सबका भला) में परिवर्तित किया जा सकता है। गुरु पर्व की इस शुभ वेला पर यही नानक वाणी का अमर संदेश है।
(लेखक डॉ. हरमहेन्द्र सिंह बेदी, हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला के कुलाधिपति हैं)
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