चम्पत राय : नेपथ्य में रहकर कर्म साधना में लीन मनीषी
“यज्ञकर्म में, सत्कार्यों में विघ्न उत्पन्न करना आसुरी शक्तियों की वृत्ति रही है” – यह बात हम सदा से पौराणिक आख्यानों में पढ़ते व सुनते आए थे किंतु विगत कुछ दिनों में इसका प्रत्यक्ष उदाहरण देखने को मिला। भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण को जब रोका न जा सका तो आधुनिक बाबर झूठे आरोपों के अस्त्र-शस्त्र फेंककर जन-जन की आस्था एवं विश्वास को घायल करने निकल पड़े। परन्तु स्वयं प्रभु श्री राम ने जिसे अपना कार्य सौंपा हो, उसे कौन हरा पाया है!
‘रामलला के पटवारी’ के रूप में ख्यात चम्पत राय पर जब कुछ स्वार्थी तत्वों ने अनर्गल आरोप लगाए तो स्वयं जनता ही उन के पक्ष में खड़ी हो गई। अब तक नेपथ्य में रहकर कर्म साधना करने वाले इस मनीषी के त्याग व तप की कीर्ति जन-जन तक पहुँचने लगी। धरातल से लेकर सोशल मीडिया तक हिंदुओं ने एक स्वर में श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट पर विश्वास जताया। श्रीराम मंदिर विरोधियों के लिए बड़ा विरोधाभास उत्पन्न हो चुका है। कहाँ तो वे पूरे मंदिर आंदोलन की साख गिराने में लगे थे और कहाँ अब उन्हें अपने ही झूठ पर लीपापोती करने में जुटना पड़ रहा है।
वर्तमान में विश्व हिंदू परिषद् के उपाध्यक्ष तथा श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव का दायित्व निर्वहन कर रहे चम्पत राय का संपूर्ण जीवन ही राष्ट्र तथा हिन्दू समाज की सेवा में समर्पित रहा है। वे विगत 35 वर्षों से श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन की रूपरेखा बनाने, योजना एवं कार्यान्वयन में प्राणपण से जुटे हुए हैं। इस दौरान अपनी विराट भूमिका का कभी अहंकार अथवा दिखावा न करते हुए वे प्रचार से दूर रहकर रामकाज करते रहे हैं।
संपन्न परिवार में जन्म लेने वाले चम्पत राय ने सुविधा का जीवन त्यागकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक का कठिन मार्ग चुना। वे उत्तरप्रदेश के बिजनौर जिले में स्थित धामपुर के डिग्री कालेज में रसायन विभाग के प्रोफेसर थे। इसके साथ ही वे संघ से जुड़कर सेवाकार्य भी करते रहे।
1975 में इंदिरा गांधी द्वारा देश पर थोपे गए आपातकाल में हजारों स्वयंसेवकों की भांति चम्पत राय को भी अकारण कारावास में डालने का आदेश जारी हुआ। जब पुलिस इन्हें गिरफ्तार करने डिग्री कॉलेज पहुँची तो वे कक्षा में पढ़ा रहे थे। अपने छात्रों के बीच बेहद लोकप्रिय चम्पत जी जानते थे कि उन्हें वहाँ गिरफ्तार करने पर छात्र भडक सकते थे। पुलिस को भी इस बात का अनुमान था। अतः उन्होंने पुलिस अधिकारियों से कहा- “आप जाएँ, मैं क्लास समाप्त कर थाने आ जाऊँगा।” पुलिस को भी इनकी सत्यनिष्ठा पर विश्वास था अतः वे लौट गए। क्लास खत्म कर बच्चों को शांति से घर जाने के लिए कह कर चम्पत जी घर पहुँचे, माता-पिता को प्रणाम किया तथा अनिश्चितकालीन जेल यात्रा के लिए स्वयं थाने पहुंच गए।
चम्पत राय ने 18 महीने उत्तरप्रदेश की विभिन्न जेलों में काटे। जेल की कठिनाइयों के सम्मुख भी उनके अडिग आत्मबल को देखते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उन्हें श्री राममंदिर निर्माण आन्दोलन का दायित्व सौंप दिया। चम्पत जी ने सुविधा भरी सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दिया व हर गाँव, गली, घर तक स्वयं जाकर श्रीराम मंदिर निर्माण का सन्देश पहुँचाने लगे। उन्होंने अपने परिश्रम, मेधा व समर्पण से अयोध्या आंदोलन को गति प्रदान की। उनके मार्गदर्शन में हजारों नवयुवा कारसेवक तैयार होने लगे। श्री राम जन्मभूमि आंदोलन के प्रत्येक सोपान में चम्पत जी का योगदान रहा है।
6 दिसंबर 1992 को जब बर्बरता का प्रतीक बाबरी ढांचा गिराया गया तब भी चम्पत राय वहीं उपस्थित थे। कुछ बड़े नेताओं के विपरीत उनका विचार था कि रामजी की वानर सेना तो रामकाज करके ही मानेगी और हुआ भी यही। कालांतर में भी उन्होंने न्यायालय तथा जनता के समक्ष उक्त घटना का दायित्व सगर्व अपने ऊपर लिया।
देश में एक कालखंड ऐसा भी आया था जब भगवान श्रीराम को काल्पनिक घोषित करने के कुत्सित प्रयास चल रहे थे तथा राम मंदिर निर्माण एक असंभव स्वप्न प्रतीत होने लगा था। बहुत से लोगों ने निराशा में सभी प्रयत्न छोड़ दिए थे। चम्पत राय तब भी चुपचाप श्रीरामलला के पक्ष में प्रमाण जुटा रहे थे। तीन दशकों के कालखण्ड में उन्होंने राम मंदिर के हर एक साक्ष्य का व्यवस्थित डॉक्यूमेंटेशन करवाया। लाखों पन्नों को सहेजा। कानूनी मुकदमे के दौरान यही साक्ष्य श्रीराम जन्मभूमि के पक्ष में निर्णय का ठोस आधार बने।
इतने बड़े आन्दोलन को आकार देने वाले यह राष्ट्रसाधक स्वयं मात्र तपस्वी की भांति रहते हैं तथा प्रचारकों हेतु निर्धारित व्यवस्था के अनुसार ही जीवनयापन करते हैं। ना तो उनके पास कोई निजी संपत्ति है, ना निजी अकाउंट तथा ना ही कोई निजी महत्वाकांक्षा। ऐसे निस्वार्थ व्यक्तित्व पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाना ही अपने आप में हास्यास्पद है तथा आरोप लगाने वाले स्वयं ही उपहास का पात्र सिद्ध होते हैं। ये विघ्नसंतोषी तत्व मात्र एक दिन भी चम्पत राय की भांति रहकर दिखा सकें तो बहुत बड़ी बात होगी।
चम्पत राय का जीवन केवल ईश्वर कार्य हेतु समर्पित रहा है। वे अब भी कहते हैं कि जैसे ही राममंदिर का शिखर देख लेंगे, युवा पीढ़ी को मथुरा की जिम्मेदारी निभाने को प्रेरित करने में जुट जाएंगे। ऐसे तपसिद्ध मनस्वियों ने ही राष्ट्र व धर्म की ध्वजा को थाम रखा है।