छठ महापर्व में समायोजित हैं दिव्य परंपराएं

छठ महापर्व में समायोजित हैं दिव्य परंपराएं

छठ महापर्व पर विशेष

छठ महापर्व में समायोजित हैं दिव्य परंपराएं

कालचक्र आगे बढ़ रहा है। साथ ही बढ़ रहा है छठ महापर्व का प्रभाव क्षेत्र। प्राचीन युग में संपूर्ण भारत में प्रचलित सूर्य व स्कंद कार्तिकेय की उपासना परंपरा काल के झंझावातों में क्षीण हो गई। मुल्तान, कश्मीर आदि सूर्य मंदिरों पर आक्रमण हुए। भव्य सार्वजनिक यज्ञ व अनुष्ठान छिन्न-भिन्न होकर एकांतिक उपासना तक सीमित हो गए, किंतु गंगा मैया की गोद में स्थित पूर्वांचल ने इस परंपरा को सहेजकर रखा। इतना ही नहीं, उनके प्रवास के साथ ही छठ महापर्व देश के प्रत्येक भाग तक पहुँच गया। विदेशों में भी जहाँ पूर्वांचली बंधु पहुँचे, वहाँ छठ महापर्व अपनी पूर्ण आस्था सहित स्थापित हो गया। आज जैसे-जैसे अपनी संस्कृति के प्रति हमारी समझ गहन हो रही है, पर्व-अनुष्ठानों की महिमा पुनः स्थापित होती जा रही है। युवा वर्ग जड़ों की ओर लौट रहा है। जड़ें जितनी गहरी होंगी, उनके आधार पर खड़ा वृक्ष उतना ही सबल-सुदृढ़ होगा।

पाश्चात्य दृष्टिकोण ने हमें यह सिखलाने का प्रयास किया कि श्रद्धा, आस्था तथा यज्ञ-पूजन आदि धार्मिक अनुष्ठान मानव मन के भय की उपज थे। छठ इस दृष्टिकोण को मिथ्या सिद्ध करता है। कैसे? देखें कि जब सांसारिक व्यवहार में कृतज्ञता व आपसी सम्मान के भाव का लोप हुआ होगा तब “उगते सूरज को सलाम” का मुहावरा चलन में आया होगा किंतु यह मुहावरा सनातनी संस्कारों के सम्मुख हार मान लेता है। यहाँ छठ जैसी दिव्य परंपराएँ हैं जिनमें उगते सूर्य से पहले डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। कहा जा सकता है कि हमारे पुरखों द्वारा प्रकृति के नियमों के आधार पर सहेजे ज्ञान ने हमें अहंकारी नहीं अपितु विनम्र होना सिखाया है। हमें कृतज्ञता दी है।

इस वर्ष भी सूर्य आराधना का चार दिवसीय पर्व ‘छठ’ पूर्ण उल्लास व श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है। यह पर्व धर्म, कर्म, आध्यात्म, तपस्या एवं ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की कामना का अद्भुत संगम है। छठ से जुड़ी लोक परंपरा के सूत्र हमारे वैदिक पुरखों, ऋषि-मुनियों तक जुड़ते हैं। प्राचीन काल में प्रचलित सूर्य, इंद्र, स्कंद कार्तिकेय तथा कृत्तिका स्वरूप जगदंबा की उपासना का ही वर्तमान स्वरूप छठ है। छः कृत्तिकाओं का सम्मिलित रूप षष्ठी (छठी) मैया हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार ब्रह्म से उत्पन्न प्रकृति ही छः कृत्तिकाओं के रूप में विभक्त होकर छठी मैया बनीं। ब्रह्मवैवर्त पुराण में कथा है कि मनु के पुत्र राजा प्रियव्रत की आराधना से प्रसन्न होकर छठी मैया ने उनके मृत पुत्र को जीवित कर दिया। इन्हीं छठी मैया का पूजन शिशु जन्म के छठे दिन होता है। कृत्तिका रूप में उन्होंने महादेव तथा पार्वती के पुत्र का जिस प्रकार संरक्षण व पालन-पोषण किया उसी प्रकार वे हमारी संतान की भी रक्षा करें, उसे स्वस्थ रखें, सुयोग्य बनाएँ ऐसी भावना के साथ श्रद्धालु छठ का कठिन व्रत करते हैं।

राजस्थान में जयपुर स्थित ‘गलता तीर्थ’ छठ महापर्व का बड़ा केंद्र है। यहाँ सूर्यदेव तथा भगवान श्रीराम के मंदिर एवं अत्यंत प्राचीन पवित्र जलकुंड स्थित हैं जिसके जल से सूर्य देवता को अर्घ्य दिया जाता है।

कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से प्रारंभ होने वाले पर्व का पहला दिन ‘नहाय-खाय’ कहलाता है जिसमें व्रती स्नान-ध्यान के पश्चात् सात्विक भोजन करते हैं। इस भोजन में लौकी व चने की दाल अनिवार्य रूप से सम्मिलित होती है। पंचमी अर्थात् ‘खरना’ की सांझ को लकड़ी के चूल्हे पर गन्ने के रस या गुड़ की खीर व पूड़ी बनाकर प्रसाद रूप में ग्रहण की जाती है। षष्ठी इस पर्व में मुख्य है। इस पूरे दिन उपवास रखते हैं। सूर्यास्त के समय नदी या तालाब के घाट पर अस्ताचलगामी सूर्यदेव को दुग्ध-जल का अर्घ्य देकर ठेकुआ तथा ऋतुफलों का भोग अर्पित करते हैं। इसके अगले दिन सप्तमी की भोर को उदीयमान सूर्यदेव को अर्घ्य देकर व्रत का पारण होता है। छठ को यूँ ही कठिन व्रतों में नहीं गिना जाता। पंचमी की सांझ से लेकर सप्तमी के सूर्योदय तक अर्थात् लगभग 36 घण्टे तक व्रती अन्न-जल का एक कण लिए बिना पूर्ण निराहार व्रत-तप करते हैं।

घर से दूर रहने वाले युवाओं के लिए यह पर्व पारिवारिक मिलन का अवसर है वहीं महिलाओं के लिए यह ससुराल व मायके दोनों की कुशलता का प्रतीक है। “ससुरा में मांगे अन्न-धन-लक्ष्मी, नैहर सहोदर जेठ भाय हे छठी मैया” जैसे मर्मस्पर्शी गीत इन सुंदर भावों की पुष्टि करते हैं।

वर्तमान में छठ व अन्य सभी सनातनी पर्वों की बढ़ती लोकप्रियता को देखकर कतिपय हिंदू विरोधी तत्व भी सक्रिय हुए हैं। झूठे लेखों के माध्यम से अब यह स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है कि छठ का हिंदू धर्म से कोई संबंध नहीं है। ऐसे में हमें युवाओं के मध्य अपनी परंपराओं व पर्वों की महत्ता, प्राचीनता तथा पुण्यभूमि भारत के साथ उनकी अभिन्नता को बार-बार रेखांकित करने के प्रयास निरंतर करने होंगे। हम अपने पर्वों को, परंपराओं को कलुषित मानसिकता के हाथों नष्ट नहीं होने देंगे। इस शुभ संकल्प के साथ छठ महापर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ।

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