छद्म फ़िल्म समीक्षा और जयप्रकाश चौकसे

छद्म फ़िल्म समीक्षा और जयप्रकाश चौकसे

डॉ. अरुण सिंह

छद्म फ़िल्म समीक्षा और जयप्रकाश चौकसे
जयप्रकाश चौकसे अपने हर आलेख में “पर्दे के पीछे” से प्रधान सेवक पर हमला करते हैं। बात फिल्मों और कलाकारों के महिमामंडन से शुरू होती है, और प्रधान सेवक को कट्टर, साम्प्रदायिक सिद्ध करने पर समाप्त होती है। इनके लेखों में ज्ञान का कोई तारतम्य नहीं है, दो वाक्यों में कुछ बात शुरू होती है, और तीसरे में संदर्भ ही कहीं से कहीं पहुंच जाता है। “जाति”, “दलित”, “दमित” जैसे शब्दों का बहुतायत में प्रयोग करते हैं। मुस्लिम लेखकों के वामपंथ को बड़े गर्व से चटखारे लेकर प्रस्तुत करते हैं, पर उन लेखकों ने इस्लाम की कितनी आलोचना की, यह प्रश्न नहीं करते! केवल यह बताते हैं कि सारा भेदभाव और शोषण हिन्दू सभ्यता में ही बसा हुआ है। इनके लेखों में एक और विशेषता होती है – फिल्मी कलाकारों की छवि गढ़ना। कुछ पंक्तियों में ही कलाकार की गौरवशाली जीवनी लिख डालते हैं। विशेषकर, खान कलाकारों की। यह तो बताते हैं कि किसी धनाढ्य के बेटे ने फुटपाथ पर लोगों को कुचल दिया, इस पर फलां-फलां फिल्में बनी हैं। पर साथ ही छुपा जाते हैं कि जीवन का यह वास्तविक कथानक तो सलमान खान ने भी गढ़ा है। चकाचौंध चमकती रहे और बहरूपियों का धंधा चलता रहे, यही उद्देश्य रहता है चौकसे जी का। प्रायः अपनी बात को सिद्ध करने के लिए मुस्लिम शायरों के उद्धरण देने में चूक नहीं करते, क्योंकि तथाकथित वामपंथी विचार वाले पाठकों को यह बहुत भाता है, और प्रभावित करता है।

अपने आलेखों के माध्यम से वे यह सिद्ध करते हैं कि भारतीय सिनेमा का तथाकथित धर्मनिरपेक्ष स्वरूप ही भारत का प्रतिनिधित्व करता है; भारत सदा से सेक्युलर रहा है। जो पटकथाएं अमर, अकबर व एंथोनी को लेकर लिखी गईं, वही मूल विचार है। चौकसे यह नहीं बताते कि 8वीं शताब्दी के आरंभ से ही हिन्दू सभ्यता और संस्कृति का जो संहार किया गया, वह करने वाला कोई और नहीं, इस्लाम का विचार ही था। कुरान में भी कहा गया है, जो अल्लाह को न माने, उसे मार दिया जाएचौकसे बेग़म अख्तर के सिगरेट पीने के व्यसन को ऐसे ढोल बजाकर बताते हैं कि मानो हर सफल भारतीय महिला को अपनी पहचान सिद्ध करने के लिए विद्रोही और व्यसनी बनना चाहिए। कंगना राणावत की स्पष्टवादिता को वे “इंटलेक्चुअल नशा” कह देते हैं।

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1 thought on “छद्म फ़िल्म समीक्षा और जयप्रकाश चौकसे

  1. बहुत अच्छा
    ये वो लोग है जिन्होंने फ़िल्म कला को ना तो जरा भी आत्मसात किया है नाही करने लायक है, हाँ किन्तु इस तरह का bollywood ही इनका रोजगार है

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