छोटे कद के बड़े आदमी…भंवर जी तो सोने जैसे खरे हैं ….!

– जितेन्द्र सिंह शेखावत

स्मृति शेष : स्व. श्री भंवरलाल शर्मा

राजस्थान विधानसभा में छोटा सा आरोप भंवर जी पर लगा तो भैरों सिंह जी शेखावत से सहन नहीं हुआ। उन्होंने कहा, “मेरे मंत्रिमंडल में भंवर जी जैसा ईमानदार और सत्यनिष्ठ व्यक्ति कोई नहीं है। इन पर आरोप लगाने वाले सुन लें, “यह सोने जैसे खरे हैं।” विपक्ष जैसा चाहे, कैसे भी जांच करा ले। भंवर जी में भ्रष्टाचार का एक कण भी नहीं मिलेगा।”

जी, हां ! भंवर जी तो थे ही बिल्कुल ऐसे ही, सीधे सच्चे, सरल, लोगों से पैदल मिलना, साधारण और सादा जीवन और ऊंचा व्यक्तित्व।

राजस्थान में जनसंघ की स्थापना से शुरूआत कर भारतीय जनता पार्टी की यात्रा को इन ऊंचाइयों पर चढ़ाने वाले शीर्ष लोगों में भंवर जी ही थे। भैरों सिंह जी शेखावत के तो वे एक हाथ जैसे थे। पार्टी में भंवर जी की सलाह ही अंतिम मानी जाती थी।

भंवर जी जितने सरल थे उतने ही साहसी भी थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कर्मठ स्वयंसेवक होने के कारण उनको लाठी (दण्ड) संचालन का बड़ा हुनर था।

एक बार तो वे अपनी जिप्सी गाड़ी को नाहरगढ़ की पहाड़ी से घोड़ों के उतरने वाले खतरनाक रास्ते से नीचे को उतार कर ले आए। उनके साथ बैठे लोग घबरा गए, लेकिन दिलेर भंवर जी नहीं घबराए।

आपातकाल का दौर आया तो वे डरे नहीं और भेष बदल कर संघ और जनसंघ का कार्य करते रहे। “वे शारीरिक रूप से छोटे कद के होते हुए भी बहुत साहसी, निडर और बड़े इंसान थे। उन जैसा नेता आज के इस दौर में मिलना बहुत मुश्किल है।

उन्होंने युवावस्था में ही युवकों का संगठन तैयार किया और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माध्यम से उन्हें सामाजिक कार्यों से जोड़ा। वे अंतिम समय तक इसी काम में लगे रहे। अपने साथी कार्यकर्ताओं के साथ वे साइकिल के डंडे पर बैठ कर भी चल देते थे। उनका युवकों का दल ऐसा था कि जब किसी पर अत्याचार होता तो भंवर जी अपनी पूरी टीम के साथ दो-दो हाथ करने के लिए कहीं भी पहुंच जाते और गरीब को न्याय दिलवा कर ही मानते।

नगर निगम की हड़ताल हुई तो उन्होंने ट्रैक्टर चलाने का जिम्मा लिया और सारे शहर का कचरा साफ करने के अभियान में कार्यकर्ताओं के साथ खुद ही जुट गए।

आज तो मंत्री बनते ही सरकारी बंगला और कार नेताओं की पहली प्राथमिकता होती है। वे अपने अधिकांश जीवन में मंत्री रहे लेकिन उन्होंने कार, बंगला तो दूर अपना कमांडो भी नहीं रखा।

चुनाव प्रचार में उन्होंने कभी जीप तक काम में नहीं ली। कम खर्च में पैदल चुनाव लड़ने वाले केवल भंवर जी ही थे। पैदल चलना उनकी फितरत में था। कोई भी बड़ा समारोह होता वे सबसे पीछे बैठ जाते। जयपुर में विकास कार्यों में उनका नाम सबसे आगे है चाहे पुल हो या भूमिगत मार्ग।

भाई भतीजावाद से कोसों दूर रहे। उन्होंने अपने बच्चों को पार्टी में पार्षद तक का टिकट नहीं दिया। उन्होंने कहा कि तुम पहले जनता की सेवा करो।

राजस्थान की स्वायत्तशासी संस्थाओं को आगे बढ़ाने में भंवर जी का सबसे बड़ा योगदान रहा है। नगर निगम के विस्तार में उन्हीं का ही योगदान है। लाल कोठी का नगर निगम भवन हो या फिर दूसरे जोन में सामुदायिक केंद्र और बाग बगीचे इनके कार्यकाल में सबसे ज्यादा बने।

जयपुर पर कोई संकट आ जाता तो पहले पीड़ा भंवरजी को होती। वे कार्यकर्ताओं को जागृत कर एकत्रित करते और गली मोहल्लों में सेवा के काम में जुट जाते। वे दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर तीये की बैठकों, विवाह – शादियों के कार्यक्रमों में जरूर जाते। फोटो खिंचवाना और अपना नाम छपवाना उन्हें पसंद नहीं था।

एक बार वे चुनाव में हार गए तब दूसरे दिन ही काला कोट पहनकर कोर्ट में चले गए। साइकिल, स्कूटर और पैदल चलते हुए लोगों से मिलना उन्हें बहुत अच्छा लगता था।जयपुर के हवामहल क्षेत्र के अतिरिक्त दूसरे स्थानों में भी एक एक घर में उनकी पहचान थी। उनका एक ही बड़ा सपना था। मेरे जयपुर का विकास कैसे हो, जयपुर आगे कैसे बढ़े। भारतीय जनता पार्टी आगे कैसे बढ़े।

आज राजनीति के सबसे बड़े अजातशत्रु भंवर लाल जी शर्मा यानि आम आदमी के भंवर जी भाईसाहब नहीं रहे। लेकिन उनकी यादें हमेशा बनी रहेंगी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजस्थान पत्रिका के स्तम्भ लेखक हैं)

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