जनसंख्या वृद्धि के साथ जनसंख्या असंतुलन भी चिंता का विषय
जयपुर। विश्व जनसंख्या दिवस के अवसर पर मंगलवार को मानसरोवर में मनसंचार विमर्श समूह द्वारा ‘लैंगिक समानता की शक्ति’ थीम को लेकर चर्चात्मक कार्यक्रम का आयोजन हुआ। चर्चा में प्रतिभागियों ने इस बात पर जोर दिया कि यदि विश्व की अनंत संभावनाओं को उजागर करना है तो विश्व की आधी जनसंख्या नारी जाति का सशक्तिकरण अति आवश्यक है।
चर्चा में प्रतिभागियों ने बढ़ती जनसंख्या के साथ ही जनसांख्यिकी परिवर्तन पर भी चिंता व्यक्त की। भारत की जनगणना सांख्यिकी रिपोर्ट के अनुसार 1951 में जो हिंदू जनसंख्या 84.1% थी, वह 2011 में घटकर 80% से भी नीचे आ गई है, जबकि मुस्लिम जनसंख्या 9.8 प्रतिशत से बढ़कर 14.2 प्रतिशत तक पहुंच गई है। यह डेमोग्राफिक परिवर्तन चिंतनीय है क्योंकि इससे देश की पहचान बदलने का भी खतरा है। इसी तरह जैन, सिख सहित हिंदू समुदाय की प्रजनन दर 1.6 भी मुस्लिम समुदाय की प्रजनन दर 2.6 से काफी कम है।
गत 50 वर्षों में तीव्र गति से बड़ी जनसंख्या के कारण ऊर्जा और संसाधनों का उपयोग अप्रत्याशित रूप से बढ़ा है। इस कारण पृथ्वी के तापमान में 1.1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है और इस ग्लोबल वार्मिंग के कारण प्राकृतिक आपदाएं 4 गुना से भी अधिक बढ़ गई हैं। समुद्री जल स्तर 10 इंच तक बढ़ गया है। आने वाले एक दशक में यह तापमान और अधिक बढ़ने पर पर्यावरण संकट और अधिक गहराएगा। यदि जनसंख्या और संसाधनों का दुरुपयोग इसी तरह बढ़ता रहा तो यूनाइटेड नेशंस की रिपोर्ट के अनुसार 70 करोड़ से अधिक लोगों को 2030 तक विस्थापित होना पड़ेगा। चिंता का विषय यह भी है कि दुनिया में जल की कमी से जूझ रहे 20 शीर्ष शहरों में चार भारत के हैं।
वर्तमान में भारत विश्व में सर्वाधिक जनसँख्या वाला देश है। इसकी युवा जनसंख्या भी सर्वाधिक है। लेकिन घटती प्रजनन दर के कारण आने वाले दो दशकों में हमारी युवा जनसंख्या कम होने की संभावना है। कार्यक्रम की संयोजक डॉ. गायत्री जेफ ने सभी आगंतुक प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया।