जन जन की आराध्य जीण माता
रमेश सर्राफ धमोरा
हमारे देश में दुर्गा मां को शक्ति की देवी के रूप में पूजा जाता है। दुर्गा मां के कई रूप और अवतार हैं। पूरे भारत में नवरात्रा के अवसर पर माता के मंदिरों में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ती है। आस्था से भरे इस देश में माता का स्थान सर्वोपरि है। राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में सीकर-जयपुर मार्ग पर गोरिया के पास जीणमाता गांव में देवी स्वरूपा जीण माता का प्राचीन मंदिर बना हुआ है। जीण माता का वास्तविक नाम जयन्ती माता है। वे माता दुर्गा की अवतार हैं। यह मंदिर शक्ति की देवी को समर्पित है और एक बहुत ही प्राचीन शक्ति पीठ है। यहां जीण भगवती की अष्टभुजी आदमकद मूर्ति प्रतिष्ठापित है।
लोगों का मानना है कि यह मंदिर 1000 साल पुराना है। लेकिन कई इतिहासकार आठवीं सदी को जीण माता मंदिर का निर्माण काल मानते हैं। मंदिर में अलग-अलग आठ शिलालेख लगे हैं जो मंदिर की प्राचीनता के सबल प्रमाण हैं।
लोक कथाओं के अनुसार जीण माता का जन्म राजस्थान के चूरू जिले के घांघू गांव के अधिपति एक चौहान वंश के राजा घंघ के घर में हुआ था। जीण माता के बड़े भाई का नाम हर्ष था। माता जीण को शक्ति का अवतार माना गया है और हर्ष को भगवान शिव का। कहते हैं कि दोनों बहन भाइयों में बहुत स्नेह था। लेकिन किसी बात पर दोनों मनमुटाव हो गया। तब जीण माता यहां आकर तपस्या करने लगीं। पीछे-पीछे हर्षनाथ भी अपनी लाडली बहन को मनाने के लिए आए। लेकिन जीण माता ने साथ जाने से मना कर दिया। हर्षनाथ का मन बहुत उदास हो गया और वे भी वहां से कुछ दूर जाकर तपस्या करने लगे। दोनों भाई बहन के बीच हुई बातचीत का सुलभ वर्णन आज भी राजस्थान के लोक गीतों में मिलता है। भगवान हर्षनाथ का भव्य मन्दिर आज भी राजस्थान की अरावली पर्वतमाला में स्थित है।
एक जनश्रुति के अनुसार एक बार औरंगजेब ने शेखावाटी के मंदिरों को तोड़ने के लिए अपनी विशाल सेना भेजी। यह सेना हर्ष पर्वत पर शिव व हर्षनाथ भैरव का मंदिर खंडित कर जीण मंदिर को खंडित करने आगे बढ़ी तो मन्दिर के पुजारियों के आर्त स्वर में मां से विनय करने पर मां जीण ने भंवरे (बड़ी मधुमखियां) छोड़ दिए, जिनके आक्रमण से औरंगजेब की शाही सेना लहूलुहान हो भाग खड़ी हुई और स्वयं बादशाह की हालत बहुत गंभीर हो गई। तब बादशाह ने हाथ जोड़ कर मां जीण से क्षमा याचना कर मां के मंदिर में अखंड दीप के लिए दिल्ली से सवामण तेल भेजने का वचन दिया। कई वर्षों तक माता के मन्दिर में दीपक के लिये दिल्ली से तेल आता रहा फिर दिल्ली के बजाय जयपुर से आने लगा। बाद में जयपुर महाराजा ने इस तेल को मासिक के बजाय वर्ष में दो बार नवरात्रों के समय भिजवाना आरम्भ कर दिया। और महाराजा मानसिंह के समय तेल के स्थान पर नगद 20 रु. 3 आने प्रतिमाह कर दिए। जो निरंतर प्राप्त होते रहे।
जीण माता देवी शक्ति हैं, जो सदियों से लेकर आज तक लगातार आराध्य देवी के रूप में पूजी जाती हैं। जीण माता मंदिर में हर वर्ष चैत्र सुदी एकम् से नवमी (नवरात्रा में) व आसोज सुदी एकम से नवमी में दो विशाल मेले लगते हैं। जिनमें देश भर से लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। जीण माता मेले के अवसर पर राजस्थान के बाह्य अंचल से भी अनेक लोग आते हैं। मन्दिर में बारह मास अखण्ड दीप जलता रहता है। जीण भवानी की सुबह 4 बजे मंगला आरती होती है। आठ बजे शृंगार के बाद और सायं सात बजे फिर आरती होती है। दोनों आरतियों के बाद भोग (चावल) का वितरण होता है। चन्द्रग्रहण और सूर्य ग्रहण के समय भी आरती अपने समय पर होती है। हर महीने शुक्ल पक्ष की अष्टमी को विशेष आरती व प्रसाद का वितरण होता है। माता के मन्दिर के गर्भ गृह के द्वार (दरवाजे) 24 घंटे खुले रहते हैं। केवल शृंगार के समय पर्दा लगाया जाता है। हर वर्ष शरद पूर्णिमा को मन्दिर में विशेष उत्सव मनाया जाता है।