जब चीन में बंदूकों से घोटा गया लोकतंत्र का गला
डॉ. सुरेन्द्र जाखड़
चीन और लोकतंत्र का आपस में कोई संबंध नहीं है। यही वजह है कि आज चीन के अतिक्रमण वाले हांगकांग और ताइवान जैसे देशों में उपज रहे लोकतंत्र और लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली से चीन बुरी तरह बौखला रहा है। हाल ही में हांगकांग को लेकर कम्युनिस्ट सरकार की ओर से पास किए गए प्रस्ताव उसकी यही बौखलाहट दिखाता है। दुनिया भर में चीन की आलोचना का एक बड़ा कारण यह भी है कि उसने अपने भीतर लोकतंत्र को कभी पनपने नहीं दिया और लोकतंत्र के समर्थन में जब-जब आवाजें उठी उनका गला घोट दिया गया और दुर्भाग्य की बात यह है कि भारत में लोकतंत्र और मानवाधिकारों को लेकर प्रलाप करने वाले वामपंथी कभी चीन को लेकर अपना मुंह नहीं खोलते।
आज चर्चा 31 साल पहले के उस भीषण नरसंहार की है, जब चीन में लोकतंत्र के समर्थन में उठी आवाजों को बंदूकों से शांत कर दिया गया था।
31 वर्ष पहले 4 जून 1989 को चीन में लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग करने वाले हजारों छात्रों एवं नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया गया था। 80 के दशक में चीन में सरकार के खिलाफ लोगों में बहुत गुस्सा था। उन दिनों चीन के नागरिक अपने देश में लोकतंत्र की स्थापना के लिए जगह-जगह विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। चीन की राजधानी बीजिंग में सबसे अधिक प्रदर्शन हुए। प्रदर्शनकारियों में कॉलेज और विश्वविद्यालयों के छात्र अधिक थे।
प्रदर्शनकारी आजादी की मांग को लेकर थियानमेन चौक पर इकट्ठा हुए थे। चीन के वामपंथी इतिहास में इससे बड़ा राजनीतिक प्रदर्शन कभी नहीं हुआ था। यह प्रदर्शन चीन के विभिन्न शहरों और विभिन्न विश्वविद्यालयों तक पहुंच गया था। प्रदर्शनकारी चीन में वामपंथी तानाशाही को समाप्त करने और स्वतंत्रता और लोकतंत्र की मांग कर रहे थे। उनकी शिकायत उस समय बढ़ती हुई महंगाई और कम होते वेतन और घरों को लेकर भी थी। लोकतंत्र के लिए उठ रही इन आवाजों को दबाने के लिए चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने हिंसक रास्ता अपनाया।
3 जून की रात टैंकों के साथ सेना थियानमेन चौक पहुंची और वहां मौजूद लोगों पर रात्रि में ही गोलीबारी शुरू कर दी जिसमें शांति पूर्वक प्रदर्शन कर रहे हजारों निहत्थे लोग मारे गए। इनमें अधिकांश कॉलेज और विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले विद्यार्थी थे। इस नरसंहार के तीन दशक बाद भी चीन में इस घटना के उल्लेख की मंजूरी नहीं है। चीन में इंटरनेट पर भी थियानमेन चौक नरसंहार से जुड़ी हुई जानकारी प्रतिबंधित है।
मुझे वर्ष 2011 एवं 2013 में भारत चीन युवा कार्यक्रम के प्रतिनिधि मंडल के सदस्य के रूप में चीन के दस प्रोविंस (राज्यों) का दौरा करने का अवसर मिला। उस दौरान हमें बीजिंग में चीन के संसद भवन भी ले जाया गया।
वहां से थियानमेन चौक पास ही था। अवसर पाते ही वहॉं पहुंचकर हमने लोकतंत्र के उन हजारों शहीदों को भारत के लोकतंत्र की ओर से श्रद्धांजलि दी।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
(लेखक शिक्षाविद हैं)