जब मैदान में परास्त हुए तो सोशल मीडिया को बनाया नया हथियार

– वीरेंद्र पांडेय

वामपंथ और अराष्ट्रीय ताकतें भारत के जनमानस की भूमि से पूरी तरह उखड़ चुकी हैं। संघ की भारतीय जनमानस के साथ अंतरंगता उन्हें अनुकूल नहीं लग रही है। इसलिए उन्होंने संघ के खिलाफ मिथ्या प्रचार के लिए सोशल मीडिया को हथियार बनाया है।

पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर संघ को लेकर अनेक भ्रामक और मिथ्या पोस्ट आती रही हैं। ये सारी पोस्ट झूठ की बुनियाद पर लिखी जाती रही हैं। अभी कुछ ही दिनों पहले पूजनीय सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के नाम से एक मिथ्या समाचार वायरल किया गया। वास्तविक जैसा लगने के लिए इसे एक पेपर कटिंग के रूप में डिजाइन भी किया गया। इसका शीर्षक था- कोरोना ने तोड़ी मेरी धर्म में आस्था।

इससे पहले संघ को ही लेकर एक समाचार वायरल किया गया था- संघ लागू करेगा नया संविधान। इस समाचार के माध्यम से संघ के विरुद्ध दुष्प्रचार किया गया।

संघ मुस्लिमों, दलितों को खत्म करना चाहता है, जैसी अनेक मिथ्या पोस्टें व्हाट्सएप से लेकर फेसबुक और ट्विटर पर घूमती रहती हैं। इनमें भी सरसंघचालक जी की तस्वीर का प्रयोग करते हुए उनके हवाले से समाचार बनाने की कोशिश होती है। आखिर कौन हैं ये लोग? उनका लक्ष्य क्या है? उन्हें संघ जैसे राष्ट्रीय संगठन से इतनी घृणा किसके एजेंडे पर है?

निश्चित ही यह कुकृत्य भारत विरोधी शक्तियों और वामपंथी सोच विचार का है, जिनकी प्रत्यक्ष सामाजिक, राजनैतिक नींव पूरी तरह ढह चुकी है। यह विचार भारत में लगातार हो रहे राष्ट्रीय विचारों के सूर्योदयों से भयभीत है और छद्म घात का मार्ग अपना रहा है। इस मार्ग में कम्युनिष्ट पहले से आगे हैं। वह पहले हिंदुत्व को सांप्रदायिक बताते रहे। वह बंगाल में लंबे सयम तक सत्तारूढ़ रहे लेकिन विवेकानंद को नहीं मानते थे। पर जैसे जैसे संघ का कार्य बढ़ता गया, उन्होंने हिंदू विचार को नरम और उग्र के खांचे में बांटने की कोशिश की। इनके लोग लंबे समय से ही हिंदू और हिंदू विचार के विरुद्ध भ्रामक प्रचार करते आ रहे हैं। उनकी कोशिश होती है कि जाति, भाषा और प्रांत के नाम पर हिंदू बंटे रहें। इनका एक पूरा गिरोह है। एक फर्जी मुद्दा प्लांट करता है, दूसरा उस पर लेख लिखता है, तीसरा उस पर कथित रिसर्च का नाम देकर किताब लिखता है, चौथा प्रकाशक, पांचवां वितरक बनकर विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों में प्रोफेसरों के माध्यम से शोध करता है और पीएचडी करता है। इस प्रकार एक असत्य, झूठ अनास्था से पैदा होकर विचार समाज में स्थापित होने लगता है। इसी तरह वह संघ को भी बदनाम करने की पूरी कोशिश करते रहे हैं। संघ पर एक मिथ्या आरोप, को साबित करने के लिए दस और मनगढंत आरोप, केस अलग अलग माध्यमों से प्लांट करते रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति दुराग्रह रखने वाला वर्ग संघ के विचार को गंभीरता से सुने बिना ही मिथ्या प्रचार कर समाज को तोड़ने में लगा रहता है। यह वर्ग आरएसएस को ऐन-केन-प्रकारेण विवाद में घसीटने की ताक में बैठा रहता है। भारत में राजनीतिक स्वार्थ इतना चरम पर है कि समाज एवं समरसता के लिए काम करने वाला संगठन, झूठ एवं मिथ्या आरोपों को लगातार सहता रहा है। हमने देखा है कि पूर्व में कैसे ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग ने आरक्षण पर अफवाह और भ्रम फैलाकर हिंदू समाज को तोड़ने के प्रयास किए हैं। विभाजनकारी सोच ने सामाजिक मुद्दे का इस तरह से राजनीतिकरण किया है कि समाज के भले की बात कहना भी कठिन हो गया है। प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक तथा सोशल मीडिया के माध्यम से तथाकथित प्रगतिशील बुद्धिजीवी-पत्रकार, कम्युनिस्ट सहित अन्य राजनीतिक दल तो तैयार बैठे रहते हैं संघ को दलित विरोधी, आरक्षण विरोधी सिद्ध करने के लिए। आजादी के बाद से ही संघ इन दलों और विचारों का कोपभाजन बनता रहा है।

जनसंचार माध्यमों में जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संबंध में भ्रामक जानकारी आती है, तब सामान्य व्यक्ति चकित हो उठते है, क्योंकि उनके जीवन में संघ किसी और रूप में स्थापित है, जबकि आरएसएस विरोधी ताकतों द्वारा मीडिया में संघ की छवि किसी और रूप में प्रस्तुत की जाती है। इसलिए अब बहुत आवश्यक है कि ऐसे किसी भी भ्रामक विषय पर संघ के सूचना तंत्र द्वारा प्रकशित पक्ष को ही महत्त्व दिया जाना चाहिए।

सबल भुजाओं में रक्षित है, नौका की पतवार
चीर चलें सागर की छाती, पार करें मंझधार
ज्ञान केतु लेकर निकला है विजयी शंकर
अब न चलेगा ढोंग, दम्भ, मिथ्या आडंबर।

(लेखक सहायक आचार्य एवं शोधकर्ता हैं)

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *