जम्मू कश्मीर का रोशनी एक्ट : किस किस के हुए थे वारे न्यारे

जम्मू कश्मीर का रोशनी एक्ट : किस किस के हुए थे वारे न्यारे

जम्मू कश्मीर का रोशनी एक्ट : किस किस के हुए थे वारे न्यारे

जम्मू कश्मीर का रोशनी एक्ट एक बार फिर चर्चा में है। इस एक्ट की आड़ में बड़े बड़े नेताओं और ब्यूरोक्रेट्स ने अरबों रुपए की सरकारी जमीन अपने और अपने रिश्तेदारों के नाम करा ली। जम्मू – कश्मीर प्रशासन ने रोशनी एक्ट भूमि घोटाला से जुड़ी दो सूचियां जारी कर दी हैं। जिनमें फारुख अब्दुल्ला समेत कई हस्तियों- हसीब दरबू, मेहबूब बेग, मुश्ताक अहमद चाया, कृशन अमला, खुर्शीद अहमद गनी और तनवीर जहान, मोहम्मद शफी पंडित, मिस निघत पंडित, सैयद मुजफ्फर आगा, सैयद अखनून, एमवाई खान, अब्दुल मजीन वाणी, असलम गोनी, हरुन चौधरी, सुज्जैद किचलू, तनवीर किचलू जैसे लोगों के नाम सामने आए हैं। इनमें हसीब दरबू जम्मू-कश्मीर के पूर्व वित्त मंत्री रहे हैं और केके अमला कांग्रेस के बड़े नेता हैं। श्रीनगर में उनके होटल भी हैं। वहीं मो शफी पंडित मुख्य सचिव रैंक के अधिकारी रह चुके हैं। कांग्रेस का खिदमत ट्रस्ट और नेशनल कॉन्फ्रेंस का भव्य मुख्यालय भी ऐसी ही ज़मीन पर बना हुआ है, जो इस भूमि घोटाले से लगभग मुफ्त के दाम हथियाई गई है।

Land grabber in roshni act

क्या है रोशनी एक्ट
यह एक्ट साल 2001 में, फारुख अब्दुल्ला की सरकार लेकर आई। यह एक लैंड रिफॉर्म एक्ट था जिसे जम्मू और कश्मीर राज्य भूमि एक्ट 2001 के नाम से भी जाना जाता है। इस कानून को लाने का उद्देश्य भूमि पर अनाधिकृत कब्जों को नियमित करना था और इससे आने वाली रकम को पॉवर प्रोजेक्ट्स में खर्च करना था। उम्मीद थी कि बीस लाख कनाल अतिक्रमित जमीन के नियमितीकरण से सरकार 25 लाख करोड़ रुपए जुटा लेगी। लेकिन योजना में हुए बंदर बांट से ऐसा नहीं हुआ।

2014 में CAG की रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि 2007 से 2013 के बीच जमीन ट्रांसफर करने के मामले में गड़बड़ी की गई। सरकार 25000 करोड़ के बजाय सिर्फ 76 करोड़ रुपये ही जमा कर पाई। CAG की रिपोर्ट के आधार पर 2014 में इस केस में एक याचिका लगाई गई। एडवोकेट अंकुर शर्मा ने अपनी इस याचिका में रोशनी केस की जांच सीबीआई को ट्रांसकर करने की मांग की। 28 नवंबर, 2018 में तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने रोशनी एक्ट को निरस्त कर दिया।

हाई कोर्ट ने इस एक्ट को असंवैधानिक बताते हुए खारिज कर दिया तथा इसके अंतर्गत बांटी गई जमीनों का नामांतरण रद्द करने का आदेश दिया और लाभार्थियों के नाम सार्वजनिक करने को कहा। साथ ही जांच सीबीआई को सौंप दी और आदेश देकर यह भी कहा कि हर आठ हफ्ते में केस की जांच के स्टेटस की रिपोर्ट दी जाती रहे।

Print Friendly, PDF & Email
Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *