जिन्ना का डायरेक्ट एक्शन डे
अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति का भारत ने बड़ा खामियाजा भुगता है। वह 16 अगस्त 1946 दिन था, जब इतिहास के पन्ने रक्त से लिखे गए, पूरे बंगाल की सड़कें खून से लाल हो गई थीं। यह दिन मुस्लिम लीग के नेता और पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा घोषित हिन्दुओं के नरसंहार का दिन था।
इसका प्रारंभिक बीज तो 1940 में ही बोया जा चुका था। जिन्ना ने लाहौर प्रस्ताव के बाद मुस्लिमों के लिए स्वतंत्र राज्यों की मांग प्रारंभ कर दी थी। जिन्ना का मानना था कि जहां मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं, वहां मुस्लिमों की सुनवाई नहीं होगी। उस समय तक पाकिस्तान की मांग प्रारंभ नहीं हुई थी। महात्मा गांधी ने अलग राज्यों का भी विरोध किया। परंतु 1946 आते-आते यह मांग अलग राज्यों की मांग से अलग देश की मांग में परिवर्तित हो गई।
1946 में भारतीय कैबिनेट ने अंग्रेजी सरकार के सामने तीन स्तरीय संरचना का प्रस्ताव रखा, जिसमें प्रांत, प्रांत समूह व केंद्र की व्यवस्था की गई। त्रिस्तरीय व्यवस्थाओं का आशय था कि केंद्र सरकार देश के बाहरी कार्यों को देखेगी तथा विशेष राज्यों का संचालन मुसलमानों के हाथों में रहेगा। यहां तक भी विभाजन की कोई बात नहीं हुई थी। 10 जुलाई 1946 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई, जिसमें नेहरू ने घोषणा की, कि कांग्रेस संविधान सभा में भाग लेने को तैयार है, परंतु कांग्रेस ने कैबिनेट मिशन योजना में सुधार का अधिकार अपने पास रखा है, यह वाक्य सुनकर जिन्ना बहुत अधिक क्रोधित हो गए और तभी से अलग देश की मांग प्रारंभ कर दी।
महात्मा गांधी के विभाजन के प्रस्ताव को खारिज करने पर जिन्ना ने कहा कि “या तो भारत विभाजित होगा या नष्ट हो जाएगा।” अंत में जिन्ना ने कहा कि “16 अगस्त को डायरेक्ट एक्शन डे होगा।” यहां से तय किया गया पाकिस्तान बनाने का रास्ता और देश का विभाजन।
जिन्ना ने अपने घर जुलाई में एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाई और कहा कि मुस्लिम लीग अपने मुस्लिम भाइयों के लिए एक अलग देश बनाने को तैयार है। 16 अगस्त को डायरेक्ट एक्शन डे होगा। 16 अगस्त के दिन सुबह के समय जैसे ही दिन चढ़ने लगा, मस्जिदों में भीड़ एकत्रित होने लगी। उस दिन बंगाल के मुख्यमंत्री मुस्लिम लीग के नेता हसन सुहरावर्दी ने नमाज के बाद भीड़ के बीच भाषण दिया। भाषण सुनने के बाद भीड़ निरंकुश हो गई। मुस्लिम दंगाइयों ने हिन्दुओं को मारना शुरू कर दिए। यह मारकाट कोलकाता से प्रारंभ हुई, हजारों की संख्या में नमाजी लाठी-डंडे और हथियार लेकर सड़कों पर आ गए। पंजाब नेशनल गार्ड्स के 1200 मुस्लिम सिपाहियों को भी कोलकाता बुलाया गया था। कोलकाता में मौजूद 24 पुलिस थानों में से 22 का इंचार्ज मुस्लिमों को बनाया गया था। किसी पुलिस थाने ने हिन्दुओं की कोई सुध नहीं ली। हजारों हिन्दुओं को मौत के घाट उतार दिया गया। हजारों को हाथ पैर बांधकर नालों और हुगली नदी में फेंक दिया गया। इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा किया गया यह हिन्दू नरसंहार इतना क्रूर और डरावना था कि यह कभी पता ही नहीं चल पाया कि उस ‘द ग्रेट कोलकाता किलिंग’ के दौरान मरने वाले हिन्दुओं की संख्या कितनी थी।
हजारों हिन्दू माता, बहनों के साथ बलात्कार किए गए और नग्न अवस्था में उनके शरीर को हुकों से लटका दिया गया।यह नरसंहार 16 से 22 अगस्त तक चलता रहा। जब कई दिनों बाद समाचार पत्रों के माध्यम से सूचना देश में फैली तब कई सामाजिक संगठन राहत कार्य के लिए आगे आए।
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया ने पाकिस्तान की मांग का समर्थन किया। गांधीजी ने घटना प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया और लोगों को अहिंसा का रास्ता अपनाने के लिए कहा। परंतु अधिकतर मुस्लिम दंगाइयों ने उनकी बात नहीं मानी।
एक अमेरिकी पत्रकार फिलिप टैलबोट ने 16 अगस्त 1946 के बाद एक पत्र ‘इंस्टीट्यूट आफ करंट वर्ल्ड अफेयर्स’ को लिखा, जिसमें उन्होंने लिखा कि प्रांतीय सरकार ने मरने वालों का आंकड़ा 750 बताया जबकि यह आंकड़ा 7000 से भी अधिक है। अभी तक 3000 से अधिक लाशें तो हुगली नदी से ही एकत्रित की जा चुकी हैं। इसका कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है कि कितने लोगों को हुगली नदी में फेंका गया था। यह भारतीय इतिहास की सबसे वीभत्स घटना थी।
एमजे अकबर की पुस्तक “गांधीज हिंदूज्म: द स्ट्रगल अगेंस्ट जिन्नाज इस्लाम” में 1940 से 1947 के बीच की घटनाओं व भारत विभाजन का सार दिया गया है तथा डायरेक्ट एक्शन डे की त्रासदी को उल्लेखित किया गया है। संभवत 70 साल का इतिहास लंबा नहीं है परंतु समय के साथ हम सभी अपने इतिहास से सीखेंगे।