जी20 सम्मेलन : भारत से अवगत कराने का आयोजन
अवधेश कुमार
जी20 सम्मेलन : भारत से अवगत कराने का आयोजन
राजधानी दिल्ली में आयोजित जी20 सम्मेलन की सफलताओं और भावी परिणामों पर काफी कुछ टिप्पणियां हो रही हैं। किंतु यह सम्मेलन आम वैश्विक सम्मेलनों से अलग भारत, हिंदुत्व या सनातन संस्कृति को वास्तविक रूप में संपूर्णता के साथ प्रस्तुत किए जाने का इतिहास का सबसे बड़ा अवसर बन गया। यह ऐसा पहलू है, जिसकी चर्चा अवश्य होनी चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने विश्व के सभी प्रमुख नेताओं व संस्थाओं के प्रमुखों और प्रतिनिधियों तथा अंतरराष्ट्रीय मीडिया के समक्ष प्राचीनतम राष्ट्र के रूप में भारत, हिन्दू धर्म और संस्कृति तथा इसकी संपन्न विरासत को जितने प्रभावी और तार्किक तरीके से प्रस्तुत किया, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। आयोजन की थीम से लेकर कोणार्क का सूर्य मंदिर, नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर, नटराज की मूर्ति, आयोजन स्थल का नाम, देश का नाम, नृत्य-संगीत, खान-पान, वेश-भूषा, नृत्य-संगीत-कला सभी भारत के प्राचीन और महान सभ्यता संस्कृति जीवन शैली एवं समृद्ध विरासत वाले देश की छवि प्रस्तुत कर रहे थे।
इसका संकेत भारत को अध्यक्षता मिलने के कुछ समय बाद ही मिल गया था, जब थीम में वसुधैव कुटुंबकम तथा सात दलों वाला कमल दिखाया गया था। वसुधैव कुटुंबकम महाउपनिषद से लिया गया है। इसका अर्थ संपूर्ण विश्व एक परिवार है। साफ हो गया कि भारत जी20 एजेंडा तक सीमित न रहकर हिन्दुत्व या भारत की सनातन संस्कृति के अनुरूप सम्मेलन को चरित्र देने की ओर बढ़ रहा है। आयोजन स्थल को ही भारत मंडपम नाम दिया गया। प्रधानमंत्री के सामने की प्लेट पर इंडिया की जगह भारत लिखा गया। पहला सबसे बड़ा संदेश तो यही था कि यह इंडिया नहीं भारत है। मंडपम मंदिर में गर्भगृह के आगे वाले भाग को कहा जाता रहा है। भारत मंडपम भगवान बसवेश्वर की अनुभव मंडपम की अवधारणा से प्रेरित है। इसको शंख का आकार दिया गया। हिन्दू धर्म में शंख का महत्व है। मंडपम की दीवारों पर संस्कृत के वाक्य उकेरे गए। इनमें सूर्य शक्ति और पंच महाभूत शामिल हैं। सूर्य संपूर्ण सृष्टि को चलाने के लिए ऊष्मा और प्रकाश के देव हैं, जबकि पंच महाभूत में ब्रह्मांड के 5 मूल तत्व, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी आते हैं, जिन्हें हिन्दू धर्म सभी जीवों का मूल आधार मानता है। इससे यह संदेश गया कि भारत 15 अगस्त, 1947 को पैदा देश नहीं है और भारत का अर्थ राष्ट्र-राज्य के रूप में वह नहीं जो सामान्यतः प्रस्तुत किया जाता है। जीव-अजीव सहित संपूर्ण ब्रह्मांड की गहनतम और सूक्ष्मतम चिंतन इस राष्ट्र की आधारभूमि है, जिसका स्रोत हिन्दुत्व, हिन्दू धर्म या सनातन है।
भारत मंडपम में स्वागत द्वार पर गीता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) आगंतुकों का स्वागत कर रही थी। यहां जीवन से जुड़ा कोई भी प्रश्न पूछा जा सकता था। हर प्रश्न का उत्तर श्रीमद्भागवत गीता की शिक्षाओं के आधार पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस दे रहा था। अगर आप गीता के किसी श्लोक का अर्थ चाहते हैं तो उसका भी उत्तर यहां मिलेगा। इस तरह प्रवेश के साथ ही वातावरण। मंदिरों और उन स्थलों को आधुनिक ब्रांड के रूप में प्रस्तुत किया गया जो पहले विश्व पर्यटन की सूची में शामिल नहीं रहे हैं। उदाहरण के लिए 13वीं शताब्दी में निर्मित कोणार्क का सूर्य मंदिर। इसका स्वयं भारत और विश्व में पर्यटक स्थल के रूप में प्रचार नहीं था। इसकी वास्तुकला, निहित प्रकृति के ज्ञान, सूर्य के साथ इसके संबंध, धार्मिक-आध्यात्मिक महत्व आदि को ऐसे प्रस्तुत किया गया जिससे आश्चर्य पैदा हो तथा भारत आने वाले के मन में इसे देखने और समझने की चाहत पैदा हो। प्रधानमंत्री मोदी जहां खड़े होकर मंडपम के अंदर नेताओं को रिसीव कर रहे थे, उसके पीछे लगा कोणार्क चक्र भारत के प्राचीन ज्ञान, उन्नत सभ्यता और वास्तुशिल्प की उत्कृष्टता का प्रतीक है, जिसे विश्व ने भी जाना। मोदी कई नेताओं को इसका विवरण भी देते दिखे।
कोणार्क मंदिर का निर्माण राजा नरसिंह देव प्रथम के शासनकाल में हुआ। यह मंदिर सूर्य के विशालकाय रथ की तरह बनाया गया है, जिसे सात घोड़े खींचते हैं। इस रथ में 12 जोड़े पहिए लगे हैं। यानी कुल मिलाकर 24 पहिए। हर पहिए पर शानदार नक्काशी है। ये पहिए, जिन्हें कोणार्क कालचक्र कहते हैं, हमारी जीवनचर्या से संबंधित वैज्ञानिक बातें बताते हैं। यही चक्र भारत के राष्ट्रीय ध्वज में समाहित है और भारत के प्राचीन ज्ञान, उन्नत सभ्यता और वास्तुशिल्प का उत्कृष्ट प्रतीक है। कोणार्क चक्र की घूमती गति कालचक्र के साथ प्रगति और निरंतर परिवर्तन का प्रतीक है। यह लोकतंत्र के पहिए के एक शक्तिशाली प्रतीक के रूप में कार्य करता है और जो लोकतांत्रिक आदर्श के लचीलेपन और समाज में प्रगति के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। जरा सोचिए, इसके पहले कब इस रूप में विश्व के सामने रखा गया?
आयोजन स्थल भारत मंडपम के सामने नटराज की प्रतिमा में भगवान शिव की नृत्य मुद्रा थी। नटराज का स्वरूप शिव के आनंद तांडव का प्रतीक है। शिव एक पांव से राक्षस को दबाए हुए हैं जिसका अर्थ बुराई के नाश से लिया जाता है। शिव अपने नृत्य से सकारात्मक ऊर्जा के संचार का संदेश देते हैं। नटराज की मूर्ति दक्षिण भारत के कई मंदिरों जैसे थिल्लई नटराज मंदिर, उमा माहेश्वरार मंदिर और बृहदेश्वर मंदिर आदि में स्थापित मूर्तियों से प्रेरणा लेकर बनाई गई। बताया जाता है कि ये मंदिर चोल साम्राज्य में लगभग 9वीं से 11वीं सदी के बीच बनाए गए थे। चंद्रयान 3 के चंद्रमा पर उतरने के स्थल को शिव शक्ति नाम देने के बाद शिव के स्वरूप से विश्व को परिचित कराने का अगला कदम था। मेहमान भारत मंडपम में प्रवेश करते तो दीवारों पर अंकित विभिन्न योग मुद्राएं देखने को मिलती थीं। दीवारों पर 32 अनिवार्य योगासन प्रदर्शित किए गए थे, जो घेरंड संहिता के 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध के पाठ से लिए गए। महर्षि घेरंड ने राजा चण्डकपालि को बढ़िया स्वास्थ्य के लिए 32 आसनों की शिक्षा दी थी। संहिता कहती है कि इस जगत में जितने भी प्राणी हैं, उन सभी की सामान्य शारीरिक स्थिति को आधार बनाकर एक-एक आसन की खोज की गई है। संयुक्त राष्ट्र संघ में योग को मान्यता दिलाने के बाद विश्व को उसके सूक्ष्मता से परिचय करना आवश्यक था।
इसके बाद वॉल ऑफ डेमोक्रेसी। इसमें पांच हजार वर्ष का भारत का लोकतांत्रिक इतिहास बताया गया था। कुछ विशेष अध्ययन करने वाले को छोड़ दें तो विश्व में यह जानकारी ही नहीं थी कि भारत इतने हजार वर्ष पूर्व भी एक संगठित सुव्यवस्थित शासन तंत्र, समाज व्यवस्था, संस्कृति व अध्यात्म वाला व्यवस्थित राष्ट्र था। यहां लगे 26 स्क्रीन पैनल में अलग-अलग समय की कहानियां दिखाईं जा रहीं थीं। इनमें भारतीय संविधान, आधुनिक भारत में चुनाव से लेकर भारत-मदर ऑफ डेमोक्रेसी, सिन्धु घाटी सभ्यता, वैदिक काल, रामायण, महाभारत, महाजनपद और गणतंत्र, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, कौटिल्य और अर्थशास्त्र, मेगस्थनीज, सम्राट अशोक, फाह्यान, पाल साम्राज्य के खलीमपुर ताम्रपत्र, श्रेणीसंघ, तमिलनाडु का प्राचीन शहर उथीरामेरुर, लोकतंत्र का दार्शनिक आधार, कृष्णदेव राय, अकबर, छत्रपति शिवाजी, स्थानीय स्वशासन आदि थे। इससे यह झूठ ध्वस्त हो जाता है कि अंग्रेजी शासन के कारण भारत एक राष्ट्र राज्य के रूप में संगठित हुआ तथा इसे लोकतांत्रिक व्यवस्था मिली।
मोटे अनाज से जुड़ी पहल को महर्षि (मिलेट्स ऐंड अदर एनशिएंट ग्रेन्स इंटरनैशनल रिसर्च इनिशिएटिव) का नाम दिया गया। महर्षि शब्द से ही विदेशी लोग अनभिज्ञ थे। उन्हें बताया गया कि हिन्दू धर्म में सांसारिक मोह माया से विरत होकर साधना और तपस्या करने वाले महर्षि कहलाए। नृत्य संगीत कार्यक्रम में थीम सॉन्ग वसुधैव कुटुंबकम पर पूरी प्रस्तुति सनातन संस्कृति को दर्शाने वाली थी। शास्त्रीय संगीत वाद्य यंत्रों के साथ प्राचीन वैदिक संगीत वाद्ययंत्रों, जनजातीय वाद्य यंत्रों और लोक वाद्य यंत्रों का शानदार सुमेल बनाया गया था। सभी कलाकारों की वेशभूषा पूरी तरह पारंपरिक थी। आयोजन स्थल पर सुरबहार, जलतरंग, नलतरंग, विचित्र वीणा, रुद्र वीणा, सरस्वती वीणा, धंगली, सुंदरी, भपंग और दिलरुबा जैसे कई वाद्ययंत्र प्रदर्शित किए गए। ये ऐसे वाद्य यंत्र हैं जो भारतीय संस्कृति में ही मिलते हैं और उनके वाद्य में संपूर्ण ब्रह्मांड की गति और लय के साथ तादात्म्य भाव बताया जाता है। राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू द्वारा आयोजित रात्रिभोज में भारत की विविध निरामिष भोज्य सामग्रियां विद्यमान थीं। विश्व के नेताओं को पहली बार अनुभव हुआ कि भारत में भोजन के पीछे भी कितनी गहरी सोच है और उसमें विविधताएं कितनी अधिक हैं।
इस तरह यह स्वीकार करने में समस्या नहीं है कि मोदी सरकार ने इस अवसर का भारत के प्राचीन गौरव, ज्ञान, हिन्दुत्व, सनातन संस्कृति तथा एक महान विरासत वाले राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत करने के लिए गहन विमर्श व शोध किया और उसके अनुरूप रचनायें भी कीं। ऐसा लगता है जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे किसी अवसर की तलाश में थे, जब कभी कभार अवसर का उपयोग करते हुए टुकड़ों-टुकड़ों में भारत और हिन्दुत्व को समझाने की बजाय एक साथ इस तरह प्रस्तुत किया जाए कि विश्व के प्रभावी लोग देख और समझ सकें, मीडिया द्वारा विश्व भर में चर्चा हो तथा लंबे समय से बनाई नकारात्मक धारणाएं ध्वस्त कर दी जाएं। इसका कितना प्रभाव हुआ होगा इसका आकलन करना कठिन है पर यह निष्फल नहीं हो सकता इतना निश्चित है। एक बार की इतनी तैयारी हो जाने के बाद किसी भी अवसर पर इन सबका एक साथ उपयोग किया जा सकता है। अलग-अलग नेताओं के उद्गारों में इसका असर भी देखने को मिला। नेतागण वसुधैव कुटुंबकम से लेकर शेष चीजों का अपने अनुसार मीडिया के समक्ष अर्थ भी बता रहे थे। उदाहरण के लिए बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा कि वसुधैव कुटुंबकम में प्रत्येक जीव को महत्व दिया गया है। इसको कहते हैं असर। ध्यान रखिए कि चीन ने वसुधैव कुटुंबकम एवं महर्षि शब्द का इस आधार पर विरोध किया कि ये संस्कृत शब्द हैं जो संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है। किंतु भारत डिगा नहीं और संकल्प ने प्रभाव दिखाया।