ज्ञान की बातें
विष्णु शर्मा ‘हरिहर’
झूठ न मीठा बोलिए, भले सभी हों दूर।
पालन जिसने भी किया, उसके मुख पर नूर॥
लाश पड़ी चुपचाप है, नहीं निकलता बोल।
मरे हुए के कान को, कौन सका है खोल॥
अहंकार में डूब कर, सच का छोड़ा साथ।
अंत समय पछता रहा, मल- मल कर क्यों हाथ॥
लेखक कवि विद्वान को, रखना होगा ध्यान।
जीवित रहना चाहिए, भीतर का इंसान॥
सत्य छोड़ जो भी चला, मिली उसे दुत्कार।
पुतले उनके जल रहे, थूक रहा संसार॥
खरा मनुज डरता नहीं, लड़े झूठ से जंग।
गिरगिट बनकर वह कभी, नहीं बदलता रंग॥
दुश्मन से जाकर लड़े, चेतक वीर तुरंग।
अंग्रेजों से जा भिड़े, केशव खोद सुरंग॥