भारत को टीबी मुक्त बनाना है
सीमा अग्रवाल
विशेषज्ञों के अनुसार टीबी और मधुमेह बेशक बिल्कुल दो अलग तरह की बीमारियां हैं। टीबी जहॉं जीवाणु जनित रोग है, वहीं मधुमेह गैर संचारी उपापचय क्रियाओं से जुड़ा है। लेकिन इनका आपसी रिश्ता काफी गहरा और जटिल है। टीबी के मरीज में डायबिटीज और डायबिटीज के मरीज में टीबी होने का खतरा सबसे अधिक होता है और यह खतरा सदैव बना रहता है। किसी भी शहर में डॉक्टरों की ओपीडी में डायबिटीज और टीबी के रोगियों के आने की संख्या देखेंगे तो समझ आ जाएगा। अधिकांश रोगियों में दोनों बीमारियां मिलेंगी।
स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि जिन रोगियों में एमडीआर-टीबी और डायबिटीज एक साथ होते हैं, उनमें उपचार के लिए शरीर की कोशिकाओं की प्रतिक्रिया धीमी होती है। मधुमेह और टीबी का जटिल संयोजन टीबी के इलाज और रिकवरी को धीमा कर देता है। इससे टीबी के ड्रग फेलियर के केस बढ़ने लगते हैं। टीबी के इलाज में जो दवाएं दी जाती हैं वो असरकारक नहीं रह जातीं। ड्रग फेलियर होने से टीबी मरीजों की मौत होने और बीमारी पलटने के हालात बढ़ जाते हैं। ड्रग फेलियर से टीबी के सोए जीवाणु पुन: सक्रिय होकर संक्रमण बढ़ाते हैं।
मेडिकल साइंस के अनुसार अहम बात टीबी के जीवाणु कोशिकाओं को इंसुलिन प्रतिरोधी बनाते हैं। जो खून में शुगर लेवल बढ़ाकर प्री डायबिटीज के हालात बनाता है। इसके लंबे समय तक बने रहने से मरीज डायबिटीज मेलिटस का शिकार हो जाता है। यह चक्र चलता रहता है। परिणाम यह कि दोनों बीमारियों का इलाज एक साथ कठिन हो जाता है।
ग्लोबल वर्डन ऑफ डिजीज स्टडी के अनुसार दुनिया में समान, मध्यम और निम्न आय वाले देशों में टीबी के नए केस सबसे अधिक हैं। जो लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इसमें भारत भी शामिल है। इन देशों में टीबी के साथ पिछले दशक में मधुमेह के मामले भी तेजी से बढ़े हैं। देखें तो इन देशों में तेजी से बढ़ता शहरीकरण, कुपोषण की बढ़ती दर टीबी और मधुमेह दोनों के खतरे को बढ़ा रहे हैं।
विशेषज्ञ बताते हैं कि शुगर पेशेंट्स में लो इम्युनिटी के कारण स्लीप ट्यूबरकोलाइसिस का खतरा हमेशा बना रहता है। कभी भी मधुमेह के मरीज में टीबी का जीवाणु एक्टिव होकर संक्रमण के रूप में टीबी को विकसित कर देता है। डायबिटीज के मरीज को जब टीबी के इलाज की दवाएं रिफाम्पिन और आइसोनिआजिड दी जाती है, तो ये दवाएं टीबी के जीवाणु को रजिस्टेंट करती हैं। मरीज टीबी की दूसरी स्टेज एमडीआर में पहुंच जाता है। एमडीआर टीबी वो गंभीर स्टेज है, जहां मरीज पर दवाएं फेल होने लगती हैं। रोग बढ़ता जाता है।
ग्लोबल वर्डन ऑफ डिजीज के सर्वे के अनुसार शरीर में उच्च रक्त शर्करा स्तर टीबी का एक मुख्य कारण माना गया है। डायबिटीज रोगियों के खून में ग्लूकोज का स्तर उच्च मिलता है। जो टीबी के जीवाणुओं को पोषित करते हुए संक्रमण दर को बढ़ाता है। इसके चलते रोगी का प्रतिरक्षी तंत्र विफल हो जाता है और संक्रमण घातक हो जाता है।
इसी तरह टीबी के मरीजों की कोशिकाएं इंसुलिन प्रतिरोधी हो जाती है। अग्नाशय से स्रावित होने वाले इंसुलिन हार्मोन को कोशिकाएं अवशोषित नहीं कर पातीं। शरीर में ग्लूकोज टूट नहीं पाता और मरीज के खून में शर्करा का स्तर बढ़ता जाता है। ये स्टेज शरीर में प्री डायबिटीज के हालात बनाती है। जो आगे चलकर टाइप -2 डायबिटीज में बदल जाते हैं।
अब बात यह है कि 2025 तक टीबी मुक्त भारत बनाने की बड़ी चुनौती मधुमेह के साथ टीबी को जड़ से उखाड़ना है। इसके लिए लोगों को अपने रहन सहन का तरीका बदलना होगा। सरकार को टीबी के साथ मधुमेह से बचाव के बराबर उपाय करने होंगे। टीबी और मधुमेह के लिए अलग-अलग योजना बनाने की जगह एकीकृत योजना बनाकर इन पर काबू पाना होगा। तभी भारत को टीबी मुक्त बना सकेंगे।