मानव – जनित अमानवीयता : ह्यूमन (टीवी सीरीज)
डॉ. अरुण सिंह
हाल ही में आई टीवी सीरीज “ह्यूमन” का पहला सीजन मेडिकल/फार्मा क्षेत्र में भ्रष्टाचार और अमानवीयता के कटु यथार्थ का प्रदर्शन है। नव-निर्मित दवाइयों के परीक्षण में निर्धनों को पशु की भांति प्रयोग में लेना और उनके जीवन को नारकीय बना देना, यह धनाढ्य लोगों का शगल है। दवाइयों का यह व्यापार निर्धन और जीवन की आधारभूत आवश्यकताओं से घिरे लोगों के शवों पर फलता फूलता है। यह मृत्यु भी इतनी आसान नहीं है, बहुत दर्दनाक है। डॉ. गौरी नाथ एक अत्यंत ही संवेदनहीन, क्रूर चेहरा है जो अपनी कुंठा की अतिवादिता में अपनी मानवीयता ही भुला चुकी है। वह अपनी अंधी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति हेतु भावशून्यता की पराकाष्ठा को प्राप्त कर लेना चाहती है। “मंथन” उसकी महत्वाकांक्षा का रूपक है और यह रूपक शवों के ढेर पर खड़ा हुआ है। इस पूरे भ्रष्ट गठजोड़ की केंद्रीय कड़ी गौरी ही बनती है, जिसमें राज्य के शीर्ष नेता भी शामिल हैं। डॉ. सायरा को भी गौरी अपने इस भयावह मिशन में शामिल कर लेती है, जिसकी वास्तविकता सायरा देरी से समझ पाती है। नील को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है।
रोमा, डॉ. गौरी नाथ का मोहरा है जो निर्धन, बेसहारा युवतियों को कैद में रखकर इस षड्यंत्र में सहयोगी है। वह कैद की हुई युवतियों को नशीली दवाईयों के माध्यम से संवेदना विहीन बनाने में लगी हुई है, परंतु दीपाली को ऐसा पुतला बनाने में वह असफल रहती है। नई दवाइयों के परीक्षण में निर्धन परिवार तबाह हो जाते हैं। मंगू का परिवार इसका उदाहरण मात्र है।
कोरोना काल की त्रासदी के समय में इस टीवी सीरीज की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है। भोपाल गैस त्रासदी का ऐतिहासिक पहलू भी जोड़ा गया है। बॉलीवुड सिनेमा में समलैंगिकता का मिर्च मसाला अनिवार्य हो गया है। यहां भी आया है। उमर परवेज़ ही ईमानदार चरित्र है, क्योंकि वह मुस्लिम है। यह बॉलीवुडिया सेक्युलरिज्म है। शेफाली शाह और कीर्ति कुलहरी का अभिनय बहुत श्लाघनीय है।
कुल मिलाकर डिज्नी प्लस हॉटस्टार की वेब सीरीज ह्यूमन दवाओं के मानवीय परीक्षण के गैरकानूनी कारोबार और अमानवीय पहलू पर एक झकझोरने वाली टिप्पणी है।