72वें गणतंत्र दिवस पर देश विरोधियों की कलुषित कलंक कथा
सूर्यप्रकाश सेमवाल
देश के 72वें गणतंत्र दिवस पर लाल किले की प्राचीर से लेकर दिल्ली पुलिस के मुख्यालय आईटीओ में किसानों की ट्रैक्टर परेड के नाम पर देशविरोधी ताकतों ने अपने सुनियोजित कुत्सित षड्यन्त्र से संविधान और कानून की जो धज्जियां उड़ाईं, उससे विश्व में भारत का मस्तक शर्म से झुक गया।
कोरोना से मुक्ति की ओर, अपने साथ ही विश्व के लिए भी स्वदेशी कोरोना वैक्सीन उपलब्ध करवाने के कीर्तिमान के उपरांत प्रत्येक भारतवासी आत्मगौरव से प्रफुल्लित था। राजपथ पर वैश्विक धमक और आत्मनिर्भर भारत की जयकार, हमारी सशक्त सेनाओं, राफेल और चिनूक के साथ स्वदेशी अस्त्र-शस्त्रों के प्रदर्शन से जहां शत्रु भौंचक्के थे, वहीं विश्व अचरज से आश्वस्त। राष्ट्र के इस भव्य गौरवमय महापर्व पर राजपथ पर निकली भव्य झांकियों के पूर्ण होने और गणतंत्र दिवस समारोह में उपस्थित अभ्यागतों के जाते ही देशविरोधी अराजक तत्वों ने मानो इस गौरवपूर्ण उपलब्धि पर ग्रहण लगाकर एक कलुषित अराजक हिंसक उन्माद की तस्वीर विश्वभर को दिखा दी, जो देश के लोकतान्त्रिक इतिहास में सरकार की सहनशीलता, उदारता और विश्वास का हनन करने वाली कलंक गाथा बन गई।
दो महीने से विदेशी चंदे, असामाजिक तत्वों और देशविरोधी ताकतों के दम पर चल रहे कथित किसान आंदोलन के हिमायती कांग्रेस, कम्युनिस्ट, आप और अकाली दल तथा अपनी वास्तविक जमीन खो चुके अर्बन नक्सल किसान नेताओं के माध्यम से गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड की जिद पाले बैठे थे। देशभर में किसानों को भरमाने, शंकित करने और बरगलाने वाले अर्बन नक्सली जो किसानों का बाना ओढ़े संसद से सड़क तक और अदालत से लेकर वैश्विक प्लेटफॉर्म तक भारत को बदनाम और दुष्प्रचारित करने में लगे थे। दूसरी ओर केंद्र सरकार के साथ 11 दौर की बातचीत और दिल्ली पुलिस के साथ ट्रैक्टर परेड के लिए 5 दौर की बातचीत एक नौटंकी ही थी मानो। देश के गणतंत्र महापर्व पर ट्रैक्टर परेड की जिद और देशविरोधी षड्यन्त्र के मंसूबे इतने भयावह और स्याह थे, जिसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती। इस सुनियोजित षड्यंत्रकारी गिरोह ने न केवल केंद्र सरकार के भरोसे, लचीलेपन और उदारता को करारी चोट दी बल्कि भारतीय स्वाधीनता के अमर बलिदानियों, हमारे संविधान, देश के लिए अपना सर्वस्व समर्पण करने वाले अमर सैनिकों का अपमान किया। अराजक और हिंसक उन्माद से तिरंगे का अपमान, ऐतिहासिक धरोहर को अपवित्र और नष्ट करने का काम, सैकड़ों निहत्थे पुलिसकर्मियों की जान लेने के प्रयास का जो खूनी खेल चला, उससे हर देशवासी आहत और क्रोधित है। राजपथ पर देश के जवान के साथ किसान की परेड करवाने वाले खालिस्तानी, माओवादी और जिहादी एजेंडे की केमेस्ट्री से देश की संप्रभुता, सुरक्षा और एकता को खंडित करने वाले नापाक डिस्कोर्स को अंजाम देने वालों को कब तक देश में आग लगाने और अराजकता फैलाने की मनमानी छूट मिलेगी।
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप समर्थकों को कोसने और इस पर फिलॉसफी झाड़ने वाले अर्बन नक्सल उस्तादों के उकसाए डंगर उत्पात में सबसे आगे निकल गए। 72वें गणतंत्र को कलुषित और कलंकित करने वाले इन देशविरोधी किरदारों का उचित इलाज नहीं हुआ तो संसद पर धावा और उसके बाद शीर्ष अदालत पर हमले की इनकी कुत्सित योजना को इसी तरह पंख लगते रहेंगे। यह प्रमाणित हो चुका है कि ये हिंसात्मक तत्व किसान नहीं राष्ट्रविरोधी तत्व हैं। देश संविधान के अनुसार ही चलेगा, मुट्ठीभर लोग केवल विरोध के लिए विरोध की इवेंट बनाकर संविधान की दुहाई और हाथ में तिरंगा लेकर देशविरोधी एजेंडा चलाएंगे, संवैधानिक व्यवस्था को नहीं मानेंगे, सरकार के आश्वासन को मानने को तैयार नहीं होंगे तो फिर उपाय क्या बचता है?
भारतीय लोकतान्त्रिक अस्मिता के प्रतीक और स्वतंत्रता की धरोहर माने जाने वाले लाल क़िले पर गणतंत्र दिवस की पावन बेला पर जो कुछ हुआ, वह देश की स्वाधीनता और अखंडता के लिए बलिदान देने वालों का अपमान है, जो अक्षम्य अपराध है।
देश के सर्वमान्य महापर्व पर हुई यह निंदनीय घटना समूचे देश के साथ एक बहुत बड़े धोखे और आत्मग्लानि का विषय है। लोकतान्त्रिक अधिकार, शांति की बात और किसानों की संवेदना के नाम पर गणतंत्र दिवस के दिन संवेदनशील व्यवस्था और जटिल स्थिति में भी ट्रैक्टर रैली की अनुमति लेकर उसे कट्टरपंथी अराजक व देशविरोधी तत्वों के हाथों सौंप देना, यह लोकतंत्र के साथ धोखा नहीं तो क्या है?
देश की प्रतिष्ठा, संप्रभुता और सुरक्षा को ताक पर रखकर अराजक हिंसा में शामिल दंगाइयों पर कड़ी कार्रवाई हो तथा किसानों के नाम पर गुमराह करने वाले, भड़काने वाले, देशविरोधी एजेंडे के नेतृत्वकर्ता किरदारों की चुन-चुनकर पहचान होनी चाहिए। भारत की 130 करोड़ जनता का आक्रोश और आहत मन इन देशद्रोहियों को त्वरित और प्रभावी दंड की आशा करता है, ऐसी सजा ताकि भविष्य में इस काले अध्याय की पुनरावृत्ति का दुःसाहस कोई न कर सके।
(साभार विश्व संवाद केंद्र भारत)