तारणा त्रयोदशी : प्राचीन जैव विविधता दिवस
जैव विविधता की दृष्टि से पृथ्वी पर उपलब्ध सभी अनाजों व वनस्पतियों को संरक्षित रखने के लिए तारणा त्रयोदशी (कार्तिक शुक्ल तेरस) को एक पर्व के रूप में अति प्राचीन काल से मनाया जाता रहा है। इस पर्व के दिन 13 विविध अनाजों के सम्मिश्रित व्यंजन एवं 13 विविध प्रकार की हरी सब्जियों की मिश्रित सब्जी बनाने व खाने की परंपरा रही है। इससे प्रकृति प्रदत्त अनाजों व सब्जियों के बीजों का संरक्षण सहज रूप से होता रहा है।
प्रत्येक अनाज एवं उसकी प्रजाति में अनेक विलक्षण गुण होते हैं जो अन्य किसी अनाज में नहीँ मिलते। प्राचीन मोटे अनाजों यथा माल चीणा, ज्वार, बाजरा, सामा, कुलथ, जौ, मक्का आदि के अनेक विलक्षण गुणों एवं इनके रोग- प्रतिरोधक क्षमता को देखते हुए इन सभी अनाजों की खेती की परंपरा को जीवित रखने के लिए इनका संरक्षण आवश्यक है।
इस प्राचीन जैव विविधता दिवस (तारणा त्रयोदशी) को सस्नेह सहभोज के साथ भी प्रतिवर्ष मनाया जाता है। इस दिन किया जाने वाला विशिष्ट भोजन प्रयोग इतना अधिक दिव्य गुणकारी एवं प्रभावी है कि इससे शरीर को वर्ष भर के लिए ताजगी प्राप्त हो जाती है। तारणा त्रयोदशी प्रकृति- पूजा, स्वाद और आरोग्य का संदेश देती है।