भारती पत्रिका के संस्थापक दादाभाई गिरिराज शास्त्री का जन्मशताब्दी समापन समारोह आज

भारती संस्कृत पत्रिका शुरू करने वाले दादाभाई गिरिराज शास्त्री का जन्मशताब्दी समापन समारोह आज

भारती संस्कृत पत्रिका शुरू करने वाले दादाभाई गिरिराज शास्त्री का जन्मशताब्दी समापन समारोह आज

जयपुर, 1 सितम्बर। भारतीय संस्कृत प्रचार संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दिवंगत वरिष्ठतम प्रचारक दादाभाई गिरिराज शास्त्री जन्म शताब्दी समापन समारोह संघ कार्यालय भारती भवन में आज आयोजित होगा। समारोह में भारती संस्कृत पत्रिका का विशेषांक विमोचन व वेबसाइट का लोकार्पण संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक शिक्षण प्रमुख स्वांत रंजन करेंगे। इस अवसर पर आयोजित होने वाले विशिष्ट व्याख्यान को संघ के क्षेत्रीय प्रौढ़ कार्य प्रमुख कैलाशचंद्र भी सम्बोधित करेंगे।

भारती के प्रबंध सम्पादक सुदामा शर्मा ने बताया कि बाबा साहब आप्टे की प्रेरणा से करीब 70 वर्ष पूर्व दादाभाई ने भारती संस्कृत पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया था। देववाणी संस्कृत में भारती के प्रचार-प्रसार में दादाभाई गिरिराज का अविस्मरणीय योगदान रहा है। ऐसे में उनकी जन्मशताब्दी वर्ष में दादाभाई के जीवनवृत पर विशेषांक का विमोचन व वेबसाइट का लोकार्पण किया जाएगा। उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमण के प्रसार के दौर में समारोह सादगी व संक्षिप्त रूप में प्रतीकात्मक आयोजित होगा, जिसे विश्व संवाद केन्द्र के फेसबुक पेज पर लाइव प्रसारण के जरिए घर बैठे देखा जा सकेगा।

उन्होंने बताया कि दादाभाई गिरिराज शास्त्री का जन्म अनन्त चतुर्दशी सन् 1921 में भरतपुर जिले के कामां कस्बे में हुआ था। संघ का स्वयंसेवक बनने के बाद वे राजस्थान में प्रांत कार्यवाह समेत विभिन्न दायित्वों पर रहे। वे प्रतिदिन सूर्यनमस्कार करने के आग्रह के साथ देव पूजा के तुलना में राष्ट्र पूजा को प्राथमिकता देते थे। उन्होंने शंकराचार्यों समेत प्रमुख संतों व जनप्रतिनिधियों को जोड़कर भारती के कार्य को आगे बढ़ाया। उनके प्रयासों से भारती संस्कृत जयपुर से निकलने वाली राष्ट्रीय स्तर की मासिक पत्रिका बनी।

उनका करपात्री महाराज, पुरी शंकराचार्य नरेन्द्रदेव तीर्थ महाराज, शृंगेरीपीठ, कांचीपीठ, द्वारिकापीठ व ज्योतिषपीठ के शंकराचार्यों समेत पूर्व राज्यपाल डॉ. सम्पूर्णानंद, सुंदरसिंह भण्डारी से घनिष्ठ सम्बंध रहे। संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्रीगुरूजी, बाला साहब देवरस, रज्जू भैया, कुसी सुदर्शन, एकनाथ रानाडे, माधवराव मूले का भी उन पर अपार स्नेह रहा।

Print Friendly, PDF & Email
Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *