दिवेर का युद्ध जिसमें महाराणा ने एक वार से बहलोल खान को घोड़े समेत दो टुकड़ों में काट दिया था

दिवेर का युद्ध जिसमें महाराणा ने एक वार से बहलोल खान को घोड़े समेत दो टुकड़ों में काट दिया था

नारायण लाल

दिवेर का युद्ध जिसमें महाराणा ने एक वार से बहलोल खान को घोड़े समेत दो टुकड़ों में काट दिया था

बात सन 16 सितंबर 1583 की है। विजयदशमी का दिन था। महाराणा प्रताप ने अपनी नयी सेना संगठित कर समस्त सैनिकों के साथ मेवाड़ को पुनः स्वतंत्र कराने का संकल्प लिया। प्रसिद्ध संत योगी रूपनाथ व इष्ट माता चामुंडा का पावन आशीर्वाद लेकर दिवेर युद्ध प्रारम्भ हुआ। महाराणा प्रताप ने सेना को दो हिस्सों में विभाजित कर युद्ध का बिगुल फूंक दिया। एक टुकड़ी का नेतृत्व स्वयं महाराणा के हाथ में था तथा दूसरी टुकड़ी का नेतृत्व उनके पुत्र अमर सिंह कर रहे थे।

दिवेर का यह युद्ध बड़ा भीषण था। राजकुमार अमर सिंह के नेतृत्व वाली टुकड़ी ने दिवेर थाने पर हमला कर दिया। हजारों की संख्या में मुगल सैनिक तलवारों, बरछों, भालों व कटारों से बींध दिए गए। युद्ध में राजकुमार अमरसिंह ने सुल्तान खान को बरछा मारा जो सुल्तान खान और उसके घोड़े को काटता हुआ निकल गया। महाराणा प्रताप ने बहलोल खान मुगल के सिर पर वार किया तथा तलवार से उसे घोड़े समेत काट दिया। शौर्य का यह उदाहरण इतिहास में कहीं देखने को नहीं मिलता है। इसी पर यह कहावत बनी कि मेवाड़ में सवार को एक ही वार में घोड़े समेत काट दिया जाता है।

ये घटनाएँ मुगलों को भयभीत करने के लिए पर्याप्त थीं। बचे-खुचे 36000 मुगल सैनिकों ने महाराणा के सम्मुख आत्मसमर्पण कर दिया। दिवेर के युद्ध ने मुगलों का मनोबल इस प्रकार तोड़ दिया कि उन्हें मेवाड़ के अपने सारे 36 थाने व ठिकाने छोड़ कर निकल जाना पड़ा। यहाँ तक कि कुम्भलगढ़ का किला तक रातोंरात खाली कर मुगल भाग खड़े हुए।

दिवेर का युद्ध न केवल महाराणा प्रताप अपितु मुगलों के इतिहास में भी अत्यंत निर्णायक सिद्ध हुआ। मुट्ठी भर हिन्दू सैनिकों ने पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर राज करने वाले मुगलों के हृदय में भय भर दिया। दिवेर के युद्ध ने मेवाड़ में अकबर की विजय पर न केवल विराम लगा दिया बल्कि मुगलों के हृदय में ऐसे भय का संचार कर दिया कि अकबर के समय में मेवाड़ पर बड़े आक्रमण लगभग बंद हो गए। हल्दीघाटी विजय का प्रारंभ था तो दिवेर उस विजय का उत्कर्ष था। निर्णायक विजय दिवेर युद्ध भूमि में मिली।

कर्नल टॉड ने अपनी पुस्तक में दिवेर के इस युद्ध को राजस्थान का मैराथन कहा है। उन्होंने महाराणा व उनकी सेना के शौर्य, तेज तथा देश के प्रति उनके अभिमान को स्पार्टन्स के तुल्य बताया है।

ये इतिहास के वे पन्ने हैं जिन्हें दरबारी इतिहासकारों ने जानबूझ कर पाठ्यक्रम से गायब कर दिया है। इन स्वर्णिम पन्नों को पुनः इतिहास में जोड़ने व संरक्षित करने का प्रयास हम सबका दायित्व है।

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1 thought on “दिवेर का युद्ध जिसमें महाराणा ने एक वार से बहलोल खान को घोड़े समेत दो टुकड़ों में काट दिया था

  1. Ye bat sahi h ki hamare veero k samne koi bhi samne se Jung Jeet nhi sakta tha jab bhi dusman jita to chhal se hi jeeta

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