देश के सांस्कृतिक ढांचे को बचाए रखने के लिए समान नागरिकता और जनसंख्या नियंत्रण कानून आवश्यक
मनीष कुलकर्णी
यह सही समय है जब देश के सांस्कृतिक ढांचे का अस्तित्व बचाए रखने के लिए सरकार को समान नागरिकता और जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने पर तत्काल विचार करना चाहिए।
जब आपूर्ति मांग से कम होती है, तो वस्तुओं की कीमतें बढ़ती हैं- यह अर्थशास्त्र का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। जमीन, सोना, रत्न की मांग और उनकी आपूर्ति में भारी अंतर होने के कारण इन चीजों की कीमतें आसमान पर हैं। भारत में जनसंख्या जिस गति से बढ़ रही हैं उससे अर्थशास्त्र का यह सिद्धांत हमारे खाने की थाली तक पहुंच जाएगा। विश्व में चीन और भारत सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश हैं। जन्म दर इसी तरह अनियंत्रित ढंग से बढ़ती रही तो भारत जल्द ही चीन को पीछे छोड़ दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा। और यह स्थिति देश की सेहत के लिए बिलकुल अच्छी नहीं है।
बढ़ती जनसंख्या लेकिन घटता हिंदू
जनसंख्या निश्चित रूप से प्रतियोगिता का विषय नहीं हो सकती है। चीन में जनसंख्या रूपी भस्मासुर के कारण ही साम्राज्य विस्तार का जन्म हुआ है और चीन आज एक वैश्विक भू-माफिया बन रहा है। इसलिए, एक ओर, चीन जैसे देशों से साम्राज्य विस्तार का खतरा और दूसरी ओर, भारत में धर्म आधारित जनसंख्या के बढ़ते असंतुलन से अलग तरह की समस्या पैदा होने की आशंका है। भारत की धर्म आधारित जनगणना रिपोर्ट को देखते हुए 2011 की जनगणना के अनुसार देश में हिंदू जनसंख्या की दर में गिरावट दर्ज की गई है। उसी तरह मुस्लिम जनसंख्या में औसत से ज्यादा बढ़ोतरी दर्ज की गई है। देश की हिंदू जनसंख्या में 0.7 प्रतिशत की गिरावट आई है जबकि मुस्लिम जनसंख्या में 0.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा कुल जनसंख्या के ईसाई 2.3 फीसदी, सिख 1.7 फीसदी और बौद्ध 0.7 फीसदी हैं।
सीएए, एनआरसी और एनपीआर का विरोध
2011 की जनगणना के अनुसार, देश की जनसंख्या 121 करोड़ 9 लाख तक पहुंच गई है। इनमें से हिंदुओं की जनसंख्या 96 करोड़ 63 लाख और 17 करोड़ 22 लाख मुस्लिम नागरिक हैं। ये आंकड़े लगभग 10 साल पुराने हैं। इन सालों में कई बदलाव हुए हैं। भारत में जनगणना को रोकने के लिए वाम दलों सहित कई अन्य राष्ट्र विरोधी ताकतें सामूहिक प्रयास करती दिखाई देती हैं। सीएए, एनआरसी और एनपीआर का विरोध इसी का परिणाम है।
जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन कार्यक्रमों के सफल कार्यान्वयन में बहुसंख्यक समाज ने पहल की है। वैश्विक जनसंख्या विस्तार का अध्ययन करने वाले अमेरिका के प्यू रिसर्च सेंटर की अप्रैल 2015 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार इक्कीसवीं सदी के मध्य में दुनिया की मुस्लिम जनसंख्या लगभग 280 करोड़, ईसाई 290 करोड़ और हिंदू 140 करोड़ के आसपास होगी। यह मात्र आंकड़ा नहीं है, बल्कि इसमें भारत समेत दुनिया के कई देशों के सांस्कृतिक अस्तित्व के समाप्त होने का डर है।
मुस्लिमों की जनसंख्या वृद्धि दर भारत में अगले कुछ दशक में हिंदुओं को पीछे छोड़ देगी। आगामी 2050 तक विश्व में केवल 140 करोड़ हिंदू होंगे, यह चौंकाने वाला चित्र है। ये आंकड़े सिर्फ भारत के लिए नहीं है, यह स्पष्ट रूप से समझने की आवश्यता है। जिस तरह से भारत में बहुसंख्यक हिंदू समाज ‘हम दो हमारा एक’, कह कर संयुक्त कुटुंब से विभाजित कुटुंब की ओर आगे बढ़ा, उसके संकुचन की प्रक्रिया शुरू हो गई।
देश में मुस्लिम जन्म दर में लगातार बढ़ोतरी के साथ-साथ पाकिस्तान और बांग्लादेश से लगातार घुसपैठ के कारण जनसंख्या असंतुलन लगातार बढ़ता जा रहा है। इसी के मद्देनजर पिछले कुछ वर्षों से जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून बनाने की आवश्यकता के लिए आवाजें उठी हैं। समान नागरिकता संहिता के लिए आवाजें उठ रही हैं। यह सही समय है जब देश के सांस्कृतिक ढांचे का अस्तित्व बचाए रखने के लिए केंद्रीय सरकार को समान नागरिकता और जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने पर तत्काल विचार करना चाहिए। भारत को विश्व शक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए भारत का आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध रहना आवश्यक है।