धरती आबा : जनजातीय गौरव
प्रशांत पोळ
धरती आबा बिरसा मुंडा का व्यक्तित्व अद्भुत है। कुल जमा पच्चीस वर्ष का ही छोटा सा जीवन उन्हें मिला। किन्तु इस अल्पकालीन जीवन में उन्होंने जो कर दिखाया, वह अतुलनीय है। अंग्रेज़ उनके नाम से कांपते थे, थर्राते थे। वनवासी समुदाय, बिरसा मुंडा को ईश्वरीय प्रति मानने लगा था।
बिरसा मुंडा के पिताजी ने बिरसा की होशियारी देखकर उनका प्रवेश, अंग्रेजी पढ़ाने वाली, रांची की, ‘जर्मन मिशनरी स्कूल’ में करा दिया। इस स्कूल में प्रवेश पाने के लिए ईसाई धर्म अपनाना आवश्यक होता था। इसलिए बिरसा को ईसाई बनना पड़ा। उनका नाम बिरसा डेविड रखा गया।
किन्तु स्कूल में पढ़ने के साथ ही, बिरसा मुंडा को समाज में चल रहे, अंग्रेजों के दमनकारी काम भी दिख रहे थे। अभी सारा देश 1857 के क्रांति युद्ध से उबर ही रहा था। अंग्रेजों का पाशविक दमनचक्र सारे देश में चल रहा था। यह सब देखकर बिरसा ने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। वे पुनः हिन्दू बने और अपने वनवासी भाइयों को, इन ईसाई मिशनरियों की कन्वर्जन की कुटिल चालों के विरोध में जागृत करने लगे।
1894 में, छोटा नागपूर क्षेत्र में पड़े भीषण अकाल के समय बिरसा मुंडा की आयु थी मात्र 19 वर्ष। लेकिन उन्होंने अपने वनवासी भाइयों की अत्यंत समर्पित भाव से सेवा की। इस दौरान वे अंग्रेजों के शोषण के विरोध में जनमत जागृत करने लगे।
वनवासियों को हिन्दू बने रहने के लिए उन्होंने एक जबरदस्त अभियान छेड़ा। इसी बीच पुराने, अर्थात सन 1882 में पारित कानून के अंतर्गत, अंग्रेजों ने झारखंड के वनवासियों की जमीन और उनके जंगल में रहने का हक छीनना प्रारंभ किया।इसके विरोध में धरती आबा बिरसा मुंडा ने एक अत्यंत प्रभावी आंदोलन चलाया, ‘अबुवा दिशुम – अबुवा राज’ (हमारा देश – हमारा राज)। यह अंग्रेजों के विरोध में खुली लड़ाई थी, ‘उलगुलान’ थी। अंग्रेज़ पराभूत होते रहे। हारते रहे। सन 1897 से 1900 के बीच, रांची और आसपास के वनांचल क्षेत्र में अंग्रेजों का शासन उखड़ चुका था।
किन्तु जैसा होता आया है, गद्दारी के कारण, 500 रुपयों की धनराशि के लालच में, उनके अपने ही व्यक्ति ने, उनकी जानकारी अंग्रेजों को दे दी। जनवरी 1900 में रांची जिले के उलीहातु के पास, डोमबाड़ी पहाड़ी पर, बिरसा मुंडा जब वनवासी साथियों को संबोधित कर रहे थे, तभी अंग्रेजी फौज ने उन्हे घेर लिया। बिरसा मुंडा के साथी और अंग्रेजों के बीच भयानक लड़ाई हुई। अनेक वनवासी भाई – बहन उसमें मारे गए। अंततः 3 फरवरी 1900 को, चक्रधरपुर में बिरसा मुंडा गिरफ्तार हुए।
अंग्रेजों ने जेल के अंदर बंद बिरसा मुंडा पर विष प्रयोग किया, जिसके कारण, 9 जून 1900 को रांची के जेल में, वनवासियों के प्यारे, ‘धरती आबा’, बिरसा मुंडा ने अंतिम सांस ली।
आज सारा देश, ‘जनजातीय गौरव दिवस’ मना रहा है, कारण धरती आबा, बिरसा मुंडा का जन्मदिवस है..!
वनवासियों की हिन्दू अस्मिता की आवाज को बुलंद करने वाले, उनको कन्वर्जन के दुष्चक्र से सावधान करने वाले और राष्ट्र के लिए अपने प्राण देने वाले बिरसा मुंडा का स्मरण करना यानि राष्ट्रीय चेतना के स्वर को बुलंद करना है।
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