नई उम्मीद की बाट जोहते कश्मीरी

यदि आप पंडित नेहरू के पत्र पढ़ें जो उन्होंने शेख अब्दुल्ला को उस दौरान लिखे थे,तो आपको पता लग जाएगा कि कश्मीर को लेकर बात केवल दो व्यक्तियों के बीच हुई थी

मेरा जन्म स्कार्दू में हुआ। स्कार्दू लद्दाख का एक हिस्सा है जो अब पाकिस्तान के कब्जे में है। 1947 में कबाइली हमला हुआ तो हम गांव से पलायन करके श्रीनगर में बस गए। तब मेरी उम्र साढ़े नौ साल थी। पैसा था नहीं, रिश्तेदारों के यहां रहे, फिर किराए के मकानों में रहे। उस समय वहां हौसला बढ़ाने के लिए एक गीत गाया जाता था। मैं बच्चों की टोली का हिस्सा था। गली में खेलते-कूदते हम जोर से वह गाना गाते थे ‘हमलावर खबरदार, हम कश्मीरी हैं तैयार’। उस जमाने से मैं कश्मीर को जानता हूं। आज कश्मीर जैसा है तब ऐसा नहीं था। दरअसल कश्मीर की असल मुश्किल यही है कि हमारी पिछली सरकारों ने कश्मीर की जनता से कभी संवाद ही नहीं किया। पहले भारत का मतलब था जवाहर लाल नेहरू और कश्मीर का मतलब शेख अब्दुल्ला। आप आज पंडित नेहरू के वे सारे पत्र पढ़े लें जो उन्होंने शेख अब्दुल्ला को तब लिखे थे। ये पत्र कहीं छपे नहीं हैं बल्कि नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय में रखे हुए हैं। इन पत्रों को पढ़कर आपको पता लग जाएगा कि तब संवाद केवल दो आदमियों के बीच हुआ। अगर दो ही आदमियों के बीच संवाद हुआ तो जाहिर है फिर ऐसे ही समझौते किए गए जैसे शेख अब्दुल्ला चाहते थे।

आज तक कश्मीर के जो बड़े नेता हैं, वे लोगों को यही बताते आए हैं कि यदि धारा 370 हट गई तो आपकी तमाम जमीन-जायदाद चली जाएगी। हिंदुस्थान से पैसे वाले लोग आएंगे और औने—पौने दामों पर आपकी जमीन खरीद लेंगे और तुम बेकार हो जाओगे। पर उन्हें यह किसी ने नहीं बताया उन्हें कि आप जमीन बेचो या न बेचो, ये आपकी मर्जी है। आपकी विधानसभा भी कानून बना सकती है कि कोई बाहरी व्यक्ति वहां जमीन नहीं खरीद सकता। हिंदुस्थान में बहुत से ऐसे राज्य हैं जहां आप जमीन नहीं खरीद सकते। दरअसल उनकी मंशा हमेशा यही रही कि धारा 370 के जरिए कश्मीर को हिंदुस्थान से बाहर रखा जाए। 1953 में डॉ. कर्ण सिंह ने नेहरू से कहा था कि आपने कश्मीर सिर्फ एक आदमी के हवाले कर दिया है और वह हैं शेख अब्दुल्ला।

हमारे देश में कोई भी व्यक्ति, भले ही वह प्रधानमंत्री हो या राष्ट्रपति, कोई नया कानून तब तक नहीं ला सकता जब तक कि वह संसद से पास न हुआ हो, लेकिन धारा 370 को ऐसे ही थोपा गया। हमारे यहां पर बहुत से लोग हैं लेकिन किसी ने धारा 370 को ठीक से नहीं पढ़ा। जितने लोग आज धारा 370 और अनुच्छेद 35 ए के बारे में जानते हैं चार साल पहले तक उसके 5 प्रतिशत भी इसके बारे में नहीं जानते थे। जब लोग बात करते हैं कि धारा 370 से पीड़ित कौन हैं तो कहते हैं-कश्मीरी पंडित हैं, पाकिस्तान से आए ‘रिफ्यूजी’ हैं, पंजाब से कश्मीर आए वहां के सफाई कर्मचारी हैं, लेकिन मैं ये मानता हंूं कि इस स्थिति से सबसे बड़ी पीड़ित पूरी कश्मीरियत है। कश्मीर के नौजवान हैं। कश्मीर की खासियत उसका पानी, उसके चश्मे, उसकी झीलें हैं। इसके बिना कश्मीरियत नहीं हो सकती और आज वही बड़े सकंट में है। डल झील पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। आज वहां का पानी पीने तो क्या नहाने के लायक भी नहीं रह गया है। इस झील का जो वास्तविक आकार था उसका महज एक तिहाई ही रह गया है। केवल डल झील ही नहीं, और भी छोटी झीलें और बरसाती नाले जो उसमें पानी लाते थे, सब बिगड़ चुका है। आज जम्मू—कश्मीर में जो वास्तविक जंगल है वह दो प्रतिशत है, जो कि 20 साल पहले 16 प्रतिशत हुआ करता था। कई सारे पक्षी वहां पाए जाते थे, अब नहीं पाए जाते। ऐसी कई प्रजातियां जो वहां पाई जाती थीं या बाहर से जो प्रवासी पक्षी आते थे, अब नहीं आते। कश्मीर के नौजवानों को बहकाकर उनके हाथों में पत्थर थमा दिए गए। कश्मीर का जो नौजवान अभी तक पत्थर उठा रहा था, या बहकावे में आकर आतंकवाद के रास्ते पर जा रहा था, उसे अब उसमें नई उम्मीद जगानी है, जिसे पूरा करने के लिए वह पूरे मन से जुट जाए। यदि ऐसा हो पाता है तो आप देखेंगे कि कश्मीर फिर वैसा ही कश्मीर होगा जैसा वह हुआ करता था।

 जवाहर लाल कौल

(लेखक पद्मश्री से सम्मानित वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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