नई शिक्षा नीति से शिक्षा में आएंगे बुनियादी बदलाव

नई शिक्षा नीति से शिक्षा में आएंगे बुनियादी बदलाव

अभिषेक रंजन

नई शिक्षा नीति से शिक्षा में आएंगे बुनियादी बदलाव

भाषाई विवाद को पीछे छोड़ते हुए नई शिक्षा नीति किसी एक भाषा पर जोर देने के स्थान पर देश में त्रि-भाषा सूत्र लागू करने और कम से कम दो भारतीय भाषाओं को पढ़ाये जाने की बात करती है।

नई शिक्षा नीति के बारे में आप क्या कहेंगे? यह सवाल सुनते ही देश के पिछड़े इलाकों में चल रहे लगभग 5 हजार कस्तूरबा आवासीय विद्यालयों में से एक के शिक्षक ख़ुशी से बोल उठे, अब गरीब की बेटियों को अधिक पढ़ने का मौका मिलेगा। दरअसल उनकी ख़ुशी इस बात से जुड़ी थी कि नई शिक्षा नीति की वजह से अब कस्तूरबा में केवल कक्षा 6 से 8 तक नहीं, बल्कि 12वीं तक की पढ़ाई होगी। कस्तूरबा आवासीय विद्यालय समाज के वंचित तबके, दिव्यांग, ड्रॉपआउट हो चुकी बेटियों के लिए हैं। नई नीति इनके लिए एक वरदान बनकर आई है। अब देश में चल रहे कस्तूरबा आवासीय विद्यालय 8वीं तक नहीं, 12 वीं तक की शिक्षा मुहैया कराएंगे। यह कदम दूरदराज के पिछड़े इलाकों के लाखों बेटियों को बड़े स्वप्न देखने को प्रेरित करेगा।

सीखने के स्तर बेहतर करने का राष्ट्रीय संकल्प

नवंबर 2017 में देशभर के लगभग 15 लाख विद्यार्थियों के ऊपर हुए नेशनल अचीवमेंट सर्वे हों अथवा स्वयंसेवी संस्थाओं की रपट, सब यही बताते हैं कि देश के बच्चों में भाषा और गणित की दक्षता कक्षानुसार नहीं है। भारत में लर्निंग क्राइसिस अर्थात सीखने का संकट है और इस पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। वर्तमान में स्कूली शिक्षा व्यवस्था से जुड़े तक़रीबन 5 करोड़ बच्चे ऐसे हैं, जिन्होंने बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान भी नहीं सीखा है।

नई शिक्षा नीति ने इस चुनौती को स्वीकार किया है। इसके समाधान के रास्ते सुझाए हैं। महत्वपूर्ण उपायों में 2025 तक प्राथमिक विद्यालयों में सार्वभौमिक मूलभूत साक्षरता और संख्या-ज्ञान प्राप्त करना शिक्षा प्रणाली की सर्वोच्च प्राथमिकता होगी।

शिक्षकों की नहीं होगी कमी

नई शिक्षा नीति में 4 वर्षीय एकीकृत बीएड डिग्री की व्यवस्था होने से केवल शिक्षा क्षेत्र में कार्य करने के इच्छुक युवाओं के आने का रास्ता खुलेगा, वहीं स्नातक के बाद विद्यार्थियों का समय भी बचेगा। अभी तक कई बार शिक्षक होने का विकल्प सबसे आखिरी करियर ऑप्शन के रुप में देखा जाता है। इस कदम के साथ साथ शिक्षकों की क्षमता संवर्द्धन पर भी अधिक जोर दिया गया है ताकि वे अपनी प्रतिभा का समुचित उपयोग नौनिहालों के लिए कर सकें।

बाल्यकाल की शिक्षा पर अधिक जोर

सितंबर 2019 तक के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक तो देश में तेरह लाख अस्सी हजार 796  आंगनबाड़ी केंद्र थे। नई शिक्षा नीति ने शिक्षा प्रणाली में बाल्यावस्था की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया है। अब आंगनबाड़ी केंद्र शिक्षा केंद्र के रूप में विकसित होंगे। इसके लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाये गए हैं।

दूसरी प्रमुख बात यह है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के दक्षता संवर्द्धन के साथ साथ नई शिक्षा नीति में 0 से 3 वर्ष तथा 3 से 8 वर्ष की आयु वाले बच्चों के लिए अलग अलग पाठ्यक्रम विकसित करने की बात कही गई है। तीसरी प्रमुख बात है कि बाल्यावस्था के शिक्षण हेतु विशेषज्ञ शिक्षक का संवर्ग तैयार होगा, जो नौनिहालों का भविष्य संवारेंगा। साथ ही यह प्रावधान किया गया है कि कक्षा पहली में जाने से पहले बच्चे बालवाटिका में जाएंगे, जहाँ उनके लिए विशेष शिक्षक होंगे। शिक्षा नीति में ये प्रावधान छोटे बच्चों को शिक्षा से जोड़ने की दिशा में एक बेहद क्रांतिकारी पहल है।

ड्रॉपआउट की समस्या होगी दूर

वर्ष 2017-18 के भारत में शिक्षा पर घरेलू सामाजिक खपत के प्रमुख संकेतों पर राष्ट्रीय सर्वेक्षण (एनएसएस) रिपोर्ट की मानें तो शिक्षा प्रणाली में लोगों की भागीदारी बढ़ी है। लेकिन यही रिपोर्ट बताती है कि 3 से 35 वर्ष की आयु वाले 13.6 प्रतिशत लोगों ने कभी स्कूल में नामांकन नही करवाया। जो नामांकित भी हुए, उनमें प्राइमरी स्कूलों से 10 प्रतिशत लोग ड्रॉपआउट हो गए। मिडिल के स्तर पर यह आंकड़ा 17.5 प्रतिशत था जबकि 19.8 प्रतिशत ने माध्यमिक स्तर पर ही स्कूल छोड़ दिया था।

देश के सुदूर ग्रामीण अंचल अथवा वनवासी क्षेत्रों में स्कूलों से ड्रॉपआउट होने बच्चों की संख्या शर्मिंदगी की बात है। ख़ुशी की बात है कि नई शिक्षा नीति ने ड्रॉपआउट की समस्या को रेखांकित किया है और इससे निजात पाने का दिशा बोध कराया है। ड्रॉपआउट मुक्त स्कूली शिक्षा के लिए नई शिक्षा नीति स्कूलों को संसाधनों से लैस करने की बात करती है।

अल्पकालीन 3 महीने का प्ले आधारित स्कूल तैयारी का मॉड्यूल भी विकसित किया जाएगा ताकि पहली कक्षा में आने वाले बच्चे ड्रॉपआउट न हो सकें। साथ ही उन्हें बुनियादी शिक्षा से जुड़ी जानकारी भी दी जा सके। ड्रॉपआउट की समस्या को दूर करने के लिए नई नीति समाज को भी स्कूल के साथ जोड़ने की वकालत करती है। इसके तहत न केवल नामांकन और ठहराव, बल्कि ड्रॉपआउट की स्थिति में दुबारा स्कूल से जुड़ने के लिए प्रशिक्षित सामाजिक कार्यकर्ताओं व काउंसलर की नियुक्ति की जाएगी।

इन कोशिशों के अलावा जो स्कूल जाने में सक्षम नहीं हैं, उनके लिए राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय संस्थान को भी मजबूत बनाये जाने की बात शामिल है। इससे कोई भी व्यक्ति सामाजिक रूप से भी स्वयं को ड्रॉपआउट की बजाए किसी न किसी कक्षा पास होने के भाव के साथ समाज जीवन में अपना योगदान देगा।

मातृभाषा बनेगी बच्चों की ताकत

यूनेस्को ने 2010 में एक एटलस प्रकाशित किया था जिसमें भारत की 197 स्थानीय भाषाओं को सूचीबद्ध किया गया था। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन आने वाले भारतीय भाषा संस्थान ने भी 2013 में देश के अलग अलग राज्यों की उन 117 भाषाओं की पहचान की जिनका अस्तित्व या तो खतरे में है अथवा निकट भविष्य में समाप्ति के कगार पर है। इसलिए बेहद जरुरी हो जाता है कि देश स्थानीय भाषा को भावी पीढ़ी को सौंपे।

इस दृष्टि से स्कूली शिक्षा में स्थानीय भाषा को प्राथमिकता, विशेषकर संविधान की सूची में शामिल भारतीय भाषाओं से बालमन को जोड़ने के प्रयास नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को बेहद ख़ास बनाते हैं। भाषाई विवाद को पीछे छोड़ते हुए नई नीति किसी एक भाषा पर जोर देने के बजाय देश में त्रि-भाषा सूत्र लागू करने और कम से कम 2 भारतीय भाषाओं को पढ़ाये जाने की बात करती है। नई शिक्षा नीति के अनुसार कम से कम 8वीं तक स्थानीय भाषा अथवा मातृभाषा में बच्चों को पढ़ाया जाएंगा। यह एक बेहद जरुरी कदम है।

भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने से और देश की अन्यत्र भाषाओं के अध्ययन के विकल्प से राष्ट्रीय भावना का विकास होगा, अधिक भाषाओं के जानकार राष्ट्रीय एकता के अग्रदूत बनेंगे।

वोकेशनल शिक्षा से बनेगा आत्मनिर्भर भारत

नई नीति में कक्षा 6 से 8 कर के बच्चों के लिए 10 दिवसीय बस्ता मुक्त पढ़ाई की बात कही गयी है, ताकि वे स्थानीय परिवेश की गतिविधियों यथा बागवानी, बिजली के कार्य, बर्तन बनाने आदि से जुड़ी बातों को समझ पाएं, उसका अनुभव ले पाएं। वोकेशनल शिक्षा पर जोर देते हुए विशेषज्ञ शिक्षक की बहाली की बात कही गई है। वोकेशनल शिक्षा पर बढ़ावा देने से स्वरोजगार और स्वाबलंबी भारत बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा। स्थानीय परिवेश से जोड़कर दी जाने वाली शिक्षा श्रम के महत्व को समझाएगी, वहां की चुनौतियों के समाधान की तरफ ध्यान ले जायेगी व स्थानीय जरुरतों को पूरा करेगी

(लेखक स्कूली शिक्षा क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं औरsarkarischool.in के संस्थापक हैं)

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