नन्हीं बिटिया रानी
विष्णु ‘हरिहर’
नन्हीं बिटिया रानी देखो, भरने जाती पानी।
कर में छोटी गगरी उसके, लगती बड़ी सयानी।।
हाथों में चूड़ी पहनी है, पाँवों में है पायल।
आगे बढ़ते कदम देखकर, हुई लेखनी कायल।।
उलझे – सुलझे केश बताते, माँ की प्रेम निशानी ।
नन्हीं बिटिया रानी देखो, भरने जाती पानी।।1।।
संघर्षों में सीख रही है, जीवन कैसे जीना।
हैंड पंप से भरकर लाना, पानी तो है पीना।।
कई घुमंतू परिवारों की, बच्ची कहे कहानी।
नन्हीं बिटिया रानी देखो, भरने जाती पानी।।2।
सुता भारती कितनी खुश है, नहीं तनिक घबराती।
सीख रही है श्रमनिष्ठा को लहराती बल खाती।।
इनमें ही लक्ष्मी दुर्गा है, बेटी हिंदुस्तानी।
नन्हीं बिटिया रानी देखो, भरने जाती पानी।।3।।
यद्यपि कविता का पूरा होना अभी शेष है
ये जो उलझे हुए केश है
ये कुछ विशेष है।
अनंत दुखों का पहाड़ सा जीवन में
विश्रांति शेष है
अपने जैसी नन्ही कलियों को सजा संवरा देखकर,
पूछती होगी अपनी मां से
मैं कब बनूंगी ऐसी गुड़िया मां
खिलोने खेलने के वक्त तूने ये
घड़ा थमा दिया मां
हां मैं पानी लाऊंगी, तेरे और काम भी निपटाऊंगी
पर मां देख लेना, फिर मैं भरपेट खाना भी खाऊंगी
कल भी तूने दी थी सुखी रोटी और छाछ,
कल ताजा देने की बंधाई थी आस
देख न वो बच्चे स्कूल जाते बैठकर अपने पापा के साथ,
तूने हथौड़ा थमा दिया मेरे पापा के हाथ……
सच बता मां मुझे भी जाना है न पढ़ने,
अपना भविष्य गढ़ने