नव भारत निर्माण करो
– स्वरूप जैन ‘जुगनू’
हास्य रस का ज्ञान नहीं है, ना ही श्रृंगार सजाता हूँ
वीर रस मेरी ताकत है, ओजस्वी भाषा गाता हूँ।।
जिनके सीने में अर्जुन सो रहे, जाग उठे इस गाथा से।
उनके लिए मैं रश्मिरथी और महाभारत सुनाता हूँ।।
कश्यप धरा अब गूंज उठी है, स्वाधीनता के नारों से।
स्वर्ग का मुकुट चमक रहा है, भारत के वीर जवानों से।।
आजादी के घावों को भरने का साहस जताया है।
नया भारत आत्मनिर्भर है, अभी दुश्मन घबराया है।।
यह घाव आज के नहीं, विभाजन के साथ मिले।
छोटे से टुकड़े हमने, भाई समझ कर दे दिए।।
यह रोज कोशिश इन टुकड़ों की, हस्तिनापुर मिटाने की।
शिशुपाल सुधर जाओ अभी, सौ गलती माफ नहीं होगी।।
हाथ जोड़ना ठीक नहीं है, शांतिवार्ता बंद करो।
जो भारत पर आँख उठाए, उसका उचित प्रबंध करो।।
कुरुक्षेत्र फिर से सजने दो, पांचजन्य हुंकार भरो।
सोया अर्जुन जाग उठा है, नवभारत निर्माण करो।।
शानदार रचना स्वरूप जी