नव सृजन की प्रसव पीड़ा है कोविड महामारी
30 मई 2020
– नरेंद्र सहगल• हिन्दू सुरक्षित तो हिन्दू विचार सुरक्षित
• हिन्दू विचार सुरक्षित तो भारत सुरक्षित
• भारत सुरक्षित तो विश्व सुरक्षित
वर्तमान युग में आकाश की बुलंदियां छू रहे विज्ञान, सुख सुविधाओं पर आधारित भौतिकवादी जीवन शैली और स्पर्धा-प्रतिस्पर्धा के बीच फंसे आर्थिक तंत्र पर करोना वायरस भारी पड़ता नजर आ रहा है। विश्व के अस्तित्व के लिए बज रही खतरे की घंटी में वह कौन सा शंखनाद होगा जो विश्व विनाश को विश्व शांति में परिणत कर सकता है। निश्चित रूप से सह अस्तित्व का वह शंखनाद भारत की धरती पर ही गूंजेगा, जिसकी गगन स्पर्शी ध्वनि वर्तमान के सभी संकटों को धराशायी करेगी।
करोना महामारी एवं परमाणु अस्त्रों ने विश्व को दो भागों में विभक्त कर दिया है। संसार की दो महाशक्तियां आमने-सामने खड़ी हो गईं हैं। दोनों का अहं किसी खतरनाक संघर्ष की ओर तेजी से बढ़ रहा है। चीन से प्रारंभ हुयी करोना की बेइलाज जानलेवा बीमारी का सबसे ज्यादा मृत्यु तांडव तो अमरीका में ही हुआ है। यद्यपि इस राक्षस ने अपना जबड़ा पूरे विश्व को खा जाने के लिए खोल दिया है, परंतु भारत के पास एक ऐसा पवन सुत हनुमंत है जो इस जबड़े में घुस कर सुरक्षित बाहर निकल कर इस राक्षस को पराजित कर सकता है।
करोना विश्वयुद्ध के पश्चात समस्त संसार की जीवन रचना बदल सकती है। मानव जाति को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए किसी ऐसी जीवन पद्धति की आवश्यकता होगी जो समग्र मानवता के विकास की गारंटी हो। भविष्य में ऐसी विचार धाराएं जड़ मूल से समाप्त हो जाएंगी जिन्होंने सृष्टि की सारी प्राकृतिक व्यवस्था को ही तहस-नहस करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मनुष्य को मनुष्य के सामने शत्रु के रूप में खड़ा करने वाली अदूरदर्शी विचार धाराओं के समाप्त होने का समय आ गया है।
भारत की सनातन संस्कृति जो मानव को सुख की व्यवस्था के आधार पर जीवन के अंतिम लक्ष्य ‘मोक्ष’ तक पहुंचाती है वहीं आज के संकटकाल को शांतिकाल में बदलेगी। इसी शाश्वत् और अमृतमयी संस्कृति का वर्तमान नाम हिन्दुत्व है जो काल के भयंकर आघातों को सहन करते हुए आज भी जीवित है। भारत की सनातन पहचान हिन्दू विचार किसी मजहब, जाति, क्षेत्र की सीमाओं में बंधा हुआ नहीं है।
हिन्दू विचार आधारित जीवन रचना सार्वभौम, सर्वस्पर्शी और सर्वग्राह्य है। यह जीवन रचना केवल हिन्दू समाज से ही संबंधित ना होकर समग्र मानवता की अवधारणा है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में हिन्दू विचार के विशाल दृष्टिकोण की व्याख्या करने वाले सभी शास्त्रों यथा वेदों, उपनिषदों, पुराणों, स्मृतियों, रामायण, महाभारत एवं गीता इत्यादि में हिन्दू शब्द ही नहीं है। हिन्दू शब्द तो मात्र आठ सौ वर्ष पुराना है जो सिन्धू का उच्चारण है। हिन्दू और हिन्दू विचार क्योंकि भारत की भूमि पर विकसित हुई संस्कृति है, इसी लिए इसे भारत की राष्ट्रीय पहचान कहा जाता है।
‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ पर आधारित हिन्दुत्व की विचारधारा के अंतर्राष्ट्रीय विस्तार की जिम्मेदारी भारत के विशाल हिन्दू समाज (सिक्ख, जैन, बौद्ध इत्यादि के साथ मुसलमान और ईसाई भी) के कंधों पर आती है। हिन्दू विचार वह मंच, आधार अथवा भूमि है जिस पर समस्त भारतवासी एकरस होकर एक साथ खड़े हो सकते हैं। हिन्दू विचार कोई मजहब या जाति ना होकर एक ऐसी जीवन रचना है जो भारत समेत पूरे विश्व को जोड़ने का सामर्थ्य रखती है।
अत: संसार के अमनचैन एवं सुरक्षा के लिए हिन्दू विचार को सुरक्षित रखना जरूरी है। यहां एक सवालिया निशान लग जाता है कि हिन्दू विचार को कौन और कैसे सुरक्षित रखेगा। असंख्य विविधताओं के इस देश में एकात्मता की मशाल को कौन अपने सशक्त हाथों में थामेगा। राजनीतिक दल तो इस महत्वपूर्ण कार्य को सम्पन्न नहीं कर सकते। राजनीति समाज को तोड़ती है जोड़ती नहीं। वोटबैंक पर आधारित वर्तमान राजनीति के कारण ही हमारे देश व समाज में बिखराव, भ्रष्टाचार, नफरत और अलगाववाद पनपा है।
भारत एक धर्मपरायण देश है। इसकी पहचान और अस्तित्व धर्म पर ही आधारित है। सरल शब्दों में कहा जाए तो मानव के नैतिक कर्तव्यों का नाम ही धर्म है। अत: हम हिन्दू विचार को भारतीय धर्म भी कह सकते हैं। यह भी एक सच्चाई है कि प्राय: सभी भारतवासी (वामपंथियों को छोड़कर) किसी ना किसी धार्मिक इकाई एवं धर्मगुरू के साथ जुड़े हुए हैं। इसलिए हमारे धार्मिक संस्थान और हमारे धर्म गुरू एकात्मता स्थापित करने का कर्तव्य निभा सकते हैं।
पूजा पद्धतियों का भिन्न होना स्वाभाविक है। मोक्ष अथवा ब्रह्म प्राप्ति के अनेक रास्ते हो सकते हैं। सत्य तो एक ही है उसकी व्याख्या अलग-अलग होती है। यह मानव के स्वभाव, चिंतन और क्षमता पर निर्भर है। भारत के सभी धार्मिक संस्थानों को एकात्म के मार्ग पर चलने के लिए कुछ आवश्यक कदम उठाने चाहिए ताकि भारत और विश्व दोनों सुरक्षित रहे।
• भगवा ध्वज अनादिकाल से लेकर आज तक भारत की सांस्कृतिक पहचान रहा है। दैव युग, सत् युग, त्रेता युग, द्वापर युग और वर्तमान कलयुग में भारत के उत्थान, संघर्ष, पतन और पुनरुत्थान का प्रत्यक्षदर्शी (चश्मदीद गवाह) है यह भगवा ध्वज। इस केसरी रंग का किसी मजहब, जाति से कोई संबंध नहीं है। त्याग और बलिदान के प्रतीक भगवा ध्वज को प्रेरणास्पद मानते हुए सभी धार्मिक संस्थान अपने कार्यक्रमों में भगवा ध्वज की वंदना करें। यह एकता का सशक्त आधार होगा।
• सभी धर्मगुरुओं को अपने प्रवचनों में हिन्दू विचार की सर्वव्यापक एवं सर्वस्पर्शी विचारधारा को प्रमुखता से स्थान देना चाहिए। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष की जीवन शैली का प्रचार-प्रसार करना चाहिए। हिन्दू विचार को भारत की सनातन राष्ट्रीय पहचान एवं समस्त संसार के कल्याण के लिए सक्षम सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत करना चाहिए। भारत में सक्रिय सभी मजहबों एवं पूजा पद्धतियों का आधार हिन्दू विचार ही है। हिन्दू एवं हिंदू विचार इन शब्दों को गर्व के साथ उच्चारित करें।
• समस्त संसार के कल्याण की कामना करने वाली हिन्दू विचार अष्टांग योग पर आधारित है। योग का अर्थ आत्मा एवं परमात्मा का मिलन है अर्थात योग साधना मानव समाज को एकत्रित करने की गारंटी है। योग केवल मात्र आसन (व्यायाम) का नाम नहीं है। अष्टांग योग एक संपूर्ण जीवन प्रणाली है। यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा एवं समाधि पूर्ण योग है। इस अष्टांग योग का संबंध भी किसी जाति या क्षेत्र से नहीं है।
उपरोक्त तीन कार्यक्रमों को सभी धार्मिक संस्थान यदि अपना लेते हैं तो विभिन्न पूजा पद्धतियां, मंत्र साधनाएं एवं श्रीगुरु भी अपनी निजी पहचान को सुरक्षित रखते हुए भारत एवं विश्व का कल्याण कर सकते हैं।
लेखक का संक्षिप्त परिचय भी देना चाहिए।